लु टियंस दिल्ली के खान मार्केट इलाके में घूमने और खरीदी के शौकीनों की चहल-पहल के बीच सुब्रमण्यम भारती मार्ग पर एक तनहा सी इमारत है, श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध संस्थान। ऊंची दीवारों से घिरी इस पुरानी इमारत में अब नई फर्श और नए फर्नीचर की रौनक साफ दिखाई देती है। दफ्तर की रौनक का असर भारतीय जनता पार्टी की पत्रिका कमल संदेश पर भी पड़ा है या कमल संदेश के कलेवर बदलने की छाया दफ्तर पर पड़ी है यह चर्चा का अलगविषय हो सकता है। श्यामा प्रसाद शोध संस्थान में ही भाजपा के मुख पत्र कमल संदेश का दफ्तर है। यूं तो कमल के फूल में सुगंध नहीं होती लेकिन यह कमल अपने संदेश की सुगंध पूरे भारत में फैलाने के लिए प्रतिबद्ध है। पत्रिका के कलेवर के साथ इसकी विषयवस्तु में भी भारी बदलाव हुआ है। पहले श्वेत-श्याम छपने वाली पत्रिका रंगीन छपने लगी है। पार्टी का लक्ष्य पत्रिका को बूथ स्तर तक के कार्यकर्ता तक पहुंचाने का है ताकि वह अपनी पार्टी के विचार और व्यवहार को जान कर आत्मसात कर सके। इससे दोहरा फायदा होगा। पत्रिका कार्यकर्ताओं को एक समूह में बांधेगी और इसका अपना एक नेटवर्क बनेगा। हाल ही में अमित शाह ने कमल संदेश को लेकर बैठक की और तय किया गया है कि हर महीने की 15 और 25 तारीख को नौ पृष्ठ की सामग्री सभी राज्यों की पत्रिकाओं को भेजी जाएगी ताकि राज्य अपनी पत्रिकाओं में इन पृष्ठों को समाहित कर सकें। अभी तक 12 प्रदेश नियमित रूप से अपनी पत्रिका निकालते हैं। जिनमें बिहार (अपना रास्ता), हिमाचल प्रदेश (दीप कमल संदेश), छत्तीसगढ़ (दीप कमल), पंजाब (कमल सुनेहा), केरल (चिति), राजस्थान (मरु कमल दर्पण), जम्मू-कश्मीर (जेके अपडेट), असम (बीजेपी वार्ता), उड़ीसा (बीजेपी वार्ता), चंडीगढ़ (कमल समाचार), उत्तर प्रदेश (वर्तमान कमल
ज्योति) और झारखंड (अंत्योदय संदेश) हैं। झारखंड में पत्रिका की फिर से शुरुआत हुई है। सभी पत्रिकाओं को कहा गया है कि वे अनिवार्य रूप से पत्रिका प्रकाशित करें। छह प्रदेश आंशिक रूप से अपनी पत्रिका का प्रकाशन करते हैं। अमित शाह का स्पष्ट संदेश है कि सभी संपादक आपस में संवाद रखेंगे। बैठक में प्रसार संख्या को लेकर भी बात हुई है और इसे बढ़ाने के प्रयास की योजना भी मांगी गई है।
प्रदेश में घटने वाली प्रमुख घटनाओं का आपस में आदान-प्रदान होगा। प्रदेश को प्रमुख घटनाओं की सूचना केंद्र को देनी होगी ताकि केंद्र की पत्रिका में यह प्रकाशित हो सके। जिला स्तर तक के प्रकाशनों की सूची हर प्रदेश द्वारा तैयार करने के बाद एक डेटा बैंक की योजना भी है। अभी तक जिन 23 प्रदेशों में पत्रिका नहीं निकल रही है उन्हें नियमित प्रकाशन शुरू करने को कहा गया है। अनियमित प्रकाशन के लिए चंडीगढ़ और असम का नाम है। यह भी कि गैर हिंदी भाषी प्रदेशों में कमल संदेश के अंग्रेजी संस्करण को जितनी जल्दी हो सके हर प्रदेश को इससे जोड़ा जाए।
बीते दिसंबर की 6 तारीख को जब मौसम न बहुत सर्द था न गर्म, जब बाबरी ढांचे को गिरने की रिपोर्टों और खबरों से टीवी चैनल गुलजार था तब कमल संदेश की संपादकीय टीम 11 अशोक रोड में एक छोटे से कार्यफ्म की तैयारी में जुटी थी। कमल संदेश के संपादक प्रभात झा के अस्वस्थ होने पर कार्यकारी संपादक शिवशञ्चित बक्सी ने कमान संभाली और पार्टी कार्यलाय में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पत्रिका की सदस्यता ग्रहण कर 50 लाख सदस्य लक्ष्य की शुरुआत की। इससे स्पष्ट हो गया कि पार्टी कमल संदेश को लेकर गंभीर है।
