अमेरिका में शराब के नशे में धुत यात्रियों ने 25 वर्षीय एक सिख कैब चालक से मारपीट की और उसकी पगड़ी खींची। पुलिस इस मामले की जांच संभावित घृणा अपराध के तौर पर कर रही है।
उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2002 में हुए गुजरात दंगों के मामलों की जांच के लिए गठित एसआईटी के प्रमुख आर के राघवन को आज इस जांच दल की अध्यक्षता से सेवामुक्त कर दिया।
मध्य-पश्चिमी ब्राजील में स्थित मातो ग्रोसो राज्य के एक जेल में हुए दंगे में 5 कैदियों की मौत हो गई जबकि 17 अन्य घायल हो गए हैं। जेल में दंगे प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच लड़ाई शुरू होने के कारण हुआ। इससे पहले भी कई बार इस तरह के दंगे हो चुके हैं, जिनमें कई कैदियों की जानें गई हैं।
सिख मूल की एक अमेरिकी लड़की को पश्चिम एशिया की निवासी समझते हुए एक श्वेत व्यक्ति ने उस पर हमला कर दिया, वह कथित तौर पर लेबनान वापस जाओ और तुम्हारा हमारे देश से कोई नाता नहीं है चिल्ला रहा था। दक्षिण एशियाई मूल के लोगों पर हो रहे सिलसिलेवार नस्ली हमलों का यह ताजा मामला है।
भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनके प्रधानमंत्रित्व काल के कई भाजपा नेता वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी के राजनीतिक कॅरिअर को समाप्त करने के पक्षधर थे। इन नेताओं में वाजपेयी कैबिनेट के ताकतवर मंत्री प्रमोद महाजन भी शामिल थे। यह दावा भाजपा के पूर्व सांसद प्रफुल्ल गोरादिया की किताब में किया गया है।
वेस्टइंडीज के तूफानी गेंदबाजों का दृढ़ता से सामना करने की पहचान बनाने वाले महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने 1993 में मुंबई हमलों के दौरान साहस दिखाते हुए एक परिवार को बचाया था। गावस्कर के बेटे रोहन ने कल रात मुंबई खेल पत्रकार संघ (एसजेएएम) के स्वर्ण जयंती लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से अपने पिता को सम्मानित किए जाने के दौरान यह घटना याद की।
नोटबंदी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर दूसरी बार केंद्र सरकार से कड़े सवाल किए हैं। शुक्रवार को शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि नोटबंदी से देश की जनता को परेशानी हो रही हैंं। कोर्ट ने कहा कि इस सच्चाई से केंद्र सरकार इनकार नहीं कर सकती। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा, नोटबंदी के बाद स्थिति गंभीर हो रही है। ऐसे हालात में देश की गलियों में दंगे भी हो सकते हैं।
वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगों की 32वीं बरसी पर राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनिल देव सिंह ने कहा है कि कर्तव्य की उपेक्षा करने वाले और दंगाइयों पर आंखें बंद कर लेने वाले सरकारी अधिकारियों को हिंसा में सहायता करने वाला घोषित किया जाना चाहिए।
देश के सामाजिक ताने-बाने को हमेशा के लिए बदल कर रख देने वाले 1984 के सिख विरोधी दंगों की रोंगटे खड़े करने वाली दास्तां को कहानियों के रूप में एक नई किताब में पेश किया गया है।