अनिल कपूर के बेटे हर्षवर्धन ने राकेश ओमप्रकाश मेहरा की 'मिर्ज़या' फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू किया था। हालांकि ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हुई थी।
आज के समय में जहां बच्चे पढ़ाई के दम पर अपने भविष्य को संवारने में जुटे हुए हैं, वहीं शुक्रवार को एक ऐसी घटना सामने आई जिसने लोगों को चौंका दिया है। पिछले चार सालों से दो भाई-बहनों ने पढ़ाई के खौफ से खुद को कमरे में बंद कर लिया थ्ाा।
सोशल मीडिया पर अत्यधिक सक्रिय रहने वाली भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के पास एक बार फिर किसी ने मदद के लिए गुहार लगाई है। इस बार तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के एक परिवार ने मदद मांगी है।
भाई-बहन के रिश्तों का पावित्र पर्व रक्षा बंधन देशभर में मनाया जा रहा है। इस बीच लोगों की निगाहें पीएम मोदी की कलाई पर भी है, क्योंकि पीएम मोदी की पाकिस्तानी बहन हर साल उन्हें राखी बांधती हैं।
विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मीरा कुमार ने आज बाबू जगजीवन राम को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए नमन किया। इनसे पहले पीएम नरेंद्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी वंचितों के मसीहा के तौर पर देखे जाने वाले बाबू जगजीवन राम को श्रद्धांजलि दी।
बॉलीवुड फिल्मजगत में आजकल बायोपिक बनाने का काफी ट्रेंड है। अक्सर फिल्म निर्माता और सेलेब्स बायोपिक में हाथ अजमाते नजर आते हैं। हाल ही में सचिन तेंदुलकर की बायोपिक के बाद अब योग गुरु बाबा रामदेव की बायोपिक देखने को मिलेगी।
फिल्म निर्माता तिग्मांशु धूलिया क्रिकेट के बाहर अनजान और साहसी संघर्ष के लिए पहचाने गए एक दलित गेंदबाज बालू पालवणकर के जीवन पर फिल्म बनाने वाले हैं। यह फिल्म बाएं हाथ के स्पिनर बालू पालवणकर की कहानी बयां करेगी, जिन्होंने वर्ष 1900 की शुरुआत में हिंदू जिमखाना क्लब के लिए खेला था। बालू दलित समुदाय के पहले सदस्य थे जिन्होंने इस खेल पर अपनी महत्वपूर्ण छाप छोड़ी। अपने समय के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर होने के बाद भी बालू को दलित होने के कारण कभी टीम का कप्तान नहीं बनाया गया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन 7 अप्रैल को ‘विश्व स्वास्थ्य दिवस’ मनाता है। ‘विश्व स्वास्थ्य दिवस’ के मौके पर अगर हम विभिन्न देशों के विकास, रहन-सहन और सेहत पर कोई टिप्पणी करें तो उसमें हमें मलावी की रंजकहीनता पर जरुर कुछ जानने की जरुरत है। कैसे यह देश रंजकहीनता की त्रासदी झेल रहा है। विकास के ढेकेदार आधुनिकता के लाख दावे कर लें पर अभी भी इस जहां में कितने लोग ऐसे हैं जो एक सामान्य जीवन को पाने को तरस रहे हैं। पिछले कई सालों में देश-विदेश हर जगह कई ऐसी बीमारियों के बारे में सुनने को मिला, जिसका नाम हमने पहले कभी नहीं सुना था जैसे इबोला, चिकनगुनिया, बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू आदि। इन बीमारियों ने देश-विदेश हर जगह लोगों के बीच अपना पांव पसार लिया है। इन बीमारियों से ग्रसित लोगों की परेशानियों और मृत्यु दर के आंकड़ों को देखकर यह अनुमान लगाया गया कि ये रोग कितने घातक साबित हो रहे हैं। ऐसी बीमारियों से पीड़ित लोग इनके बारे में पूरी जानकारी न होने के कारण या फिर गलत इलाज होने के कारण अपनी जान गंवा बैठते हैं। ऐसा कहा जाना गलत न होगा कि कुछ देशों की खुशहाली पूरे दुनिया की रौनक नहीं कही जा सकती। आज भी कहीं-कहीं मानव समाज में गरीबी, भूख, कुपोषण का घनघोर अंधेरा व्याप्त है। इसी बानगी में आप मलावी की रंजकहीनता को जानेंगे तो आपको निराशा होगी।