अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इराक में सैनिकों को भेजने और फिर उन्हें वापस बुलाने के अपने पूर्ववर्ती फैसले पर सवाल उठाया। उन्होंने इस युद्धग्रस्त देश में स्थिरता बनाए रखने के लिए सहयोग देने का आश्वासन दिया।
सेवानिवृत्त भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) अधिकारी, पूर्व सांसद और ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के नेता सैयद शहाबुद्दीन का आज तड़के नोएडा के जेपी अस्पताल में निधन हो गया। वह 82 वर्ष के थे। उनके परिवार में 4 बेटियां हैं।
भारत ने अपने ही हाथों आतंकवादी संगठन घोषित किए गए समूहों के नेताओं को प्रतिबंधित करने में महीनों लगाने पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तीखी आलोचना की है। भारत द्वारा यह एतराज पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया अजहर मसूद पर प्रतिबंध लगाने की भारत की कोशिश को तकनीकी आधार पर खटाई में डालने पर किया गया।
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) में भारत के दबदबे से सकते में आया पाकिस्तान अब इसकी काट तलाशने की कोशिश कर रहा है। इसके तहत पाकिस्तान चीन सहित ईरान और आस-पास के पश्चिम एशियाई गणराज्यों को शामिल कर एक वृहद दक्षिण एशियाई आर्थिक संगठन के निर्माण की संभावना तलाश रहा है। एक मीडिया रिपोर्ट में आज इसका खुलासा किया गया।
अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी के लिए एक अच्छी खबर है। दिल्ली की दो रामलीला समितियों ने नवाजुद्दीन को अपनी रामलीला में भूमिका देने की पेशकश की है। दरअसल अपने शहर मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना की रामलीला में उनके भागे लेने का विरोध किए जाने पर नवाज ने निराश होते हुए कहा था कि रामलीला में अभिनय करना उनके बचपन का सपना है।
फिल्म संस्थान पुणे के निदेशक और महाभारत में युधिष्ठर की भूमिका निभाने वाले गजेंद्र चौहान दिल्ली की लव-कुश रामलीला में रावण की भूमिका में नजर आएंगे। ग्रीन रूम में वह अपना मेकअप करवाते हुए ज्यादा बात तो नहीं कर पाए लेकिन इस भूमिका को लेकर वह काफी उत्साहित दिखे। ठेठ पंजाबी भाषा में वे दूसरे कलाकारों का हौसला बढ़ाते नजर आए।
अपने नए नाटक के साथ मंच पर वापसी कर रहे अभिनेता निर्देशक सतीश कौशिक का मानना है कि रंगमंच पर बॉलीवुड कलाकारों की मौजूदगी थियेटर में दर्शकों की तादाद बढ़ाने में मददगार होती है।
देश की आजादी के समय 1947 में हुए विभाजन के बाद परिवार के पाकिस्तान चले जाने के बावजूद मशहूर चित्रकार सैयद हैदर रजा ने भारत में ही रहने का फैसला किया था। उनके इस फैसले के पीछे उनकी मातृभूमि के प्रति वफादारी तो थी ही, लेकिन इसकी एक वजह महात्मा गांधी के प्रति उनका लगाव भी था।