आरएसएस के एक बड़े नेता ने गोरक्षा को लेकर बड़ा बयान दिया है। कहा गया कि गोरक्षा को लेकर राजनीति करना काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। इसे संघर्ष का रूप देना सामाजिक पाप है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बराक ओबामा के समय में जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए जारी की गई नीतियों को खत्म करने वाले एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि पत्रकारिता का देश के सामाजिक सुधार के साथ लोगों में जागरुकता लाने में अहम योगदान है। राष्ट्रपति ने कहा कि देश की आजादी से लेकर वर्तमान में पत्रकारिता ने कई आयामों की स्थापना की है।
राजनीतिक कार्यकर्ता शाजिया इल्मी ने कहा कि पितृसत्तात्मकता एक मानसिकता है और नारीवाद इसी मानसिकता के खिलाफ लड़ाई है और यह किसी विशेष लिंग तक सीमित नहीं है। शाजिया ने बी बोल्ड फाॅर ए चेंज शीर्षक पर पैनल की चर्चा में यह बात कही। यह विषय इस साल के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का भी थीम है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को कहा कि उत्तर प्रदेश में विकास पिछले 14 साल से वनवास भोग रहा है और भाजपा कार्यकर्ताओं को जनता को राहत दिलाने के लिये राज्य का आगामी विधानसभा चुनाव एक जिम्मेदारी के तौर पर लड़ना होगा। मोदी ने एक बार फिर सबका साथ-सबका विकास का नारा बुलन्द करते हुए प्रदेश की जनता का आहवान किया कि वह जात-पात और अपने-पराये की भावना से उपर उठकर विकास के लिये भाजपा को वोट दे।
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने मंगलवार को कहा कि देश में कल्याण संबंधी कानून बनाए जाने और कदम उठाए जाने के 70 साल बाद भी सामाजिक न्याय प्रदान करने की जमीनी हकीकत निराशाजनक है। उन्होंने कहा, सामाजिक न्याय के मामले में हम कहां खड़े हैं ? सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए कल्याण संबंधी कानून बनाए जाने और कदम उठाए जाने के 70 साल बाद भी यह एक सवाल है जो गणराज्य के लोग राज्य से पूछ सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने जलवायु परिवर्तन से मुकाबले पर पीछे नहीं हटने पर जोर देते हुए दुनिया के नेताओं से अपील की है कि वे पेरिस में हुए ऐतिहासिक समझौते का समर्थन और पालन करें।
‘धर्म न केवल मनुष्य बल्कि प्राणिमात्र की एकता और सौहार्द्र की सीख देते हैं। अहिंसा और प्रेम हर धर्म के मूल में हैं। समाज का कोई भी धर्म हिंसा और वैमनस्य को स्वीकृति नहीं देता।’ सद्भावना सेवा संस्थान एवं इंटरफेथ फाउंडेशन के तत्वावधान में हुए “सामाजिक, धार्मिक परिदृश्यः परिवर्तन और जिम्मेदारियां” विषयक सेमिनार में आए विचारों का लब्बोलुआब करीब-करीब यही था।