कलात्मक हाॅकी को बढ़ावा देने के लिए हाकी इंडिया लीग के चौथे सत्र में नए नियमों के तहत एक मैदानी गोल को दो गिना जाएगा। इस तरह के और भी कई नए नियम लागू किए गए हैं।
खस्ताहाल प्रशासन वाले राज्य भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरुस्त करने और भोजन का अधिकार अधिनियम को क्रियान्वित करने में सक्षम हैं- मध्यप्रदेश इसका नवीनतम उदाहरण है।
पिछले साल भर में दस लाख से ज्यादा भारतवासियों ने स्वेच्छा से अपनी रसोई गैस सब्सिडी छोड़ी। एक विकासशील देश में मोदी सरकार ने इन लोगों को इसके लिए प्रेरित करने का अभियान यह कहते हुए छेड़ा कि पैसा ज्यादा जरूरतमंद लोगों तक पहुंचना चाहिए। सरकारी अनुदानों के बारे में आख्यान बदलने का यह प्रयास नई राह बनाता है। ज्यादातर सब्सिडी कम जरूरतमंद लोग चट कर गए हैं, इसके बारे में बहुत सार्वजनिक विमर्श हुआ है।
भारत में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का कानून लागू है। सरकारी कार्यालयों में चाय पहुंचाते बच्चों को देख कर ये बखूबी जाना जा सकता है कि हमारे देश में ये कानून किस तरह लागू है। शिक्षा न तो निशुल्क है और न ही अनिवार्य। निजी विद्यालयों में मोटी फीस वसूलते हैं, सरकारी विद्यालय भी किसी न किसी बहाने कुछ पैसा वसूल ही लेते हैं।
कंप्यूटर प्रणालियों पर हद से अधिक निर्भरता कितनी नुकसानदेह हो सकती है यह शायद दुनिया के सबसे विकसित देश अमेरिका को अब समझ में आए। दरअसल कंप्यूटर प्रणाली में गड़बड़ होने के कारण पूरी दुनिया में अमेरिका की वीजा जारी करने की प्रक्रिया बाधित हो गई है।
राजस्थान में पिछले डेढ़-दो साल में दलित और सामाजिक तौर पर उपेक्षित वर्गों के खिलाफ अत्याचार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है। पिछले छह माह में दलित अत्याचारों की लहर सी आ गई है।
बड़ी-बड़ी उम्मीदों और वादों के साथ केंद्र की सत्ता में आई नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अपना एक साल पूरा करने जा रही है। इस मौके पर सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस एक साल के दौरान अपने वादों और नारों पर खरे उतर पाए? इस एक साल में उनका रिपोर्ट कार्ड कैसा रहा? अगर आर्थिक नजरिये से देखा जाए तो मोदी सरकार का रिपोर्ट कार्ड बी ग्रेड का कहा जाएगा।
कंपनियों के कमजोर तिमाही नतीजों से कोषों एवं निवेशकों द्वारा चुनिंदा शेयरों की बिकवाली बढ़ाये जाने से बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स आज शुरआती कारोबार में 139 अंक कमजोर रहा है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने वाले कानून की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई के लिए गठित संविधान पीठ के समक्ष आज हितों के टकराव और पक्षपात का मुद्दा एक बार फिर उठा।