भारत समेत पूरी दुनिया में कुएं, तालाब,बावड़ियां सूख रही हैं,नदियां सिकुड़ रही हैं, जंगल काटे जा रहे हैं और वन्य जीव लुप्त हो रहे हैं। एक ओर प्रकृति बचाने के लिए विश्व स्तर पर सेमिनार आयोजित हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर पश्चिमी राजस्थान (थार) के कुछ इलाकों में बिश्नोई समुदाय के लोगों का जीवन प्रकृति को जिंदा रखने की नायाब मिसाल है। कुछ दिन इन लोगों के बीच रहकर करीब से इनकी जिंदगी देखने का मौका मिला।
प्रकृति करगेती की यह पहली कहानी है। इसी कहानी पर उन्हें प्रतिष्ठित राजेन्द्र यादव हंस कथा सम्मान मिला है। दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातक प्रकृति मुंबई में नेटवर्क 18में प्रोमो प्रोड्यूसर के पद पर काम करती हैं। कहानी लिखने से पहले प्रकृति कविताएं लिखती रही हैं। पहाड़ों के नाम लिखी गई उनकी कविताएं कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
दो साल पहले फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र में कदम रख चुकीं मशहूर अभिनेत्री और टीवी प्रस्तोता मंदिरा बेदी ने इस बार अपने ही शहर दिल्ली में सर्दियों के लिए साड़ियों का अपना पहला संग्रह पेश किया है।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं की मानें तो प्राकृतिक माहौल में सैर करने से अवसाद से दूर रहा जा सकता है। जो लोग अवसाद में रहते हैं और शहरी इलाकों या बहुत भीड़ वाली जगह पर रहते हैं या ऐसी ही जगहों पर सैर करते हैं उन्हें सलाह है कि प्रकृति के थोड़ा करीब जाएं।
हिमाचल प्रवास के दौरान कहीं वैसे रसीले आडू भी नहीं दिखे जैसे हमने राज्य में घुसने के ठीक पहले पंचकुला में लिए थे। और लाल-लाल चेरी ने हमें सिर्फ नारकंडा के आसपास राजमार्ग पर लुभाया। पहाड़ी ढलानों पर सेबों के बागान-दर-बागान दिखते चले गए और हम लोगों से पूछते रहे, कहां गए, कहां गए हिमाचल के मशहूर सेब? शायर मिलते तो कह देते, सेबों को किन्नौरी बालाओं के रुखसार की रंगत में देखिए। लेकिन हमें पता चला, हिमाचल में इस बार फलों की पैदावार में जबर्दस्त गिरावट आई है। फलों में वहां मुख्य पैदावार सेब और नाशपाती की होती है और इन दोनों का उत्पादन इस वर्ष 50-60 प्रतिशत कम हुआ है।