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Search Result : "मुजफ्फरनगर दंगा"

जेल में मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपियों से मिले केंद्रीय मंत्री

जेल में मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपियों से मिले केंद्रीय मंत्री

केंद्रीय कृषि राज्‍यमंत्री मंत्री संजीव बालियान ने कल मुजफ्फरनगर जिला कारागार का दौरा किया और वर्ष 2013 के कुछ दंगा आरोपियों से मुलाकात की है।
जगदीश टाइटलर पर हमला, आरोपी युवक गिरफ्तार

जगदीश टाइटलर पर हमला, आरोपी युवक गिरफ्तार

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर के साथ एक सिख युवक द्वारा कथित दुर्व्यवहार का मामला सामने आया है। बताया जा रहा है कि उक्त युवक ने टाइटलर के साथ गाली-गलौज और धक्का-मुक्की की।
दंगा फैलाने के पुराने मामले में आप विधायक गिरफ्तार

दंगा फैलाने के पुराने मामले में आप विधायक गिरफ्तार

दिल्ली के मॉडल टाउन विधानसभा क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के विधायक अखिलेश पति त्रिपाठी को दिल्ली पुलिस ने आज दंगा फैलाने के एक मामले में गिरफ्तार कर लिया।
मुजफ्फरनगर दंगाः मंत्री समेत भाजपा नेताओं के खिलाफ वारंट

मुजफ्फरनगर दंगाः मंत्री समेत भाजपा नेताओं के खिलाफ वारंट

मुजफ्फरनगर दंगे के मामले में अदालत में नहीं पेश होने पर एक स्थानीय अदालत ने केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान समेत भाजपा के कई नेताओं के विरुद्ध जमानती वारंट जारी किया।
मुजफ्फरनगर दंगे: जांच आयोग ने राज्‍यपाल को सौंपी रिपोर्ट

मुजफ्फरनगर दंगे: जांच आयोग ने राज्‍यपाल को सौंपी रिपोर्ट

करीब दो साल के इंतजार के बाद मुजफ्फरनगर दंगे के गुहनगारों के नाम उजागर हो सकते हैं। दंगों की जांच कर रहे जस्टिस विष्‍णु सहाय आयोग ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट राज्यपाल राम नाईक सौंपी दी है।
प्रतिरोध: देश भर में 'मुजफ्फरनगर बाकी है' का प्रदर्शन

प्रतिरोध: देश भर में 'मुजफ्फरनगर बाकी है' का प्रदर्शन

2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म मुजफ्फरनगर बाकी है काफी चर्चा में रही है। यह फिल्म दंगे के दौरान के हालात और वहां के स्थानीय लोगों की भावनाओं का बखूबी इजहार करती है। फिल्म के जरिये उन तत्वों की तरफ इशारा किया गया है जो मुजफ्फरनगर के हालात के जिम्मेदार हैं। यही वजह है कि इस फिल्म का प्रदर्शन कई संगठनों के गले नहीं उतर रहा है। कई बार फिल्म के प्रदर्शन को बलपूर्वक रोकने की कोशिश की गई। ऐसे ही दमनकारी आक्रमणों के प्रतिरोध में फिल्म की टीम और अन्य कई संगठनों ने मिलकर एक ही दिन पूरे देश में फिल्म का प्रदर्शन किया।
मुझ से पहले माउंटेन मैन दशरथ मांझी को मिले अवार्ड

