सभी किसानों की कर्जा माफी और फसल का न्यूनतम समर्थम मूल्य (एसएमपी) के मुद्दों पर देशभर के किसानों में अलख जगाने के लिए मध्यप्रदेश के मंदसौर से छह जुलाई को जनजागृति यात्रा निकाली जाएगी और यह यात्रा दो अक्तूबर को महात्मा गांधी के किसान आंदोलन की सौवीं वर्षगांठ पर बिहार के चंपारण में समाप्त होगी। यह फैसला शुक्रवार को दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में जुटे करीब 130 किसान संगठनों ने सर्वसम्मति से लिया। इस यात्रा को अंजाम देने के लिए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का गठन किया गया है। इतनी बड़ी संख्या में किसानों के संगठन का एकसाथ जुटना किसान एकता की दिशा में एतिहासिक कदम माना जा रहा है। समजा जाता है कि किसानों की इस तरह एकजुटता लंबे अर्से बाद दिखाई दी है।
आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने ही आप को नोटिस भेजा है। सरकार के पीडब्ल्यूडी विभाग ने आप को नोटिस भेजकर 27 लाख 73 हजार रुपये का भुगतान करने के लिए कहा है।
दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने जीएसटी दरों को कम करने का मुद्दा उठाया है। उन्होंने कहा कि जीएसटी दरें ज्यादा होने से देश में महंगाई और इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिलेगा।
किसान आंदोलन को लेकर जिस समय भोपाल में सीएम शिवराज सिंह चौहान उपवास शुरू करने जा रहे थे तभी आप नेता कुमार विश्वास ने ट्वीट कर कहा कि ‘जो धान की कीमत दे न सका, वो जान की कीमत क्या जाने?’
मध्य प्रदेश के मंदसौर में पुलिस फायरिंग में 6 किसानों की मौत के बाद से जारी हिंसक विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब हिंसक प्रदर्शन मालवा क्षेत्र के अन्य जिलों में भी फैलने लगा है। अब शाजापुर-सीहोर में आंदोलनकारी उग्र हो गए जिसके चलते पुलिस को हवाई फायरिंग करनी पड़ी। वहीं रायसेन तहसील के देगांव थाना क्षेत्र में किसान ने सल्फास की गोली खाकर की आत्महत्या कर ली।
पटना के गांधी मैदान में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती का मिलन तय नजर आ रहा है। भाजपा से मुकाबला करने के लिए राजद प्रमुख समान सोच रखने वाले दलों को एक जगह लाने के लिए मंच सजा रहे हैं।
एनडीटीवी के प्रमोटर प्रणय रॉय पर हुई सीबीआई की कार्रवाई को लेकर कुछ नेताओं के बयान आए हैं। वहीं कुछ नेताओं ने चुप्पी साध ली है। जहां मीडिया जगत में इस कार्रवाई को दुर्भावनापूर्ण हमला माना जा रहा है, वहीं राजनीतिक हलकों में भी कुछ नेता प्रणय रॉय और एनडीटीवी के समर्थन में उतर आए हैं। लेकिन कई बड़े नेता जो अक्सर अलग-अलग मसलों पर ट्वीट करते रहते हैं उनका यहां मौन रहना समझ से परे है।