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Search Result : "सत्ता नियंत्रण"

मिठाई के बजाय पाकिस्तान से गोलीबारी, 6 लोगों की मौत

मिठाई के बजाय पाकिस्तान से गोलीबारी, 6 लोगों की मौत

पाकिस्‍तान 15 अगस्‍त के दिन भी सीमा पर गोलीबारी से बाज नहीं आया। इस मौके पर पाकिस्तानी रेंजरों के साथ मिठाइयों का पारंपरिक आदान-प्रदान भी नहीं हुआ। शनिवार से पाकिस्तानी सुरक्षा बलों की ओर से कई भारतीय चौकियों और रिहायशी इलाकों में जारी गोलीबारी और मोर्टार हमलों में एक महिला और एक सरपंच समेत छह लोगों की मौत हो गई जबकि करीब 9 लोग घायल हैं।
जगेन्द्र सवाल उठाता था, सत्ता ने मार दिया

जगेन्द्र सवाल उठाता था, सत्ता ने मार दिया

शाहजहांपुर के पत्रकार जगेन्द्र सिंह ने अपने मृत्‍युपूर्व बयान में खनन माफिया, स्मैक तस्करी और बलात्कार व हत्या आरोपी उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्यमंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा के इशारे पर पुलिस द्वारा उन्‍हें जिंदा जलाने की बात कही थी। इस घटना ने पूरे देश को सकते में डाल दिया है। लेकिन मामले में नामजद होने के बावजूद अभी तक मंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा को गिरफ्तार नहीं किया गया है। आखिरकार जगेन्‍द्र की मौत के जिम्‍मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए उनके पूरे परिवार को अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठने को मजबूर होना पड़ा। परिवार के सदस्यों का आरोप है कि राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा उन पर मुकदमा वापस लेने का दबाव डलवा रहे हैं।
बेजा दखल से खेल मैदान दलदल में

बेजा दखल से खेल मैदान दलदल में

दुनिया की सबसे अमीर खेल संस्था इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फुटबॉल एसोसिएशन (फीफा ) भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण संकट में है लेकिन पिछले एक दशक से भी अधिक समय से बतौर अध्यक्ष सेप ब्लास्टर बेफिक्र हैं। फीफा के चुनाव में पहले से ही जीत के प्रति आश्वस्त ब्लास्टर को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यूरोपियन फुटबॉल फेडरेशन (यूईएफए) जैसा प्रभावशाली संघ और कई सारे प्रायोजक उन्हें हटाने पर आमदा हैं। भारतीय ओलिंपिक संघ (आईओए) में अध्यक्ष एन. रामचंद्रन को हटाने के लिए कुछ ऐसी ही उठापटक चल रही है और आईओए कई खेमों में बंट गया है।
गजेंद्र ने सत्ता, सिस्टम और राजनीति का मुंह नोंच लिया !

गजेंद्र ने सत्ता, सिस्टम और राजनीति का मुंह नोंच लिया !

ये आंकड़ा हर किसी को पता है कि इस देश में 1995 से अब तक साढ़े तीन लाख किसानों-खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की है। दैनिक औसत निकालें तो 50 लोग हर रोज जान दे रहे हैं। 20 साल में देश की सत्ता और सिस्टम इन मौतों के जिम्मेदारों की शिनाख्त नहीं कर पा रही है। चूंकि, शिनाख्त नहीं हुई इसलिए आगे की कार्रवाई की भी जरूरत नहीं। एक खेल चल रहा है जिसमें राजनीतिक दल एक-दूसरे को निशाना बना रहे हैं। उनका ध्यान समस्या ओर उसके समाधान पर नहीं है, बल्कि खुद को दूसरों से उजला, ईमानदार और संवेदनशील दिखाने पर है। ऐसे में कोई गजेंद्र मरे तो मरता रहे, उनकी बला से।
पिपली लाइवः दिल्ली में किसान की जान के मायने

पिपली लाइवः दिल्ली में किसान की जान के मायने

शर्म इनको नहीं आती। एक किसान ने अपनी जान दी। उसने किस गहरे नैराश्य में डूबकर अपनी जिंदगी को फांसी लगाई, इस पर चर्चा करने के बजाय बाकी सारे पहलुओं पर बात पूरी बेहयायी के साथ बैटिंग चल रही है। किसान अपनी जेब में अपनी व्यथा की जो छोटी सी पुर्जी लेकर चल रहा था, वैसी ही पुर्जी लाखों किसानों ने आत्महत्या करने से पहले अपने दिलों में लिखी होगी।
आर्थिक जासूसी: गठजोड़ की गांठ खुले तो मानें

आर्थिक जासूसी: गठजोड़ की गांठ खुले तो मानें

सरकारी गलियारों में दूर तक पसरे हुए कॉर्पोरेट जगत के पंजे सार्वजनिक नीतियों को अपने स्वार्थ के लिए कैसे मोड़ते हैं, इसका पर्दाफाश नीरा राडिया टेप कांड ने कुछ वर्ष पहले किया था। सत्ता के गलियारों में वैसी ही कॉर्पोरेट घुसपैठ पर से वैसा ही पर्दा अब मंत्रालय जासूसी कांड उठा रहा है। प्याज के छिलकों की तरह इसकी परतें प्रतिदिन और खुलती जा रही हैं। लेकिन सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि इन परतों के नीचे छोटी-छोटी कठपुतलियां नचाने वाले बड़े-बड़े असली चेहरे सामने आते हैं या नहीं। और सामने आ भी जाएं तो उनके किए की कानूनी जवाबदेही ठहराई जाती है या नहीं।
बिहार में सत्ता संघर्ष तेज

बिहार में सत्ता संघर्ष तेज

बिहार में सत्ता का संघर्ष और तेज हो गया है। एक तरफ जनता दल यूनाइटेड से निकाले गए मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते तो दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनने का दावा ठोक दिया है।
सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

चुनिंदा नायकों या खलनायकों की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के कारण इतिहास का सम्यक विवेचन नहीं हो पाता। जैसे गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना और माउंटबेटन पर ज्यादा जोर देने से हमें भारत विभाजन के बारे में कई जरूरी प्रश्‍नों के उत्तर नहीं मिलते। मसलन, देसी मुहावरे में आम जनता को अपनी बात समझाने में माहिर और उनमें आजादी के लिए माद्दा जगाने वाले गांधी अपने तमाम सद्प्रयासों के बावजूद नाजुक ऐतिहासिक मौके पर आम हिंदू-मुसलमान को एक-दूसरे के प्रति सांप्रदायिक दरार से बचने की बात समझाने में क्यों विफल रहे, नोआखली जैसी अपनी साक्षात उपस्थिति वाली जगह को छोडक़र? जिन्ना की महत्वकांक्षा और जिद को कितना भी दोष दें, कलकत्ता और अन्य जगहों का आम मुसलमान क्यों उनके उकसावे पर पाकिस्तान हासिल करने के लिए खून-खराबे पर उतारू हो गया?
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