वह आज तक न समझ पाया था कि उसके माता-पिता ने उसका नाम शकुनि क्यों रखा था। माता-पिता का तो वह हमेशा लाड़ला रहा था। बचपन से पांसे फेंक कर जीतने का वह शौकीन था। पर केवल इसी कारण तो उसका नाम शकुनि नहीं रखा गया होगा। चलो, मैं क्यों फिक्र करूं, वह मन ही मन बुदबुदाया। वैसे भी नाम में क्या रखा है? फिर पांसे फेंकर कर जीतना भी कला है। इस में एकाग्रता, कल्पना शक्ति, आत्मविश्वास और अपनी काबिलियत में भरोसे की भी अत्यंत आवश्यकता होती है, तभी तो आप जीत सकते हैं।
खजुराहो नृत्य समारोह-एक ऐसे दौर में जब कला को खुद को जिंदा व प्रासंगिक बनाए रखने के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ रही है, अलग-अलग कलाओं का एक-दूसरे का सहारा बनकर एक मंच पर आना एक सुकून देने वाला अनुभव है। खजुराहो नृत्य समारोह ऐसा करने में काफी हद तक कामयाब रहा है।
तमिल लेखक पेरूमल मुगरुगन ने हिंदुत्ववादी धमकियों का मुक़ाबला करने के लिए अदालत में गुहार लगाई है। कुछ समय पहले उन्होंने कट्टरपंथियों के दबाव में आकर अपनी लेखकीय मौत की घोषणा कर दी थी। इस घटना ने बड़ी संख्या संख्या में देश-विदेश के बुद्धिजीवियों का ध्यान खींचा था।
विश्व पुस्तक मेले में इस बार हिंदी लेखकों की आमद ने पाठकों को भी पछाड़ दिया है। देश के कोने-कोने से पधारे लेखकों को देख कर लगता है कि हिंदी साहित्य की परंपरा बहुत समृद्ध हो रही है। किताबों की संख्या बढ़ रही है क्योंकि एक-एक लेखक साल भर में कम से कम पांच किताबें लिखने का माद्दा रखता है।
राजधानी दिल्ली में भारत कला मेला समाप्त हो गया है लेकिन उसकी ऐसी ही कई छवियां दर्शकों के दिमाग में दर्ज हो गई हैं। कला के विविध रंग इस मेले में देखने कि मिले। बड़े और नामी कलाकारों की कृतियां इस मेले में आम लोगों ने करीब से देखी और परखीं।
देश के राजनीतिक इतिहास में ऐसी घटनायें कम ही सुनने को मिलती हैं कि एक गीत किसी सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर दे और सरकार को उस गीत और गीतकार के खिलाफ पूरी ताकत झोंकनी पड़ी हो। और आख़िरकार वह गीत ही सरकार का विदाई गीत बन गया हो।
किताब प्रेमी हर साल इन्तज़ार करते हैं कि कब किताबों का मौसम आएगा और वे न सिर्फ किताबों की दुनिया में खो जाएंगे बल्कि भागम भाग के इस दौर में कुछ पल किताबों की जिल्द की छांव में सुस्ता भी लेंगे। पुस्तक मेला नएपन के लिए जाना जाने लगा है।