‘आपकी जमीन कीमती है। दो-तीन करोड़ रुपये प्रति एकड़ की दर से बिकने लगे, तब सौदा करना। फिर देखना नोटों की गठड़ी कैसे घर आवैगी और इलाके में खुशहाली छावैगी।’ हरियाणा के बहुचर्चित किसान नेता सर छोटू राम के पोते और केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह जब कभी किसानों के बीच होते हैं, उन्हें यह सलाह देना नहीं भूलते। हालांकि, उनकी राय मान कर कितने किसान अपनी जमीन बेचकर मालामाल हुए, इसका कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है, पर सरकार को जमीन देकर फंसने वालों की संख्या अवश्य अच्छी खासी हो गई है। मामले को पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ले जाने के बावजूद राहत मिलने के आसार कम ही दिख रहे हैं। इसको लेकर हाईकोर्ट ने इसी 27 अक्तूबर को सुनवाई करते हुए प्रदेश सरकार को जनहित में अधिग्रहण किए गए भूखंडों का पांच साल बाद भी इस्तेमाल नहीं करने पर उसे उसके मालिकों को लौटाने के आदेश दिए। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि जमीन लौटाने के एक साल तक जमीन मालिक इसे किसी और को स्थानांतरित नहीं कर सकते तथा आवश्यकता पड़ने पर सरकार जनहित कार्य के लिए उसका दोबारा अधिग्रहण कर सकती है। इस पेचीदा मसले के प्रति प्रदेश सरकार का रवैया बेहद ढीला है। कोर्ट को आशंका है कि विवादों को जल्द नहीं निपटाया गया तो भू-स्वामी और सरकार के बीच टकराव की नौबत आ सकती है, जिसके आसार दिखने भी लगे हैं।
वैसे, पिछली सरकारों की वजह से आज यह नौबत आई है। जनता को खुश करने के चक्कर में अनेक परियोजनाओं का ऐलान कर बड़ी मात्रा में भूखंडों का अधिग्रहण कर लिया गया, पर बाद में उस पर या तो अमल नहीं हुआ या परियोजनाएं आधी-अधूरी छोड़ दी गईं। कई प्रोजेक्टों के लिए 90 के दशक में भूमि अधिग्रहण किया गया था, जिसपर बाद में एक ईंट भी नहीं रखी गई। कुछेक प्रोजेक्ट कम मुआबजा देने के चक्कर में आज तक फंसे हुए हैं। भूमि विवादों में फंसे होने के कारण दिल्ली द्वारका-मानेसर, कुंडली-मानेसर-पलवल और कुंडली-गाजियाबाद-पलवल एक्सप्रेसवे का निर्माण कार्य अब तक पूरा नहीं हो पाया है। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का दावा है कि ‘जल्द तमाम विवाद सुलझा लिए जाएंगे और अगले चार सौ दिनों में केएमपी के सोनीपत के छहतेरा गांव के आसपास का निर्माण कार्य जरूर पूरा कर लिया जाएगा।’
जमीन अधिग्रहण और मुआवजे के विवाद के चलते मेवात के नूह में औद्योगिक टाउनशिप विकसित का काम अधूरा पड़ा हुआ है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार में खेल मंत्री रहे सुखबीर कटारिया और उनके भाई की गुड़गांव के शीतला माता मंदिर के निकट 2000 वर्ग गज जमीन पांच वर्ष पूर्व मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधाएं मुहैया कराने के नाम पर अधिग्रहीत की गई थी। इसको लेकर कोई काम नहीं होने पर पूर्व खेल मंत्री ने हाईकोर्ट में याचिका डालकर जमीन लौटाने की गुहार लगाई है।
कटारिया की तरह हाईकोर्ट में ऐसे 115 से अधिक मामले लंबित हैं। ये मामले अधिकतर गुड़गांव, फरीदाबाद, कुरुक्षेत्र, सोनीपत, रोहतक आदि जिले के हैं। एचएसआईआईडीसी ने गुड़गांव में 2004 से 2009 के बीच तकरीबन दो हजार और ग्रेटर फरीदाबाद में नए सेक्टर विकसित करने को हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने 300 एकड़ जमीन अधिग्रहण किया था, जिस पर कोई काम नहीं होने से नाराज जमीन मालिक हाईकोर्ट चले गए। कोर्ट भू-स्वामियों की अलग-अलग याचिकाओं को एक साथ कर 2014 से सुनवाई कर रही है। जमीन मालिक अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन में पारदर्शिता व उचित मुआवजे के अधिकार संबंधी अधिनियम का हवाला देकर अपनी अधिग्रहीत जमीन लौटाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि, अधिग्रहण घोषित करने के पांच साल से अधिक समय बीत जाने के बाद सरकार अधिग्रहीत जमीन का कब्जा और भूमि स्वामियों द्वारा मुआबजा राशि नहीं स्वीकारने पर जमीन अधिग्रहण 2013 के सेक्शन 24 के तहत अधिग्रहण की प्रक्रिया स्वत: खत्म हो जाती है। पूर्व मंत्री कटारिया का कहना है कि ‘इस नियम के बावजूद जमीन मालिकों को उनकी जमीन नहीं लौटाना सीधा-सीधा कानून का उल्लंघन है।’
आरोप है कि, मौजूदा खट्टर सरकार विवाद सुलझाने को लेकर गंभीर नहीं है। इसके टालू रवैये पर हाईकोर्ट कई बार टिप्पणी कर चुका है। इन मामलों में प्रदेश सरकार अदालत में जवाब दाखिल करने की बजाय बार-बार समय ले रही है। इससे खफा होकर कोर्ट ने पिछली सुनवाई में भूमि अधिग्रहण कलेक्टरों से प्रति याचिका 10 हजार रुपये बतौर जुर्माना वसूलने की हिदायत दी थी। अदालत का मानना है कि विवादों को नहीं निपटाने से सरकार और भू-स्वामियों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है।