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Search Result : " केंद्रीय सूचना आयोग"

भाजपा को 92 फीसदी चंदा कॉरपोरेट से

भाजपा को 92 फीसदी चंदा कॉरपोरेट से

वर्ष 2012-13 और 2013-14 में भले ही भारतीय जनता पार्टी देश की सत्ता में नहीं थी मगर चंदा जुटाने के मामले में उसने तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस को मीलों पीछे छोड़ दिया था।
ग़ाजीपुर में बीमार हैं स्वास्थ्य केंद्र

ग़ाजीपुर में बीमार हैं स्वास्थ्य केंद्र

गाजीपुर जिला चिकित्सालय के आकस्मिक चिकित्सा विभाग में सुबह के दस बजे हैं और इलाज के लिए कोई डॉक्टर नहीं है। पूछने पर पता चला कि आज डॉक्टर साहब नहीं आएंगे।
भाजपा ने पहनाई अखबारों को जैकेट

भाजपा ने पहनाई अखबारों को जैकेट

विधानसभा चुनाव के अंतिम दिनों में भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के दैनिक समाचार पत्रों को जिस तरह से जैकेट पहनाई उसे लेकर कई सवाल उठे हैं।
नीति आयोग में ईरानी

नीति आयोग में ईरानी

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को नीति आयोग में जगह क्या मिली दबे जुबान में विरोध के स्वर उठने लगे।
आखिर क्या करेगा नीति आयोग?

आखिर क्या करेगा नीति आयोग?

हर ओर से यही सवाल उठ रहे हैं कि यह आयोग आखिर करेगा क्या? इसके अधिकारों और काम-काज के दायरे को अब तक परिभाषित नहीं किया गया है और फिलहाल इसे सिर्फ थिंक टैंक के रूप में लिया जा रहा है।
जवाबदेही के जुए से कतराती नौकरशाही

जवाबदेही के जुए से कतराती नौकरशाही

सूचना के अधिकार कानून के क्रियान्वयन पर अभी चार अध्ययन आए हैं। दो गैर सरकारी, परिवर्तन और सूचना के जनाधिकार पर राष्‍ट्रीय अभियान द्वारा, और दो सरकारी, केंद्रीय सूचना आयोग की कमेटी और स्वयं भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय द्वारा। सभी की रिपोर्ट के अनुसार सूचना का अधिकार सक्षमता से लागू करने में मुख्य बाधा अपर्याप्त क्रियान्वयन, कर्मचारियों के प्रशिक्षण का अभाव और खराब दस्तावेज प्रबंधन है। किसी ने फाइल देखने की नोटिंग की मांगों और खिझाऊ तथा तुच्छ आवेदनों के कारण नहीं माना है। फिर भी कार्मिक मंत्रालय नौकरशाही के दबाव में इनसे संबंधित लाना चाहता है तो उसकी मंशा पर शक होता है वही कार्मिक मंत्रालय जिसका अपना अध्ययन बताता है कि अभी देश के सिर्फ 15 प्रतिशत लोगों को सूचना के अधिकार के कानून की जानकारी है और 85 प्रतिशत लोगों को नहीं। यानी नौकरशाही अभी भी सिर्फ 15 प्रतिशत भारतीयों के प्रति जवाबदेह होने से भी कतरा रही है। और परिवर्तन की रिपोर्ट के अनुसार इन 15 प्रतिशत में सिर्फ एक-चौथाई यानी 27 फीसदी ही संतोषप्रद सूचना हासिल कर पाते हैं।
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।
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