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Search Result : "आदिवासी समाज"

‘मंदिरों, वक्फ की संपत्ति समाज कल्याण में लगाओ’

‘मंदिरों, वक्फ की संपत्ति समाज कल्याण में लगाओ’

लोकसभा में आज विभिन्न दलों के सदस्यों ने मांग की कि देश के मंदिरों, वक्फ बोर्डों और विभिन्न ट्रस्टों के पास पड़ी हजारों करोड़ की संपदा का इस्तेमाल समाज कल्याण योजनाओं में किया जाय। यही नहीं सरकार ट्रस्टों समेत देश में कार्यरत एनजीओ सेक्टर की लगातार निगरानी सुनिश्चित करे।
यूपी के शिक्षामित्रों को मिली सुप्रीम कोर्ट से राहत

यूपी के शिक्षामित्रों को मिली सुप्रीम कोर्ट से राहत

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में ठेके पर कार्यरत करीब दो लाख शिक्षामित्रों को आज बड़ी राहत देते हुए उन्हे नियमित करने तथा सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त करने की राज्य सरकार की कवायद को गैरकानूनी करार देने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी है।
धर्मनिरपेक्षता के बदले  'इंडिया फर्स्‍ट' का पैंतरा

धर्मनिरपेक्षता के बदले 'इंडिया फर्स्‍ट' का पैंतरा

धर्मनिरपेक्षता की धारणा पर कुछ हद तक सवाल खड़े करते हुए संविधान दिवस (26 नवंबर 2015) के आयोजन ने इस बहस को एक बार फिर से खड़ा कर दिया। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उस दलील को दोहराया जिसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परिवार अर्से से उठाता रहा है। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता शब्द की विकृत परिभाषा का उपयोग समाज में तनाव उत्पन्न कर रहा है।
किसी भारतीय की देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता: मोदी

किसी भारतीय की देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता: मोदी

असहिष्णुता को लेकर छिड़ी बहस के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अत्याचार की किसी भी घटना को समाज के लिए कलंक बताते हुए आज कहा कि देश के 125 करोड़ लोगों में से किसी की भी देशभक्ति पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है और न ही किसी को हर समय अपनी देशभक्ति का सबूत देने की आवश्यकता है।
क्या वाकई थम गई पुरस्कार वापसी मुहिम?

क्या वाकई थम गई पुरस्कार वापसी मुहिम?

बिहार चुनाव के नतीजे आने का बाद सोशल मीडिया पर इन दिनों एक कविता काफी प्रसारित हो रही है। इस कविता में कहा जा रहा है कि अब कहीं से भी गोमांस, सम्मान वापसी, अरहर दाल की बढ़ती कीमतों को लेकर कोई बयान नहीं आ रहा है। यह सवाल खड़ा होता है कि क्या ऐसा सहिष्णुता की वजह से है या ऐसा बिहार का चुनाव खत्म हो जाने की वजह से है। स्पष्ट तौर पर यह आरोप लगता रहा है कि लेखकों, कलाकारों और वैज्ञानिकों द्वारा जो पुरस्कार लौटाए जा रहे थे वह बिहार चुनावों को प्रभावित करने की एक पूर्वनियोजित साजिश थी। इस संबंध में आरएसएस का मानना है कि पुरस्कार वापसी की मुहीम राजनीतिक ताकतों के हित में बहुत सलीके से संयोजित की गई थी। केंद्रीय मंत्री जनरल वी के सिंह ने तो यहां तक कहने में भी गुरेज नहीं किया कि पुरस्कार वापसी के इस मुहिम में बहुत ज्यादा पैसा सम्मिलित था। जो कुछ भी हुआ, यह उसकी पूरी तरह से एक प्रायोजित और विकृत व्याख्या है।
पंचायत चुनाव में सपा को झटका, आेवैसी समर्थकों ने खाता खोला

पंचायत चुनाव में सपा को झटका, आेवैसी समर्थकों ने खाता खोला

उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी को तगड़ा लगा है। पंचायत चुनाव में सपा समर्थकों की हार ने यह बता दिया कि जनता का झुकाव अब दूसरे दलों की ओर हो रहा है। मजेदार बात यह है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम के स‌मर्थकों ने प्रदेश में खाता खोल दिया है।
समाज का चितेरा

समाज का चितेरा

सामाजिक ताना-बाना समझना किसी के लिए भी आसान नहीं है। इस जटिलता को भी असगर वजाहत ने बहुत अच्छी तरह न सिर्फ समझा बल्कि उसे बयान करने का शिल्प भी कमाल का है। यह शब्द जाने-माने साहित्यकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के हैं, जो उन्होंने असगर वजाहत की कहानियों को पढ़ने के बाद कहे थे।
राजनीतिक अस्थिरता ने झारखंड को पीछे धकेला: रघुवर दास

राजनीतिक अस्थिरता ने झारखंड को पीछे धकेला: रघुवर दास

डेढ़ दशक पहले बने झारखंड में पहली बार गैर आदिवासी मुख्यमंत्री ने राज्य की सत्ता संभाली है। बीते वर्षों में यह राज्य घोटालों और राजनीतिक अस्थिरताओं के कारण चर्चा में रहा है। प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण यह राज्य विकास के मामले में लगातार पिछड़ता रहा। करीब नौ महीने के कार्यकाल में रघुवर दास ने राज्य के विकास के लिए कई नई योजनाओं का शुभारंभ किया। उनसे आउटलुक के विशेष संवाददाता कुमार पंकज ने सरकार की योजनाओं और विकास को लेकर विस्तार से बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश:
कुपोषण से लुप्त हो रहे कमार आदिवासी

कुपोषण से लुप्त हो रहे कमार आदिवासी

‘ एक आदमी के लिए सात किलो चावल और दो किलो चना, क्या इससे गरीबी दूर होती है?’ कोंडागांव के नगरी संभाग के गांव उमर का सुखदेव यह सवाल करते हुए रुआंसा हो जाता है। उसकी पत्नी और तीन बच्चे खेत में मजदूरी करने गए हैं। सौ रुपये दिहाड़ी मिलती है और जंगल से मिलने वाली साग-भाजी तो अब पहले जैसी नहीं रही। सुखदेव का कहना है कि वह अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता है। लेकिन सरकार ने सिर्फ साइकिल देकर अपनी जिम्मेदारी खत्म कर दी। उसकी छोटी बेटी नौवीं कक्षा में दो बार फेल हो गई थी तो स्कूल वालों ने तीसरी बार एडमिशन देने से इनकार कर दिया।
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