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गठबंधन को चाहिए ब्रहमशात्र

नेपथ्य में रहकर उत्‍तर प्रदेश में कांग्रेस एवं सहयोगियों के लिए 'अमृत निकालेंगी प्रियंका गांधी
राहुल गांधी के साथ उनकी बहन प्रियंका वाड्रा

अक्सर वह तुगलक लेन के उस बहुचर्चित बंगले के दक्रतर में देखी जाती हैं। वहां मनोयोग से लोगों की बातें या शिकायतें सुनती हुईं। भीड़ कम होने लगती है फिर उस बंगले में उनके काम का दूसरा चरण शुरू होता है- स्टाफ से मिलना-जुलना, जिलों और राज्यों से आई ताजातरीन रिपोट्र्स पर बात करना। यहां बात प्रियंका गांधी की हो रही है जो इन दिनों अपने भाई राहुल गांधी केदक्रतर में खासी सक्रिय दिख रही हैं। पर्दे के पीछे वह हमेशा अपने भाई और मां के लिए काम करती रही हैं। उत्‍तर प्रदेश चुनाव की हलचल शुरू होते ही लोधी रोड के उनके बंगले से तुगलक रोड स्थित उनके भाई के बंगले के बीच उनकी गतिविधियां बढ़ गई हैं।

प्रियंका गांधी। चाल-ढाल, हाव-भाव में लोग उनमें उनकी दादी इंदिरा गांधी की छाया देखते हैं। साड़ी पहनने का आभिजात्य अंदाज, लोगों के मिलने का अंदाज कुछ उसी तरह का तरह का- जैसे इंदिरा गांधी का रहा। भाषण देने की शैली लोग उसी तरह की मानते हैं, जैसी दृढ़ता इंदिरा गांधी में दिखती रही। लोकसभा चुनाव के दौरान अमेठी में राहुल गांधी के लिए और रायबरेली में सोनिया गांधी की जीत का खाका वही तैयार करती रही हैं। दोनों संसदीय क्षेत्रों में गांव स्तर तक प्रियंका गांधी का सीधा संपर्क है। इन इलाकों में पंचायत और ब्लॉक स्तर तक कांग्रेस के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी बांटने में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है।

याद कीजिए, 12 अप्रैल, 2014 के उस दृश्य को, जब अमेठी में राहुल गांधी लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन भरने जा रहे थे। बहन प्रियंका उनके साथ थीं। खुली जीप में जाते बहन-भाई पर उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने गुलाब की पंखुडिय़ां बरसाई थीं। तब भारतीय जनता पार्टी ने टेलीविजन स्टार स्मृति ईरानी को मैदान में उतारा था और राहुल गांधी के लिए मुकाबला कांटे का माना जा रहा था। तब प्रियंका गांधी ने अमेठी में प्रचार में दिन-रात एक कर दिया था और देश भर में कांग्रेस की खस्ताहाली के बावजूद अपने भाई को जिता लाई थीं।

उत्‍तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच कांग्रेस के रणनीतिकार फिर प्रियंका गांधी के 'चेहरे पर भरोसा कर रहे हैं। रणकौशल तय करने के लिए कांग्रेस ने जिस चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर को काम सौंपा है, उन्होंने आधिकारिक तौर पर पार्टी से कहा है कि अगर राहुल गांधी राजी न हों तो प्रियंका गांधी को उत्‍तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया जाए। प्रशांत किशोर की इस सूची में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित समेत कई और नाम हैं, लेकिन लोगों की निगाहें प्रियंका गांधी पर जा टिकी हैं। इसलिए कि उत्‍तर प्रदेश का चुनाव उनके भाई राहुल गांधी के राजनीतिक कॅरियर के लिए अहम माना जा रहा है। और प्रियंका गांधी को हमेशा से कांग्रेस के लिए 'तुरुप का इक्‍का माना जाता रहा है।

ऐसे में जब लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी दहाई अंकों तक सिमट गई थी, अपने दो प्रमुख चेहरों पर दांव लगाना रणनीतिकार ठीक नहीं मान रहे हैं। लेकिन यह जरूर है कि प्रियंका गांधी को सामने रखकर जनता के बीच यह संदेश देने की तैयारी होगी कि कांग्रेस के पास ब्रह़मशात्र  है। कांग्रेस का यह ब्रह़मशास्‍त्र विधानसभा चुनाव के दौरान अमेठी और रायबरेली की सरहदों से बाहर निकलेगा और अपने भाई की मदद करते हुए कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की मुहिम पर दिखेंगी। कांग्रेस पार्टी की बागडोर संभालने वाला गांधी परिवार यह बखूबी जानता है कि उत्‍तर प्रदेश के चुनाव उनके भविष्य के लिए कितना जरूरी हैं।