मुझ से पहले माउंटेन मैन दशरथ मांझी को मिले अवार्ड

साधरण कद-काठी, साधारण चेहरा-मोहरा। सांवली रंगत लेकिन जन्मजात सहज अभिनय करने की कुशलता। यह हैं, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे बुढाना में जन्में और पले-बढ़े नवाजुद्दीन सिद्दीकी। नवाजुद्दीन किसी बड़े फिल्मी परिवार से नहीं हैं, न ही उनका बॉलीवुड में कोई गॉडफादर रहा। अपने दम पर नाम और शोहरत कमाने वाले नवाजुद्दीन के लिए यह सब बहुत आसान नहीं था। मुजफ्फरनगर में रहते हुए जहां उनके पास मनोरंजन के लिए टीवी नहीं था, उन्होंने लोक कलाकारों के बीच तमाशा, रामलीला देखते हुए अपना बचपन बिताया। नवाजुद्दीन उन्हीं कलाकारों की तरह होना चाहते थे। वैसे ही बनना चाहते थे। पर कैसे यह उन्हें उस वक्त पता नहीं था। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से स्नातक के बाद उन्होंने कई तरह की नौकरियां कीं। यहां तक की चौकीदार की भी। फिर भी अभिनय की भूख थी कि खत्म नहीं हुई थी। विपरीत परिस्थितियों ने उन्हें और मजबूत कर दिया। इसी बीच उन्हें राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के बारे में पता चला और बस अभिनय के गुर सीखने वह यहां चले आए। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में रहते हुए उन्होंने कई नाटकों को करीब से जाना। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से कोर्स पूरा करने के बाद दिल्ली में ही उन्होंने कई नाटक किए और फिर वहीं चले आए, जो अभिनय की दुनिया में स्थापित होने के लिए मक्का है, मुंबई। एक लंबे संघर्ष के बाद खुरदुरे चेहरे वाला यह अभिनेता निर्माता-निर्देशक की पहली पसंद बनता जा रहा है। ब्लैक फ्राइडे, गैंग्स ऑफ वासेपुर, तलाश, बदलापुर, बजरंगी भाईजान के बाद अब सभी की निगाहें उनकी आने वाली फिल्म मांझी- द माउंटेनमैन पर टिकी हुई हैं।
शांत हो रहा है जमशेदपुर

शांत हो रहा है जमशेदपुर

इस्पात नगर जमशेदपुर में स्थिति सामान्य होने के बाद शनिवार 25 जुलाई को कर्फ्यू हटा लिया गया वहीं दंगा प्रभावित चार थाना क्षेत्रों में सुबह पांच बजे से लेकर शाम आठ बजे तक इसमें ढील दी गई है। एक वरिष्ठ जिला अधिकारी ने बताया कि कहीं से किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं है।
दास्ताने दंगाः औरतों का वाकई घर नहीं होता

दास्ताने दंगाः औरतों का वाकई घर नहीं होता

दंगा कैसा भी हो कहीं का भी हो उसकी सबसे ज्यादा मार औरतों और बच्चों पर पड़ती है। बीती 25 मई को हरियाणा के गांव अताली में फैली सांप्रदायिक हिंसा में भी ऐसा ही हुआ। इतिहास गवाह है कि दंगों की सबसे कमजोर कड़ी महिलाएं रही हैं। इसे देखते हुए अताली गांव के मुसलमान परिवारों ने 25 मई को हुए पहले हमले के फौरन बाद अपनी बहू-बेटियों महफूज ठिकानों पर भेज दिया। अताली में 4 जुलाई हुए दूसरे हमले में मुसलमान घरों में जवान बहू-बेटियां नहीं थीं।
दास्ताने दंगाः ‘अताली को, मुजफ्फरनगर नहीं बनने देंगे’

दास्ताने दंगाः ‘अताली को, मुजफ्फरनगर नहीं बनने देंगे’

मैंने मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगों की कवरेज भी की थी। अताली (बल्लभगढ़-हरियाणा) के सांप्रदायिक दंगों और मुजफ्फरनगर के दंगों में बहुत सी समानताएं पाईं लेकिन असमानता है तो सिर्फ एक। वह यह है कि अताली के 150 से ज्यादा गांव छोड़ने वाले मुसलमानों का कहना है, ‘ इसे मुजफ्फरनगर नहीं बनने देंगे, यह अताली है अताली, गांव हमारा था, हमारा है, हम वहां जाएंगे। इंशाल्ला हो सका तो ईद गांव में होगी।’
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