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धर्म और धुंध

धर्म और धुंध

संजीव श्रीवास्तव पेशे से टीवी पत्रकार हैं। उनकी एक पुस्तक - समय, सिनेमा और इतिहास भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से प्रकाशित है। संजीव की कविताओं में धर्म, राजनीति और इस सबके बीच पिसती मनुष्यता का ऐसा विवरण है जो किसी को भी सोचने पर मजबूर कर सकता है।
इश्क वाकई में न्यूज नहीं

इश्क वाकई में न्यूज नहीं

फेसबुक फिक्शन श्रृंखला की दूसरी किताब इश्क कोई न्यूज नहीं को पाठकों के बीच लाने की तैयारियां जोरों पर हैं। इस पुस्तक का प्रोमो लंदन में आयोजित एक कार्यशाला के बाद अनौपचारिक रूप से लांच किया गया।
लोकतांत्रिक तरीके से चुना व्यक्ति भी तानाशाह हो सकता हैः नामवर सिंह

लोकतांत्रिक तरीके से चुना व्यक्ति भी तानाशाह हो सकता हैः नामवर सिंह

आलोचना (त्रैमासिक) पत्रिका के अंक 53-54 के प्रकाशन के उपलक्ष्य में ‘भारतीय जनतंत्र का जायजा’ विषय पर साहित्य अकादमी-सभागार में आयोजित परिचर्चा में युवाओं की भागीदारी जबरदस्त रही। दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय सहित अन्य अकादमिक संस्थानों के छात्रों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। युवाओं ने जनतंत्र से जुड़े सवालों की झड़ी लगा दी। एक युवा ने सवाल खड़ा किया कि आखिर क्यों ‘आलोचना’ पहले जैसी नहीं होती ! जिसकी आलोचना होती है वह और मजबूत क्यों हो जाता है।
वाणी का 51वां स्थापना दिवस

वाणी का 51वां स्थापना दिवस

वाणी प्रकाशन के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्स में ‘एथनोग्रफिक-हिस्ट्री-ऑफ-बुक्स बनाम कहानी-किताब-की’ कार्यक्रम हुआ। वक्ताओं में आशीष नंदी, मृणाल पांडे और अभय कुमार दूबे थे। कार्यक्रम की शुरुआत वाणी के निदेशक अरुण महेश्वरी ने की। यह कार्यक्रम वाणी प्रकाशन के इक्क्यावनवें स्थापना दिवस पर आयोजित किया गया था।
‘सफल होने की होड़ और बाजारवाद चिंता का विषय’

‘सफल होने की होड़ और बाजारवाद चिंता का विषय’

लोगों में आज सफल होने की होड़ तेजी से बढ़ने पर चिंता व्यक्त करते हुए जानी मानी लेखिका अलका सरावगी ने कहा कि आज बाजार सबके लिए मूल्यबोध के पैमाने बनने के साथ साधन एवं साध्य बन गया है और ऐसे में लेखकों की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है।
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