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न्यायिक नियुक्तियां - पारदर्शिता हो, आजादी भी

न्यायिक नियुक्तियां - पारदर्शिता हो, आजादी भी

संविधान का अनुच्छेद 124 मूल रूप से यह कहता है, 'सुप्रीम कोर्ट के हर जज की नियुक्ति राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के संबंधित जजों से सलाह-मशविरे से करेंगें जिसमें भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) से हमेशा सलाह ली जाएगी। जजों की नियुक्ति एवं तबादले में किसकी चलेगी इसे लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका में 1980 के दशक से ही जोर-आजमाइश चल रही है।
समीक्षा - बॉम्बे वेल्वेट

समीक्षा - बॉम्बे वेल्वेट

अनुराग कश्यप अपनी फिल्में अंधेरा बुनते हैं। ऐसा अंधेरा जिससे सभी का साबका पड़ता है। लेकिन सभी दौड़ते हुए इसलिए आगे निकल जाते हैं कि शायद आगे रोशनी की किरणें हों। अनुराग फिल्मों के सिरे इतनी आसानी से पकड़ में नहीं आते कि दर्शक उन्हें पकड़ कर फिल्मों की परद में घुसता चला जाए।
विवादित कॉलेजियम एवं न्यायिक नियुक्ति आयोग पर राष्ट्रपति हस्तक्षेप करेंः बार एसो

विवादित कॉलेजियम एवं न्यायिक नियुक्ति आयोग पर राष्ट्रपति हस्तक्षेप करेंः बार एसो

अखिल भारतीय बार संघ (एआईबीए) ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से शिकायत की है कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में कम से कम 125 जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में देरी पूर्ववर्ती कॉलेजियम प्रणाली खत्म करने से उत्पन्न हुई संवैधानिक शून्यता के कारण हो रही है। इसके अलावा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के गठन में भी देर की जा रही है।
समीक्षा - पीकू

समीक्षा - पीकू

शुजीत सरकार की नई फिल्म पीकू वैसे तो पारिवारिक कहानी है, पर आजकल पूरी तरह पारिवारिक कहानियों का दौर और परिभाषा दोनों बदल गई है। शायद अभी भी कुछ दर्शक यह न पचा पाएं कि एक पिता किसी तीसरे व्यक्ति के सामने बेटी के लिए कहे, ‘शी इज नॉट वर्जिन।’ फिर भी यह ऐसी फिल्म है जो पारिवारिक मुद्दों और बूढ़ों की समस्याओं पर हल्के-फुल्के ढंग से रोशनी डालती है। अच्छा लगता है जब नकारा श्रेणी में आ गई नई पीढ़ी की लड़की पिता की खातिर शादी नहीं कर रही और कहती है, ‘एक वक्त के बाद माता-पिता को बच्चे ही जिंदा रखते हैं।’
समीक्षा - उपन्यास डार्क हॉर्स

समीक्षा - उपन्यास डार्क हॉर्स

‘डार्क हार्स’ लेखक नीलोत्पल मृणाल का पहला उपन्यास तो है ही, साथ ही इसके प्रकाशक ‘शब्दारंभ प्रकाशन’ की भी पहली किताब है। जिस तरह से इस उपन्यास के लोकार्पण के महज सप्ताह भर के भीतर ही पहले संस्करण की सारी प्रतियां पाठकों के पास पहुंच गईं और दूसरे संस्करण के लिए प्रीबुकिंग जारी है, इस ऐतबार से उम्मीद है कि यह उपन्यास हिंदी साहित्य में बेस्ट सेलर’ हो सकता है। हालांकि, प्रूफ की गलतियों को लेकर प्रकाशक को सोचना होगा, जो खाने में कंकर की तरह कहीं-कहीं चुभती हैं, लेकिन वहीं यह भी सत्य है कि किसी प्रकाशक के लिए प्रूफ की गलतियों को सुधारना एक अनवरत यज्ञ की तरह होता है, जो हमेशा जारी ही रहता है।
समीक्षा गब्बर इज बैक

समीक्षा गब्बर इज बैक

अब तो कालिया को पूछना पड़ेगा, ‘तेरा क्या होगा गब्बर?’ पूरी फिल्म देखते हुए लगता है हीरो का नाम गब्बर सिर्फ इसलिए है कि शोले के कुछ कालजयी संवादों को दोबारा कहा जा सके। यह अलग बात है कि यहां गब्बर खलनायक नहीं नायक है
एनजेएसी मामला: वकील को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

एनजेएसी मामला: वकील को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

उच्चतम न्यायालय ने अधिवक्ता एम.एल. शर्मा को उच्च न्यायपालिका के लिए जजों की नियुक्ति संबंधी नए कानून को चुनौती देती उनकी जनहित याचिका में गैर जिम्मेदार और अपमानजनक आरोप लगाने पर नोटिस जारी करते हुए कहा कि यह राजनीतिक मंच नहीं है।
एनजेएसी मुद्दा: अभी कोई संवैधानिक संकट नहीं

एनजेएसी मुद्दा: अभी कोई संवैधानिक संकट नहीं

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के दो महत्वपूर्ण सदस्यों को चुनने वाली कमेटी में शामिल होने से प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच.एल. दत्तू के इनकार से इस आयोग के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान उठने लगे हैं और कुछ लोग इसे संवैधानिक संकट भी करार देने लेगे हैं मगर कानून के जानकार ऐसा नहीं मानते।
परमाणु हथियारों का जखीरा खत्म हो: ईरान

परमाणु हथियारों का जखीरा खत्म हो: ईरान

ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ ने मंगलवार को यहां एनपीटी समीक्षा सम्मेलन में कहा, परमाणु हथियार संपन्न देशों ने अपने परमाणु हथियारों को समाप्त करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं की है।
समीक्षा- मि. एक्स

समीक्षा- मि. एक्स

किसी साधारण बात को खास बनाने की जो भी संभव कोशिश हो सकती है, विक्रम भट्ट ने की है। थ्रीडी चश्मा, गायब होने वाला नायक, अंग्रेजी फिल्मों की तरह मारधाड़, विज्ञान के (कृपया बेतुका पढ़ें) चमत्कार आदि-आदि। फिर भी बेचारे दर्शक को समझ नहीं आता कि छोटे और ग्लैमरस कपड़ों में सिया वर्मा (अमायरा दस्तूर) दरअसल कैसी वाली पुलिस बनी हैं। रघु राठौर (इमरान हाशमी) पता नहीं कैसे सुपरकॉप बनें हैं जो न पहले अपने पुलिसिए बॉस का खुरपेंची दिमाग समझ पाए न बाद में अपनी पुलिसिया गर्लफ्रैंड का। मतलब दो-दो बार धोखा।
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