महिलाओं को आवाज उनके विचारों से मिलती है, उनके विचार उनकी भावनाओं से उपजते हैं और भावनाएं जब उफान पर होती है तब एक स्त्री कविता रचती है। दलितों और महिलाओं के संघर्ष को आवाज देने और उनके अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था रमणिका फाउंडेशन और दलित लेखक संघ कविता और कहानी पाठ के कार्यक्रम आयोजित करता रहा है।
हृषीकेष सुलभ साहित्य जगत के बहुत प्रतिष्ठित लेखक हैं। ग्रामीण अंचलों की पृष्ठभूमि के अलावा शहरी जीवन की चमक-दमक पर भी उनकी लेखनी उतनी ही सुगमता से चलती है। कहानी संग्रह ‘वसंत के हत्यारे’ के लिए उन्हें 16वां इंदु शर्मा अंतरराष्ट्रीय कथा सम्मान मिला। कहानियों के लिए ही बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, रंगमंच और नाटक लेखन के लिए अनिल कुमार मुखर्जी शिखर सम्मान, रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान, पाटलिपुत्र पुरस्कार, सिद्धार्थ कुमार स्मृति सम्मान आदि मिल चुके हैं।
पाकिस्तान की जानी-मानी मानवाधिकार कार्यकर्ता सबीन महमूद की कराची में गोली मार कर हत्या कर दी गई है। सबीन पर अज्ञात बंदूकधारियों ने हमला किया जब वे बलूचिस्तान में अपहरण और कथित उत्पीड़न पर आयोजित एक सेमिनार का संचालन करके अपनी मां के साथ घर लौट रहीं थीं।
इन दिनों सेंट स्टीफन कॉलेज के छात्र देवांश मेहता सुर्खियों में हैं। दर्शनशास्त्र, तृतीय वर्ष के इस छात्र ने अपनी साख, सम्मान और अपने पर लगे आरोपों को पूरे कॉलेज के सामने खारिज करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। न्याय मिल भी गया। देवांश अपनी जीत से काफी खुश है। उनका कहना है कि कोई कितना ही ताकतवर और ऊंची कुर्सी पर क्यों न बैठा हो, जुल्म के खिलाफ हर हाल में आवाज उठानी चाहिए।
अपनी जीत के मौके पर देवांश ने आउटलुक से खास बातचीत कीः
शास्त्रीय गायिकी के सबसे प्रतिष्ठित संकटमोचन हनुमान मंदिर, वाराणासी में पहली बार किसी पाकिस्तानी कलाकार की आवाज गूंजी। भारतीयों के दिलों में बसने वाले यही फनकार गुलाम अली ने ऐसा समा बांधा कि देर शाम से सुबह तक उनके मुरीद मंदिर प्रांगण में उन्हें सुनने के लिए डटे रहे।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर नई तरह की जन आकांक्षाएं पैदा की थीं। लेकिन सरकार बनने के कुछ ही वक्त बाद पार्टी के भीतर का वैचारिक संघर्ष बाहर आ गया है। अरविंद केजरीवाल और समर्थकों के निशाने पर पार्टी नेता योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण हैं। इन दोनों नेताओं ने पार्टी के भीतर लोकतांत्रिकरण की बहस उठाई थी। साथ ही पार्टी में व्यक्ति के बजाय सामूहिक निर्णय पर जोर दिया था। अब पार्टी के भीतर नैतिक सवालों को भीड़ के तर्क के आधार पर हल करने की कोशिश की जा रही है।