महाराष्ट्र में सरकार के किसी भी फैसले के खिलाफ कुछ भी बोलना मुश्किल होता जा रहा है। भाजपा-शिवसेना सहित तमाम दक्षिणपंथी संगठन और खुद राज्य सरकार उनके खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर लेती है।
भारतीय जनता पार्टी ने एक समय बड़े ही जोर-शोर से महिला आरक्षण की वकालत की थी और कहा था कि भले ही सरकार महिलाओं को आरक्षण ने दे लेकिन पार्टी संगठन में आरक्षण देकर मिशाल पेश करेगी।
जबलपुर पुलिस ने एक चर्च और एक अन्य धार्मिक परिसर में तोड़फोड़ करने के आरोप में छह व्यक्तियों को सोमवार तड़के गिरफ्तार कर लिया। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ईशा पंत ने एजेंसी भाषा को बताया कि पुलिस ने एक कैथोलिक स्कूल और धार्मिक परिसर में तोड़फोड़ करने के आरोप में छह व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया है।
हिन्दूवादी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे घर वापसी कार्यक्रम का मुद्दा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की आगामी 20 मार्च से जयपुर में होने वाली तीन दिवसीय बैठक में प्रमुख रूप से उठने की प्रबल सम्भावना है।
पाकिस्तान की परेशानियों को और बढ़ाते हुए यूरोपीय यूनियन ने इस बात पर चिंता जताई है कि पाकिस्तान उसके द्वारा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर दिए जा रहे पैसे का दुरुपयोग कर रहा है कि और यह पैसा उल्टा आतंकी समूहों के हाथ में ही पहुंच रहा है।
आईएसआई और तालिबान से जुड़े एक खतरनाक आतंकवादी संगठन का नेटवर्क भारत में मौजूद होने के बावजूद क्या खुफिया एजेंसियों को भनक तक नहीं लगी। इस आतंकवादी संगठन ने भारत में विदेशी राजनयिकों के अपहरण की योजना तैयार की थी।
भाजपा सांसद कीर्ति आजाद दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में मिली हार के लिए पार्टी और संगठन के उन नेताओं को जिम्मेवार ठहराते हैं जिन्होंने आम आदमी पार्टी को कमजोर करके आंका और अरविन्द केजरीवाल को भगोड़ा साबित करने की कोशिश की।
निर्मला देशपांडे की पाकिस्तान में बरसी से उठी ये सदाएं मनमोहन सिंह पहुंची या यह उनकी अंत: प्रेरणा थी अथवा अमेरिकी उत्प्रेरणा, जैसा कि कुछ लोग विश्वास करना चाहते हैं, शर्म अल शेख के संयुक्त वक्तव्य में ब्लूचिस्तान के जिक्र के लिए राजी होकर और भारत-पाक समग्र वार्ता के लिए भारत में आतंकवादी हमले रोकने की पूर्व शर्त को ढीला करके भारतीय प्रधानमंत्री ने शांति के लिए एक जुआ खेला है। मुंबई हमले के बाद दबाव की कूटनीति से भारत को जो हासिल होना था वह हो चुका और पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकतंत्र के खिलाफ अपेक्षया गंभीर कार्रवाई के लिए बाध्य होना पड़ा। दबाव की कूटनीति की एक सीमा होती है और विनाशकारी परमाणु युद्ध कोई विकल्प नहीं हैं। इसलिए वार्ता की कूटनीति के लिए जमीन तैयार करने की जरूरत थी। ब्लूचिस्तान के जिक्र को भी थोड़ा अलग ढंग से देखना चाहिए।