विद्या बालन के खाते में एक हिट का काफी दिन से सूखा है। बेगम जान को देख कर लगता है कि यह सूखा अभी लंबा चलेगा। दर्जनों कलाकारों, विद्या की बिल्लौरी आंखों और देशभक्ति टाइप माहौल के बावजूद यह फिल्म अंत में लंबी गहरी ऊब के सिवाय कुछ नहीं देती।
भारतीय हिन्दी फिल्म निर्माता और निर्देशक महेश और मुकेश भट्ट ने इस बार श्रीजीत मुखर्जी को उन्हीं की फिल्म 'राजकहिनी' हिंदी में बनाने की जिम्मेदारी दी थी, जो उन्होंने ‘बेगम जान’ बनाकर पूरी कर ली है। बांग्ला भाषा में बनी फिल्म ‘राजकाहिनी’ वर्ष 2015 में रिलीज हुई थी। हिंदी सिनेमा ने इससे पहले भी कई भारतीय भाषाओं की हिट फिल्मों का रिमेक किया है।
अपने ज़माने की बेहतरीन गायिका मुबारक बेगम दुनिया से विदा हो गईं । 'शो मस्ट गो ऑन' के दर्शन में यक़ीन रखने वाली फ़िल्म इंडस्ट्री की आबोहवा पर उनकी रुख़्साती से कोई फ़र्क़ ना तो पड़ना था और ना ही पड़ा । बेशक आम भारतीय आज भी उनके गीत 'कभी तनहाइयों में यूँ तुम्हारी याद आएगी' में खोए हों मगर फ़िल्म उद्योग ने तो उन्हें वर्ष 1980 में तब ही भुला दिया था जब उन्होंने आख़िरी बार किसी हिंदी फ़िल्म के लिए गाना गाया था ।
गायिका मुबारक बेगम के जाने की ख़बर आयी तो दिल बैठ गया। मेरा उनसे करीब दस साल पुराना नाता रहा है। ज़माने ने वो हक़ मुबारक बेगम को कभी नहीं दिया जिसकी वो हक़दार थीं। मुबारक बेगम को ज्याकदातर बस फिल्मय ‘हमारी याद आयेगी’ के गाने ‘कभी तन्हाोईयों में यूं हमारी याद आयेगी/ अंधेरे छा रहे होंगे कि बिजली कौंध जायेगी’...के ज़रिये याद कर लिया जाता है। या फिर ‘मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही’ (फिल्मं हमराही)। लेकिन मुबारक बेगम ‘वन सॉन्गा वंडर’ नहीं थीं।
कभी तनहाइयों में हमारी याद आएगी...सन 1961 का सबसे बड़ा हिट रोमांटिक गाना था। इसे गाया था, मुबारक बेगम ने। अस्सी की उम्र में मुबारक बेगम इस दुनिया को अलविदा कह गईं। उनके पीछे तनहाईयों में अब बस उनकी याद है।