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रजनी कोठारी: लोकतंत्र के क्रांतिकारी संदेशवाहक

रजनी कोठारी: लोकतंत्र के क्रांतिकारी संदेशवाहक

आज जब अच्छे दिनों को तरह-तरह के अतिवादी तरीकों से परिभाषित किया जा रहा है। तब रजनी कोठारी की कमी बहुत खलती है। अस्वस्थता, जीवन साथी के न रहने और छह साल पहले बेटे स्मितु कोठारी के न रहने से वह पिछले एक दशक से कुछ नहीं लिख पा रहे थे। लेकिन उनका किया और लिखा इतना है कि कोई भी नई पहल लेने वाला समूह उसमें से अपने लिए पर्याप्त दिशा संकेत खोज सकते हैं।
सियासी चौराहे पर अकेले ही ठिठके

सियासी चौराहे पर अकेले ही ठिठके

क्या कारण है कि जिस आडवाणी ने पहली बार जनसंघ का अध्यक्ष बनने पर 1973 में एक झटके में बलराज मधोक जैसी मजबूत शख्सियत को पार्टी से जड़ से उखाड़ फेंका, 1974 में जयप्रकाश आंदोलन के उड़ते तीर को पार्टी के लिए पकड़ बाद की इमरजेंसी के प्लावन मं सांप्रदायिकता की अस्पृश्यता धोने में गजब की फुर्ती दिखाई, संघ परिवार के संगठनों द्वारा आजादी के वक्त से ईंट-बैठाकर सुलगाए जा रहे बाबरी-मस्जिद रामजन्म भूमि के मसले को गरमाने के अवसरवादी क्षण को 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के संकट में अचूक पहचाना, 1996 में भाजपा की सत्ता के लिए अन्य दलों के साथ जरूरी गठजोड़ बनाने के वास्ते खुद पीछे हटकर वाजपेयी को आगे करने की उस्तादी दिखाई, आज वही अपने नेतृत्व में न सहयोगी गठबंधन को उत्साहित कर पाए न अपनी पार्टी की दूसरी प्रांत के नेताओं को?
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