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ऑटो सेक्टर में मंदी जारी, मारुति की बिक्री 33 फीसदी गिरी, हुंडई और महिद्रा में भी सुस्ती

ऑटो सेक्टर में मंदी जारी, मारुति की बिक्री 33 फीसदी गिरी, हुंडई और महिद्रा में भी सुस्ती

देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर के बुरे दिन और बुरे होते जा रहे हैं। दो साल पहले मंदी में फंसे उद्योग को पिछले...
राजीव गांधी की जयंती पर बोले राहुल- उनकी असामयिक मृत्यु ने मेरे जीवन में एक गहरा शून्य छोड़ा

राजीव गांधी की जयंती पर बोले राहुल- उनकी असामयिक मृत्यु ने मेरे जीवन में एक गहरा शून्य छोड़ा

देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 74वीं जयंती पर देश ने उनको याद किया है। राजीव गांधी के समाधि...
कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण और वरिष्ठ सदस्य थे धवन जिन्हें पार्टी में सभी पसंद करते थे:  राहुल

कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण और वरिष्ठ सदस्य थे धवन जिन्हें पार्टी में सभी पसंद करते थे: राहुल

पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी सचिव रहे आरके धवन का सोमवार की शाम...
उत्तराखंड की वादियों में

उत्तराखंड की वादियों में "सोलो बैंड" की धुन

उत्तराखंड के रामनगर में रहने वाले दीप रजवार अपने सोलो बैंड की वजह से सुर्खियों में हैं। वे बिना किसी की मदद लिए मुंह से माउथ ऑर्गन, हाथ से गिटार, पैरों से ड्रम बजाते हैं और इनकी धुन के साथ उनकी गायकी भी चलती रहती है। वे हर शाम कार्बेट पार्क के पास के होटलों में अपनी प्रतिभा से सैलानियों का दिल जीतते हैं।
नेपाल में नए संविधान को लेकर हो रहे बवाल से भारत भी असंतुष्ट

नेपाल में नए संविधान को लेकर हो रहे बवाल से भारत भी असंतुष्ट

भारत में नेपाल के राजदूत दीप कुमार उपाध्याय ने दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भारत-नेपाल के रिश्तों में जो तल्खी आई है उसे एक बुरे सपने की तरह भूल जाना चाहिए। उपाध्याय के मुताबिक दोनों देशों के बीच जिस प्रकार के करीबी रिश्ते हैं उसकी तुलना किसी भी दूसरे देश के साथ नहीं की जा सकती। लेकिन इसके उलट नेपाल में नए संविधान का विरोध कर रहे सोशल रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष रामबाबू राय कहते हैं कि रिश्ते खराब करने की शुरूआत किसने की है, इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
वीरेन का जाना, जीवंत वामपंथी प्रतिज्ञा को गहरा आघात

वीरेन का जाना, जीवंत वामपंथी प्रतिज्ञा को गहरा आघात

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी साम्राज्यवाद और राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी-मार्का हिंदुत्ववादी फासीवाद के मौजूदा वर्चस्व के दौर में वीरेन डंगवाल (1948-2015) की कविता किसी आत्मीय, जीवंत, वामपंथी प्रतिज्ञा की तरह सामने आती है।