क्या ईरान के मुद्दे पर अमेरिका और इस्राइल के दशकों पुराने संबंध फीके पड़ जाएंगे? क्या ईरान इन दोनों चिर मैत्री में बंधे देशों के बीच दरार डाल देगा? अगर इ्स्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के वर्तमान अमेरिका दौरे की घटनाओं को देखें तो आभास कुछ-कुछ ऐसा ही होता है।
शांतिपूर्ण नेपाल भारत के भी राष्ट्रीय हित में है। यह बात नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई ने दिल्ली यात्रा के दौरान कही। उन्होंने कहा कि नेपाल में संविधान तैयार करने की प्रक्रिया में भी भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। लेकिन भट्टाराई ने यह भी जोड़ा कि नेपाल में अंदरूनी मामलों में किसी भी बाहरी हस्तक्षेप का स्वागत नहीं किया जायेगा।
देश की समुद्री सीमा पर भारत के लिए चिंता की नई वजह पैदा हो गई है। पड़ोसी देश मालदीव के भारत समर्थक समझे जाने वाले पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को पुलिस ने आतंकवाद रोधी कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया है। नशीद वर्तमान में विपक्षी नेता हैं।
नोबल पुरस्कार विजेता और नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति अमर्त्य सेन ने गहरी पीड़ा से लिखे पत्र में इस बात का खुलासा किया है कि केंद्र सरकार उन्हें इस विश्वविद्यालय के कुलपति के तौर पर दूसरी पारी नहीं देने की इच्छुक है। इस पत्र के बाद से आकादमिक जगत में बढ़ती राजनीतिक दखलंदाजी पर तीखी चर्चा शुरू हो गई है।
पेट्रोलियम मंत्रालय से दस्तावेज लीक मामले में गिरफ्तार आरोपी आसाराम के बारे में बताया जाता है कि वह पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का ही चपरासी है जबकि शांतनु सैकिया पत्रकार हैं
महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) सरकार में उपमुख्यमंत्री और राज्य के गृहमंत्री रहे वरिष्ठ राकांपा नेता आर.आर. पाटिल का सोमवार को 57 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है।
चुनिंदा नायकों या खलनायकों की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के कारण इतिहास का सम्यक विवेचन नहीं हो पाता। जैसे गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना और माउंटबेटन पर ज्यादा जोर देने से हमें भारत विभाजन के बारे में कई जरूरी प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते। मसलन, देसी मुहावरे में आम जनता को अपनी बात समझाने में माहिर और उनमें आजादी के लिए माद्दा जगाने वाले गांधी अपने तमाम सद्प्रयासों के बावजूद नाजुक ऐतिहासिक मौके पर आम हिंदू-मुसलमान को एक-दूसरे के प्रति सांप्रदायिक दरार से बचने की बात समझाने में क्यों विफल रहे, नोआखली जैसी अपनी साक्षात उपस्थिति वाली जगह को छोडक़र? जिन्ना की महत्वकांक्षा और जिद को कितना भी दोष दें, कलकत्ता और अन्य जगहों का आम मुसलमान क्यों उनके उकसावे पर पाकिस्तान हासिल करने के लिए खून-खराबे पर उतारू हो गया?