अरसे से कांग्रेस में यह मांग उठ रही है कि प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में उतारा जाए। राहुल गांधी के हाथ औपचारिक तौर पर पार्टी की कमान आने पर उनकी क्या भूमिका होगी- यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल तो राहुल गांधी की सेनापति के तौर पर प्रियंका मैदान में होंगी। उत्‍तर प्रदेश चुनाव के मौके पर कांग्रेस पार्टी कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगी, जिससे राहुल गांधी की छवि प्रियंका की छाया तले छुप जाए। हमेशा की तरह वह अपने भाई की परिपूरक के तौर पर दिखेंगी- नेपथ्य में।

भविष्य में प्रियंका के राजनीति में उतरने की संभावना के मद्देनजर पूरे उत्‍तर प्रदेश में उनके दौरे से कुछ 'अमृत निकलने की उक्वमीद लेकर चल रहे हैं कांग्रेसी। दिग्विजय सिंह समेत कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं ने प्रियंका गांधी को लेकर बयान देने शुरू कर दिए हैं। उत्‍तर प्रदेश में जगह-जगह छिटपुट स्तर पर ही नहीं, 'प्रियंका लाओ, कांग्रेस बचाओ के नारे बुलंद होने लगे हैं। अरसे से प्रियंका गांधी के रायबरेली या अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ाने की चर्चा भी चल रही है। अमेठी से भाजपा उम्मीदवार के तौर पर अगर स्मृति ईरानी दोबारा मैदान में आईं तो प्रियंका गांधी को मैदान में उतारे जाने की मांग तेज हो सकती है। तब राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी की रायबरेली सीट का रुख कर सकते हैं। भविष्य को लेकर ये बातें पार्टी में घूम-फिर रही हैं। कांग्रेस के महासचिव और प्रवक्ता मनीष तिवारी के अनुसार, 'कोई भी फैसला पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी लेंगी। कुछ तय होने पर कांग्रेस पार्टी एलान कर देगी। दरअसल, प्रियंका गांधी पुरानी पीढ़ी के वफादार कांग्रेसी मोतीलाल वोरा, हंसराज भारद्वाज, कमलनाथ से लेकर नई पीढ़ी के सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा तक के साथ अच्छा संवाद रखती हैं।

जनता दल (यूनाइटेड) ने तो प्रियंका गांधी को लेकर अलग तरह की तैयारी शुरू कर दी है। जदयू के रणनीतिकार उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रियंका गांधी की संयुञ्चत जनसभाएं कराने की तैयारी कर रहे हैं। अगर कांग्रेस आलाकमान तैयार हो तो प्रियंका गांधी को उत्‍तर प्रदेश में गैर-भाजपा महागठबंधन का 'चेहरा बनाने का सुझाव जदयू के नेता दे सकते हैं। जनता दल (यू) के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, 'इस बारे में कांग्रेस के साथ बात चल रही है। प्रियंका गांधी में वोटरों को खींचने का करिश्मा है।

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या प्रियंका गांधी दूसरी इंदिरा गांधी बन सकती हैं? इंदिरा गांधी अपने पिता जवाहरलाल नेहरू का काम संभाला करती थीं। ठीक उसी तरह, जैसे राहुल गांधी के लिए प्रियंका सक्रिय रहती हैं। चुनाव मैदान में नेहरू-गांधी परिवार के अन्य सदस्य मेनका गांधी और वरुण गांधी भले ही भाजपा के खेमे में हों, लेकिन दोनों ओर से कभी एक-दूसरे के खिलाफ कुछ नहीं कहा गया। जिस तरह माधवराव सिंधिया और उनकी बहन वसुंधरा राजे परस्पर विरोधी कांग्रेस और भाजपा में रहते हुए व्‍यक्तिगत संबंध बहुत अच्छे थे, वही स्थिति प्रियंका और वरुण के बीच है। उत्‍तर प्रदेश के चुनावी समर में जब प्रियंका कांग्रेस की सेनापति होंगी- क्या दोनों खेमों के महारथी अपने अभियान में इस बात का खयाल रखेंगे?

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