आनंद एल राय निर्माता के रूप में शायद ‘तनु वेड्स मनु’ से आगे कुछ चाह रहे थे। इस बार उन्होंने निर्देशन की बागडोर आर एस प्रसन्ना के हाथों में दे दी। फिल्म के कई संवादों पर खूब तालियां बजीं, ठहाके भी लगे। बालकनी में बैठने वाले शायद सीटी न बजा पाएं पर जो लोग ड्रेस सर्किल में बैठते हैं उनके लिए उसकी पूरी छूट है। इसका सिर्फ इतना सा कारण है कि फिल्म पहली बार सेक्स करने में अक्षम पुरुष पर खुल कर बात करती है।
राजौरी गार्डन उपचुनाव और दिल्ली नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी की नाकामी के बाद जो लोग केजरीवाल की राजनीति को खत्म मान चुके थे, बवाना का नतीजा उनकी राय बदलने के लिए काफी है।