हृषीकेष सुलभ साहित्य जगत के बहुत प्रतिष्ठित लेखक हैं। ग्रामीण अंचलों की पृष्ठभूमि के अलावा शहरी जीवन की चमक-दमक पर भी उनकी लेखनी उतनी ही सुगमता से चलती है। कहानी संग्रह ‘वसंत के हत्यारे’ के लिए उन्हें 16वां इंदु शर्मा अंतरराष्ट्रीय कथा सम्मान मिला। कहानियों के लिए ही बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, रंगमंच और नाटक लेखन के लिए अनिल कुमार मुखर्जी शिखर सम्मान, रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान, पाटलिपुत्र पुरस्कार, सिद्धार्थ कुमार स्मृति सम्मान आदि मिल चुके हैं।
सर्वेश सिंह की कविताएं आध्यात्म और वास्तविक जीवन के ईद-गिर्द खूबसूरत ताना-बाना बुनती हैं। उनके द्वारा लिखे गए कई लेखों पर तीखी बहसें भी हुई हैं। उनकी कहानी ज्ञान क्षेत्रे, कुरूक्षेत्रे को बहुत सराहना मिली थी। सर्वेश फिलवक्त डीएवीपीजी कॉलेज, बनारस में हिंदी विभागाध्यक्ष हैं।
किताबों की हमारे जीवन में उपस्थिति और उसके महत्व को रेखांकित करते हुए साहित्य अकादेमी ने ‘साहित्य मंच’ के अंतर्गत विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर एक विशिष्ट कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े महत्त्वपूर्ण लोगों ने किताबों से अपने रिश्तों को श्रोताओं से साझा किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसार भारती के सीईओ श्री जवाहर सरकार ने की।
1 जनवरी 1958 को उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले में जन्में हरिसुमन बिष्ट हिंदी साहित्य के जानेमाने कहानीकार हैं। कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल से हिंदी में स्नातकोत्तर और आगरा विश्वविद्यालय, आगरा से पी.एच.डी की उपाधि।
उनकी प्रमुख प्रकाशित रचनाओं में उपन्यास : ममता, आसमान झुक रहा है, होना पहाड़। कहानी संग्रह : सफ़ेद दाग, आग और अन्य कहानियां, मछरंगा, बिजूका। यात्रा विवरण : अंतर्यात्रा हैं।
सन 1983 में उनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘अपनी जबान में कुछ कहो' को साहित्यिक श्रेणी में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उपाध्याय उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्याल में प्राध्यापक हैं। अध्यापन से पहले वह प्रखर पत्रकार रह चुके हैं। अमर उजाला और हिंदुस्तान अखबार में काम करते हुए उन्होंने रिपोर्टिंग के क्षेत्र में जो भी विविधताएं महसूस कीं उन्हें बाद में कविता में ढाला। उनकी खबरों की समझ और कविता की संवेदना मिल कर जो काव्य पैदा करती है, वह कविता को नई भाषा देती है।
अवधनारायण मुद्गल शीर्षक कहानी की शुरुआत 28 फरवरी 1936 को आगरा के ऐमन्पुरा में उनके जन्म से हुई। शिक्षा शास्त्री और साहित्य रत्न के अलावा मानव शास्त्र में एम.ए. की डिग्री लेने वाले अवध जी के बारे में कम लोग जानते हैं कि वह प्रगतिशील साहित्य के गहन अध्येता थे। गोर्की, चेखव, मार्क्स, एंगल्स और लेनिन के साथ साथ वह भारतीय दर्शन और पुरा कथा साहित्य के भी मर्मज्ञ थे।