केंद्र की पत्रिका कमल संदेश की सदस्यता बहुत पहले खत्म हो जाने से फिर से व्यापक स्तर पर सदस्यता अभियान पर जोर दिया जा रहा है। कमल संदेश के दोनों संस्करणों को युवा पाठकों से जोडऩे के लिए ऑनलाइन कर दिया गया है। पत्रिका का प्रसार बढ़ाने के साथ-साथ कुछ अन्य पुस्तिकाओं का प्रकाशन भी किया जा रहा है। आगामी फरवरी-मार्च में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में प्रकाशन विभाग की राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित करने की योजना है। साथ ही संपादकों की बैठक भी होगी। कमल संदेश को अपनी सदस्य संख्या 50 लाख करने का लक्ष्य मिला है। अभी 15 लाख एञ्चिटव सदस्यों तक पत्रिका पहुंच रही है। जो प्रदेश अपनी पत्रिका निकालते हैं उनके साथ सुनिश्चित किया जाएगा कि कमल संदेश भी पहुंचे। केंद्र चाहता है कि पत्रिका मंडल स्तर से होते हुए बूथ स्तर तक पहुंचे। इस लक्ष्य पर गंभीरता से काम चल रहा है। अमित शाह खुद इससे जुड़ी बैठक में हिस्सा लेते हैं और समय-समय पर पत्रिका की गतिविधियों की जानकारी लेते हैं। उन्होंने जिला स्तर पर एक नेटवर्क तैयार करने पर भी जोर दिया है और इस पर काम तेजी से चल रहा है।
इस मुहिम ने जोर पकडऩा शुरू कर दिया है। सभी भाजपा सांसदों से भी अपील की गई थी कि वे कमल संदेश की सदस्यता लें। इस पर अमल करने वालों में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर, वित्तमंत्री अरुण जेटली और वित्त राज्यमंत्री अर्जुन मेघवाल ने बाजी मार ली है। पार्टी अध्यक्ष का मानना है कि यह सिर्फ पत्रिका नहीं है बल्कि इससे पार्टी के बारे में समझ भी बढऩा चाहिए और कार्यकर्ता को भी जुड़ाव महसूस करना चाहिए। अमित शाह चाहते हैं कि पत्रिका की सदस्यता के माध्यम से वह कैशलेस का भी संदेश दें। सदस्यता को पूरी तरह कैशलेस करने पर जोर दिया जा रहा है। ऑनलाइन ट्रांसफर और पैसों के सीधे ट्रांसफर के लिए क्यूआर कोड की कवायद पत्रिका की टीम ने शुरू कर दी है।
पार्टी हमेशा से ही अपने मुखपत्र के बारे में सचेत रही है। जनसंघ के जमाने में भी अबाउट अस नाम से अंग्रेजी में पत्रिका प्रकाशित होती थी। सन 1980 में जब भारतीय जनता पार्टी ने जन्म लिया तब बीजेपी टुडे और भाजपा समाचार नाम से पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। हॉर्वर्ड से आए के. आर. मलकानी संपादक बने। इसके बाद प्रफुल्ल गोराडिय़ा, रामकृपाल सिन्हा ने भी इसकी कमान संभाली। सन 2006 में श्यामा प्रसाद न्यास बना और हिंदी अंग्रेजी दोनों भाषाओं की पत्रिका का नाम कमल संदेश रख दिया गया।
पत्रिका का नाम बदलने और इसके प्रसार को बढ़ाने के लिए तत्कालीन संगठन मंत्री संजय जोशी ने बहुत प्रयास किए थे। अब यही पत्रिका फिर अपना कलेवर बदल कर पार्टी के संदेशों को प्रचारित करने का
सशक्तमाध्यम बनने को तैयार है। पत्रिका को लोकप्रिय बनाने के लिए न सिर्फ कलेवर, बल्कि इसकी सामग्री का तेवर भी बदला गया है। अब केंद्र सरकार की उपलद्ब्रिधयां, केंद्र सरकार की संगठनात्मक जानकारी, वैचारिक लेख और प्रेरक व्यक्तित्व के बारे में जानकारी प्रकाशित की जाती है। पत्रिका के कार्यकारी संपादक शिवशञ्चित बक्सी बताते हैं, 'यह पत्रिका सरकार से ज्यादा संगठन और विचार की पत्रिका बनी रहे इस बात का ध्यान रखा जाता है। यही वजह है कि समकालीन राजनैतिक विषयों पर भी जानकारी निरंतर प्रकाशित होती रहती है। पत्रिका किसी भी तरह का विज्ञापन नहीं लेती। कोशिश की जाती है कि ग्राहक संख्या बढ़ाई जाए और इसी से खर्च चले।’
पाक्षिक पत्रिका कमल संदेश का सालाना सदस्यता शुल्क 350 रुपये है। एक हजार रुपये में 3 साल और 3000 रुपयों में आजीवन सदस्यता के लिए मुहिम चलाई जा रही है। पार्टी कार्यकर्ताओं को लक्ष्य दिया गया है कि वे अपने प्रदेश के विधायकों, पार्षदों और पार्टी की विचारधारा से जुड़े लोगों को इस पत्रिका से जोड़ें। अकसर कहा जाता है कि भाजपा व्यापारियों की पार्टी है और इस पार्टी में बुद्धिजीवियों के लिए कोई जगह नहीं है। सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस कमी को शिद्दत से महसूस किया। इसलिए अब पार्टी भी चाहती है कि भले ही पत्रिका की मार्फत लेकिन कार्यकर्ता कुछ पढ़ें और कम से कम पार्टी के इतिहास और इतिहास पुरुषों के बारे में जानें। मीडिया की ताकत से भी पार्टी और पार्टी अध्यक्ष अनजान नहीं हैं। यही वजह है कि पार्टी भी शायद अकबर इलाहाबादी के इस शेर में यकीन करने लगी है, खींचो न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।