'अगर किसी अच्छी खासी चलती हुई चीजों का भट्टा बैठाना हो तो उसे सरकारी लोगों के हाथों में सौंप देना चाहिए। नाम न छापने की शर्त पर प्रसार भारती के अधिकारी जब यह कहते हैं तो पहली बार में यह बात अतिश्योक्ति लग सकती है लेकिन जब प्रसार भारती की हालत पर गौर करें तो इस वाक्य का एक-एक शब्द ठीक लगने लगता है। निजी चैनलों के बीच सुस्त चाल में चलते दूरदर्शन को यूं तो कोई फिक्र नहीं रहती लेकिन जो भी थोड़ी-बहुत ठीक चलते कार्यक्रम या बातें हैं वह प्रसार भारती में अंदरूनी खींचतान की भेंट चढ़ जाता है।