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Search Result : "हिंदी कक्षाएं"

मैत्रेयी पुष्पा बनीं दिल्ली हिंदी अकादमी की उपाध्यक्ष

मैत्रेयी पुष्पा बनीं दिल्ली हिंदी अकादमी की उपाध्यक्ष

वरिष्ठ कथाकार मैत्रेयी पुष्पा हिंदी अकादमी की नई उपाध्यक्ष बन गई हैं। हिंदी अकादमी हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार–प्रसार और उसे बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनी दिल्ली सरकार की भाषा अकादमी है।
मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार समारोह

मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार समारोह

मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रतिष्ठित भवभूति अलंकरण एवं वागीश्वरी पुरस्कार समारोह का गरिमामय आयोजन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के वीथि संकुल सभागार, भोपाल में विख्यात कवि, कथाकार फिल्मकार उदयप्रकाश की अध्यक्षता, वरिष्ठ साहित्यकार-शिक्षाविद प्रोफेसर रमेश दवे के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ।
सात समंदर पार कविताओं का संसार

सात समंदर पार कविताओं का संसार

कनाडा हिंदू सोसाइटी, मोर्रिस्विल्ले के सांस्कृतिक भवन के प्रांगण में अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति और हिंदी विकास मंडल के तत्त्वाधान में कवि- सम्मलेन का आयोजन हुआ। कवि सम्मलेन में बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित हुए।
व्यवस्था की विकलांगता ही चुनौतीः केदार

व्यवस्था की विकलांगता ही चुनौतीः केदार

जब वह मेरे दफ्तर मिलने के लिए आए तो अचानक ही लगा कि मेरा दफ्तर भी विकलांग व्यक्ति के लिए कितना असुविधाजनक है। वह हथेलियों में हवाई चप्पल पहने हुए पूरी सहजता और जबर्दस्त आत्मविश्वास के साथ दफ्तर में आ चुके थे। तकरीबन लपकते हुए वह कुर्सी की ओर बढ़े।
मोदी की हिंदी पाठशाला

मोदी की हिंदी पाठशाला

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने गैर हिंदी भाषी सांसदों को हिंदी सिखाने जा रहे हैं। इसके लिए बाकायदा विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाएंगी और सप्ताहंत में कक्षाएं लगेंगी। अ से अनार और आ से आम सीखने के लिए कुछ सांसद राजी हैं तो कुछ ‘स्कूल’ आना नहीं चाहते
हिंदी व्रत और उर्दू रोजा वालों की हो गई

हिंदी व्रत और उर्दू रोजा वालों की हो गई

हाल ही में दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान शायर और फिल्म लेखक जावेद अख्तर ने श्रोताओं से रूबरू होते हुए कई राज जाहिर किए। उन्होंने बताया कि उन्होंने 1976 तक उन्होंने शायरी शुरू नहीं की थी। उस वक्त वह 31 वर्ष के थे, जबकि इस उम्र में लोग शायरी कर चुके होते हैं। 12 वर्ष की उम्र तक उन्हें सैकड़ों और 15 वर्ष की उम्र तक उन्हें लाख से ज्यादा शेयर याद थे। वह अपने को खुशकिस्मत मानते हैं क्योंकि लखनऊ में अपने ननिहाल में उन्हें अपने मामा मजाज साहब समेत उस दौर के तमाम नामी शायरों का साथ मिला, जिनके साथ वह बच्चों की तरह रहे।
मोदी को विदेश में याद आया हिंदी साहित्य

मोदी को विदेश में याद आया हिंदी साहित्य

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में योगदान के लिए आज मॉरीशस की सराहना की और कहा कि इस भाषा ने विश्व में एक विशेष स्थान हासिल कर लिया है।
हिंदी समाज को अच्छी तरह समझते थे विनोद मेहता

हिंदी समाज को अच्छी तरह समझते थे विनोद मेहता

विनोद मेहता की कई बातें जो उन्हें अन्य संपादकों से अलग करती थीं, उनमें सबसे बड़ी यह है कि वे लोकतंत्र में सिर्फ यकीन ही नहीं करते थे, उसे पत्रकारिता में भी पूरी तरह अपनाया हुआ था। संपादक के नाम पत्र कॉलम में अपने खिलाफ लिखी चिट्ठियों को भी वे जिस तरह तवज्जो देते थे, उसकी मिसाल शायद ही अन्यत्र मिले।
हिंदी साहित्यकारों को अंतरराष्ट्रीय सम्मान

हिंदी साहित्यकारों को अंतरराष्ट्रीय सम्मान

ढींगरा फाउंडेशन-हिंदी चेतना अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मानों की घोषणा कर दी गई है। यह घोषणा वषऱर्ष 2014 के लिए है। इस के अंतर्गत यह पुरस्कार उषा प्रियंवदा (अमेरिका), चित्रा मुद्गल और ज्ञान चतुर्वेदी (भारत) को प्रदान किए जाएंगे।
बर्बर प्रदेश में कितनी उम्मीद

बर्बर प्रदेश में कितनी उम्मीद

राष्‍ट्र¬भाषा होने का दावा करने वाली हिंदी के मीडिया से तो इसी राष्‍ट्र का हिस्सा माना जाने वाला मणिपुर अमूमन गायब ही होता है और उत्तर पूर्व में असम अगर यदा-कदा चर्चा में आता भी है तो बिहारियों, झारखंडियों पर उग्रवादी हमले के कारण या अरूणाचल प्रदेश की चर्चा होती है तो चीनी दावेदारी के हंगामें के कारण। हिंदी के एक्टिविस्ट संपादक प्रभाष जोशी के निधन के बाद की चर्चा में यह प्रसंग जरूर आया कि वह 5 नवंबर को नागरिकों की एक टीम के साथ मणिपुर जाना चाहते थे लेकिन यह टीम मणिपुर की जिन उपरोक्त परिस्थितियों के बारे में एक तथ्यान्वेषण मिशन पर वहां जा रही थी उसका जिक्र ओझल ही रहा। और जिस ऐतिहासिक अवसर पर यह टीम मणिपुर जा रही थी उसका जिक्र तो भला कितना होता? यह ऐतिहासिक अवसर था 37 वर्षीय इरोम शर्मिला के आमरण अनशन के दसवें वर्ष में प्रवेश का। गांधी और नेल्सन मंडेला की जीवनी सिरहाने रखे बंदी परिस्थितियों में इंफाल के एक अस्पताल में अनशनरत अहिंसक वीरांगना के नाक में टयूब के जरिये जबरन तरल भोजन देकर सरकार जिंदा रखे हुए है। अपढ़ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पिता और अपढ़ माता की नौवीं संतान शर्मिला सन 2000 में असम राइफल्स के जवानों पर बागियों की बमबारी के जवाब में सशस्त्र बलों द्वारा एक बस स्टैंड पर 10 निर्दोष नागरिकों को भूने जाने की खबरें अखबारों में पढक़र और तस्वीरें देखकर तथा उन सुरक्षाकर्मियों को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के कारण सजा की कोई संभावना न जानकर इतना विचलित हुई कि उन्होंने इस तानाशाही कानून के खिलाफ आमरण अनशन का फैसला ले लिया।
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