स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का आलम आज भी जस की तस है जबकि उत्तर प्रदेश की सत्ता अखिलेश सरकार से होकर योगी आदित्यनाथ के पास पहुंच चुकी है। इस दौरान सरकार बदलाव के तमाम बड़े दावे करे, लेकिन एक आम आदमी के द्वारा शव को अपने कंधे पर उठाकर ले जाना सभी दावों को ढेर करता दिख रहा है।
पिछले दिनों उड़ीसा के एक सरकारी अस्पताल से वाहन नहीं मिलने पर पत्नी के शव को कंधे पर 12 किलोमीटर तक ढोने वाले दाना मांझी का वीडियो वायरल होने के बाद अब उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया है। यहां एक बेटे का अपने पिता के शव को ठेले पर लादकर ले जाते हुए वीडियो वायरल हुआ है।
ओडिशा में एंबुलेंस नहीं मिलने की वजह से बीवी के शव को 12 किलोमीटर तक ढोने वाले दाना मांझी नौ लाख का चेक लेने ओडिशा से दिल्ली विमान से आए। उन्हें बहरीन दूतावास ने बुलाकर अपने शेख की तरफ से भिजवाया हुआ 8.87 लाख का चेक दिया।
ओडिशा में मृत पत्नी को कंधे पर ढो कर चर्चा में आए दाना मांझी को बहरीन के पीएम प्रिंस खलीफा बिन सलमान अल खलीफा ने आर्थिक मदद दी है। अंग्रेजी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘बहरीन के प्रधानमंत्री प्रिंस खलीफा बिन सलमान अल खलीफा ने मांझी के बारे में पढ़ा, जो अस्पताल में पत्नी को मौत हो जाने के बाद एंबुलेंस ना मिलने पर शव को कंधे पर रखकर 12 किमी तक ले गया।’
फरवरी 2014 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की कमान संभालने वाले हरीश रावत राज्य के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाते हैं। लंबे समय के राजनीतिक जीवन में रावत ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य बनने के बाद माना जा रहा था कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो रावत को कमान मिल सकती है। लेकिन सियासी कारणों सेे रावत को देर से राज्य की कमान मिली। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जब सरकार बनी तो विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद दिया गया। उस समय रावत केंद्र सरकार में मंत्री थे। विजय बहुगुणा को बीच कार्यकाल से ही हटाकर हरीश रावत को राज्य की कमान दी गई। दो साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हरीश रावत से विभिन्न मुद्दों पर आउटलुक के विशेष संवाददाता ने देहरादून के बीजापुर गेस्ट हाउस में विस्तार से बातचीत की। पेश है प्रमुख अंश-
बिहार की राजनीति अभी गर्म लावा की तरह है। जिसकी आंच दिल्ली तक जा रही है। राजनीति के कई माहिर खिलाड़ी आने वाले चुनाव को लेकर रणनीति बनाने में लगे हैं। ऐसे में बिहार के पूर्व मुक्चयमंत्री जीतन राम मांझी की भूमिका सभी दलों के लिए चुनौती है। मांझी इतिहास के छात्र रहे हैं, उन्हें अतीत की समझ है। वे जानते हैं राजनीति के लिए इतिहास का होना जरुरी है। इतिहास में दलितों की ञ्चया जगह रही है उसे वे बार बार याद दिलाते हैं। मांझी जानते हैं दलित होने के क्या फायदे और नुकसान हैं। मांझी से कई मुद्दों पर आउटलुक के लिए निवेदिता ने बातचीत की। पेश है प्रमुख अंश-
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) नेता नीतीश कुमार को एक तगड़ा झटका लगा है। पटना हाई कोर्ट ने जीतन राम माझी के मुख्यमंत्री रहते हुए नीतीश के विधायक दल का नेता चुने जाने को अवैध बताया है। और फिलहाल इस पर रोक लगा दी है।