दक्षिण के सुपरस्टार धनुष की फिल्म निर्माण कंपनी की फिल्म विसरनई पहली तमिल फिल्म बन गई है, जिसे वेनिस फिल्म फेस्टीवल में आने वाली फिल्मों की श्रेणी में दिखाया जाएगा।
जापानी अपराध कथा लेखक कीगो हिगाशिमो के उपन्यास, द डिवोशन ऑफ सस्पेक्ट एक्स पर मलयालम में एक फिल्म बनी, दृश्यम। मोहनलाल अभिनीत यह फिल्म खूब चली। अब यही फिल्म हिंदी में दर्शकों के लिए हाजिर है।
कहानी फिल्म के निर्देशक सुजॉय घोष की 14 मिनट की शॉर्ट फिल्म अहिल्या की धूम मची हुई है। यू ट्यूब पर इसके लाखों लाइक्स और शेयर हैं। मात्र 14 मिनट की अवधि में सुजॉय ने ऐसा क्या रच दिया कि लोग इतने दीवाने हो गए हैं।
आप के कोंडली से विधायक मनोज कुमार को धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है। उन्हें दो दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया है। मनोज कुमार पर उनके पूर्व साझेदार ने धोखाधड़ी का आरोप लगाया है।
कैग की एक रिपोर्ट में सेंसर बोर्ड द्वारा वर्ष 2012-15 के दौरान कई शर्तों की अवहेलना के लिए और किसी कानून या प्रावधान पर ध्यान दिए बिना ही 172 ए श्रेणी की कई फिल्मों को यूए श्रेणी में डाले जाने तथा यू श्रेणी की 166 फिल्मों को यूए श्रेणी में डाले जाने की आलोचना की है। यह जानकारी एक आरटीआई के जवाब में मिली है।
दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने सनी देओल अभिनीत और चंद्रप्रकाश दि्ववेदी निर्देशित फिल्म मोहल्ला अस्सी के पूरे देश में प्रदर्शन पर रोक लगा दी है। यह रोक इस फिल्म का एक अनाधिकारिक ट्रेलर जारी होने के बाद लगाई गई है। इस ट्रेलर में भगवान शिव का स्वांग धरे एक व्यक्ति को धाराप्रवाह गालियां बकते दिखाया गया है।
देश में बुलेट ट्रेन चलेगी, स्टेशनों का कायाकल्प होगा, रेलगाडिय़ा समय से चलेगी जैसे अनेक सपने पाले देश का आम नागरिक नरेंद्र मोदी की सरकार से उम्मीद पाले है। सरकार का एक साल पूरा हो गया। उम्मीदों की रेल का सपना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। यात्रियों की बढ़ती संख्या, कंफर्म टिकट को लेकर मारामारी ने आम आदमी के लिए संकट खड़ा कर दिया है। रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा से भारतीय रेल से जुड़े तमाम पहलुओं पर आउटलुक के विशेष संवाददाता ने विस्तार से बात की। पेश है प्रमुख अंश-
द फोन कॉल से केरल में वृत्तचित्र महोत्सव का आगाज होगा। 26-30 जून तक चलने वाले इस आठवें अंतरराष्ट्रीय वृत्तचित्र और लघुफिल्म उत्सव में बड़ी संख्या में दर्शक पूरे भारत से आने की उम्मीद है।
हिंदी में सिनेमा के इतिहास पर सबसे नई पुस्तक है - समय, सिनेमा और इतिहास। हिंदी सिनेमा के सौ साल पूरे होने पर जश्न तो कई हुए, अखबारों, पत्रिकाओं में कई अहम विशेषांक भी निकले लेकिन पुस्तक के रूप में बॉलीवुड के इतिहास को नए तरीके से समेटने का काम कम हुआ। कुछ देर से ही सही, लेकिन संजीव श्रीवास्तव की यह पुस्तक इस मायने में काफी सराहनीय है। पुस्तक में शामिल सौ साल से अधिक के हिंदी सिनेमा की बड़ी तस्वीरें, व्यक्ति और समाज की अनुभूति और अभिव्यक्ति की बहुरंगी भाव-भंगिमाओं को विविघता से संजोए हुए हैं। यहां व्यावसायिकता की चकाचौंध है, तो कला की प्रांजलता भी। बाजार के दबाव और समझौते की कहानियां हैं तो प्रतिबद सामाजिक सरोकार के नजीर भी हैं।