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Search Result : "धर्म के ठेकेदार"

हर धर्म को अपना धर्म चलाने की आजादी है : राजनाथ

हर धर्म को अपना धर्म चलाने की आजादी है : राजनाथ

धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी को लेकर देश में पिछले कुछ समय से छिड़ी बहस के बीच केंद्र सरकार ने आज कहा कि हर धर्म के लोगों को अपने धर्म को चलाने की आजादी है।
योग का संबंध किसी धर्म से नहीं- राजनाथ सिंह

योग का संबंध किसी धर्म से नहीं- राजनाथ सिंह

योग का किसी धर्म कोई संबंध नहीं है जो लोग इस तरह की सोच रखते हैं, उनमें सत्यनिष्ठा, समन्वय और संतुलन की कमी है। यह बात केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अंतरराष्ट्रीय योग उत्सव के समापन पर अवसर पर कही।
रोहित वेमुला की मां और भाई ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया

रोहित वेमुला की मां और भाई ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया

दलित छात्र रोहित वेमुला की मां और भाई ने आज डॉ.भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेमुला ने जनवरी में आत्महत्या कर ली थी, जिसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे।
चर्चाः काम नहीं, नाम पर राजनीति | आलोक मेहता

चर्चाः काम नहीं, नाम पर राजनीति | आलोक मेहता

केंद्र और दिल्ली सरकार की नाक के नीचे हजारों दलित परिवारों के लिए पीने लायक साफ पानी, बच्चों के लिए शिक्षा, सिर छिपाने लायक छोटे फ्लैट, गंदी नालियां और शौचालय साफ करने के लिए सामान और ‌उचित मजदूरी नहीं है।
चर्चाः धर्म के नाम पर गुमराह न करें | आलोक मेहता

चर्चाः धर्म के नाम पर गुमराह न करें | आलोक मेहता

स्वामी दयानंद और राजा राममोहन राय, महात्मा गांधी समेत कई संत, महात्मा, समाज सुधारकों ने महिलाओं को अंधविश्वास तथा सामाजिक कुरीतियों से बचाने के लिए जीवन पर्यंत काम किया और क्रांतिकारी बदलाव हुए। इसी भारतीय समाज में किसी मंदिर में महिलाओं के पूजा करने से बलात्कार जैसे अपराध होने या साईं बाबा की पूजा से सूखा पड़ने जैसी बातें शंकराचार्य के रूप में मान्यता प्राप्त स्वामी स्वरूपानंद के मुंह से सामने आना बेहद आश्चर्यजनक और शर्मनाक है।
क्या सच में महात्मा गांधी ने धर्म को राजनीति से जोड़ा था?

क्या सच में महात्मा गांधी ने धर्म को राजनीति से जोड़ा था?

‘अंडरस्टैंडिंग दी फाउंडिंग फादर्स’ केवल भारत के महान नेताओं के राजनीतिक जीवन को ही समझने का प्रयास नहीं है बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पौत्र और प्रख्यात विद्वान एवं शिक्षाविद राजमोहन गांधी ने इस किताब में भारतीय राष्ट्रवाद के उन शिल्पकारों की विरासत के आसपास पैदा हो रहे सवालों पर एक रोशनी डालने का प्रयास किया है जो आज राजनीतिक परिचर्चाओं में अच्छी-खासी सुर्खियां बटोर रहे हैं।
चर्चाः रंग और रोशनी से राजनीति | आलोक मेहता

चर्चाः रंग और रोशनी से राजनीति | आलोक मेहता

रंगों का त्योहार होली हो या रोशनी का उत्सव दीवाली- समाज के हर वर्ग को साथ मिलकर खुशियां बांटने की प्रेरणा देता है। यूं देश के शीर्ष नेता औपचारिक शुभकामना संदेश देते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में राजनीति में सक्रिय नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच जिस तरह की जहरभरी पिचकारियां चलती हैं, वह समाज और लोकतंत्र के लिए खतरनाक बनती जा रही हैं।
अमेरिकी विश्वविद्यालय ने हिन्दू अध्ययन केन्द्र के लिए मिली अनुदान राशि लौटाई

अमेरिकी विश्वविद्यालय ने हिन्दू अध्ययन केन्द्र के लिए मिली अनुदान राशि लौटाई

अमेरिका के एक शीर्ष विश्वविद्यालय ने संकाय सदस्यों और छात्रों द्वारा अनुदानकर्ताओं पर चरमपंथी विचारधारा का होने और दक्षिण चरमपंथी विचारधारा से प्रेरित होने का आरोप लगाए जाने के बाद हिन्दू और भारत अध्ययन केन्द्र बनाने के लिए मिली 30 लाख डॉलर की अनुदान राशि वापस कर दी है।
धर्म,बीफ या जाति नहीं, विकास होगा बंगाल में हमारा चुनावी मुद्दाः कैलाश विजयवर्गी

धर्म,बीफ या जाति नहीं, विकास होगा बंगाल में हमारा चुनावी मुद्दाः कैलाश विजयवर्गी

भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व में अपनी एक अलग पहचान बना चुके मध्य प्रदेश के कैलाश विजयवर्गीय हरियाणा के बाद पश्चिम बंगाल में जीत की रणनीति बनाने में मशगूल है। भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के पास पश्चिम बंगाल की जिम्मेदारी है। स्वाभाविक ही है कि उनके पास पश्चिम बंगाल से चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवार टिकट की आस लगाए उनके पास पहुंचने लगे हैं। पश्चिम बंगाल में उनकी रणनीति पर आउटलुक की ब्यूरो प्रमुख भाषा सिंह ने उनसे विस्तृत बातचीत की। पेश हैं अंश-
चर्चाः कहां हैं धर्म के रखवाले | आलोक मेहता

चर्चाः कहां हैं धर्म के रखवाले | आलोक मेहता

सीताराम, राधेश्याम, लक्ष्मीपति विष्‍णु, शिव-पार्वती की जयकार के साथ धर्म ध्वजा फहराने वाले धर्मगुरु, नेता, समाजसेवी की आवाज अहमदाबाद-पुणे में क्यों नहीं सुनाई दी? ब्रह्मांड न सही, विश्व हिंदू परिषद के गरजने वाले नेता तिलक और कमंडल के साथ मातृशक्ति के लिए मैदान में ‘संकीर्ण’ और सत्ता व्यवस्‍था के समक्ष खड़े क्यों नहीं दिखाई दिए?
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