छात्र राजनीति में आंदोलन, हड़ताल, हिंसा की घटनाएं पहले भी होती रही हैं। लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में हुए टकराव में भयावह शब्दों के साथ घृणित हिंसा बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
जाने माने नोबेल पुरस्कृत अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को लगता है कि भारत में भय का माहौल व्याप्त है। देश के विश्वविद्यालयों पर खतरा मंडराने लगा है। बोलने की आजादी पर बंदिश लगाने की कोशिशें हो रही हैं। उन्होंने नोटबंदी के केंद्र सरकार के कदम को अजीबोगरीब करार दिया है। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय का चांसलर हिंदुत्व के एक पैरोकार को बनाए जाने को लेकर भी मोदी सरकार की खिंचाई की है।
कुछ दिन पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने यूपी के चुनावों में भाजपा द्वारा एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिए जाने पर अफसोस जताया था और अब दो और केंद्रीय मंत्रियों ने पार्टी के इस फैसले को गलत करार दिया है।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों से लगातार वोट की अपील कर रही बसपा सुप्रीमो मायावती ने रविवार को कहा कि राज्य में सपा के लगभग पांच साल और केन्द्र में भाजपा के पौने तीन वर्ष के कार्यकाल के दौरान दोनों की गलत नीतियों से प्रदेश की 22 करोड़ जनता नाराज है।
सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय परिसर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (आइसा) के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प के बाद पूरे परिसर में तनाव है। हाल ही में दिल्ली के रामजस कॉलेज में भी एबीवीपी और आइसा कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हुई थी जिसकी वजह से दिल्ली विश्वविद्यालय में भी तनाव है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में हिंसक झड़पों के कुछ दिन बाद लेडी श्रीराम कॉलेज की छात्रा और करगिल में शहीद हुए जवान की बेटी ने सोशल मीडिया पर एक अभियान शुरू किया है, जिसका नाम है- मैं एबीवीपी से नहीं डरती। यह अभियान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है।
मणिपुर की पहली मुस्लिम महिला उम्मीदवार नाजीमा बीबी का कहना है कि उनके चुनाव लड़ने के खिलाफ फतवा जारी होने के बावजूद वह घरेलू हिंसा के खिलाफ अपनी लड़ाई और मुस्लिम महिलाओं के उत्थान के लिए अपने प्रयास जारी रखेंगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को एक ही सिक्के के दो पहलू बताते हुये एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि एक तरफ जहां मोदी मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए गुजरात में दंगे नहीं रोक पाये थे वहीं दूसरी तरफ मुजफ्फरनगर के दंगों को अखिलेश नही रोक पाये, फिर दोनों में क्या फर्क बचा।
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की प्रथा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करके इनका फैसला करेगी।