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चर्चाः पत्थर का सिंहासन, न्याय के आंसू | आलोक मेहता

चर्चाः पत्थर का सिंहासन, न्याय के आंसू | आलोक मेहता

देश-दुनिया को न्याय दिलाने वाले भारतीय न्यायाधीशों की कोई यूनियन नहीं होती। वे नारे नहीं लगा सकते। विरोध में प्रदर्शन नहीं कर सकते। स्वयं बनाई आचार संहिता के तहत अधिकांश न्यायाधीश भव्य पार्टियों से भी बचते रहते हैं। निजी समारोह में भी कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करते। विधि संस्‍थानों अथवा प्रतिष्ठित संस्‍थानों को छोड़कर सभाओं को संबोधित करने नहीं जाते। केवल सत्य निष्‍ठा और निष्पक्ष न्याय उनका मूल मंत्र और लक्ष्य होता है। कानूनी ग्रंथों के अलावा अदालत में प्रस्तुत प्रकरणों की मोटी फाइलें दिन-रात पढ़ते और फैसले लिखते हैं।
चर्चाः शहनाई के शहंशाह के आंगन में गालियां | आलोक मेहता

चर्चाः शहनाई के शहंशाह के आंगन में गालियां | आलोक मेहता

शहनाई के शहंशाह बिस्मिल्ला खां साहब ने वाराणसी में रहकर दुनिया का दिल जीता। सांप्रदायिक सद्भावना की अद्भुत अलख जगाई। इसीलिये खान साहब को ‘भारत रत्न’ देकर देश की सरकार और जनता ने अपने को गौरवान्वित बनाया। उन्हीं खान साहब के वाराणसी शहर में गजल सम्राट गुलाम अली के आने पर एक कट्टरपंथी संगठन के भ्रमित लोगों ने कड़ा विरोध किया है।
चर्चाः दाल खट्टी, चीनी कड़वी | आलोक मेहता

चर्चाः दाल खट्टी, चीनी कड़वी | आलोक मेहता

स्वास्‍थ्य गड़बड़ होने पर मुंह का स्वाद बदल जाता है। इसी तरह भारत में मौसम के साथ महंगाई बढ़ने पर आम आदमी के दांत खट्टे भले ही न हों, दाल खट्टी और चीनी कड़वी लगने लगती है। एक तरफ किसानों को अनाज, तिलहन और गन्ने का सही दाम नहीं मिलता और कर्ज से तंग आकर लोग आत्महत्या करते हैं, दूसरी तरफ कालाबाजारी और सूदखोर दलाल एवं व्यापारियों का एक वर्ग मनमाने ढंग से मूल्य वसूलते हैं।
चर्चाः पुण्य के लिए पवित्र जल | आलोक मेहता

चर्चाः पुण्य के लिए पवित्र जल | आलोक मेहता

हरिद्वार में आज अर्द्ध कुंभ का समापन और उज्जैन में सिंहस्‍थ-कुंभ की शाही शुरुआत हो रही है। भारतीय संस्कृ‌ति के सबसे बड़े उत्सव, जिसमें लाखों नहीं करोड़ों लोग पहुंचते हैं।
चर्चाः ‘हुजूर’ के लिए करोड़ों के गुलदस्ते | आलोक मेहता

चर्चाः ‘हुजूर’ के लिए करोड़ों के गुलदस्ते | आलोक मेहता

देश के 33 करोड़ लोग सूखे और जल संकट से परेशान हैं, लेकिन शहरों और गांवों तक पहुंचने वाले नेताओं, मंत्रियों के स्वागत-सम्मान में गुलदस्ते, फूलमाला, प्रतीक चिह्न भेंट करने पर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं।
चर्चाः लिबास नहीं काम देखो | आलोक मेहता

चर्चाः लिबास नहीं काम देखो | आलोक मेहता

सोशल मीडिया से जागरुकता बढ़नी चाहिए अथवा संकीर्ण विचारों को फैलाया जाए? यह सवाल विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज की ईरान यात्रा के दौरान राष्‍ट्रपति हसन रूहानी से मुलाकात के दौरान पहनी लिबास पर सोशल मीडिया में चली निरर्थक बहस से उठता है।
चर्चाः सांसदों के भत्तों में सेंध | आलोक मेहता

चर्चाः सांसदों के भत्तों में सेंध | आलोक मेहता

यात्रा भत्ते में घोटाले के आरोप में फंसे सांसद अनिल साहनी ने अपने बचाव में नया पर्दाफाश किया है कि ‘मैंने एलटीसी गिरोह के सदस्यों द्वारा मेरे नाम से फर्जी बिल जमा करने के बारे में 2013 में ही अधिकारियों से शिकायत की थी।’
चर्चाः काम नहीं, नाम पर राजनीति | आलोक मेहता

चर्चाः काम नहीं, नाम पर राजनीति | आलोक मेहता

केंद्र और दिल्ली सरकार की नाक के नीचे हजारों दलित परिवारों के लिए पीने लायक साफ पानी, बच्चों के लिए शिक्षा, सिर छिपाने लायक छोटे फ्लैट, गंदी नालियां और शौचालय साफ करने के लिए सामान और ‌उचित मजदूरी नहीं है।
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