मां के हाथ के खाने की बात ही अलग है। लेकिन कितना भी पौष्टिक खाना हो यदि वह स्वास्थ्यवर्धक तरीके से न रखा जाए तो उसका कोई मतलब नहीं रह जाता। कुछ सालों से प्रचलित एल्युमिनियम फॉइल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है सभी को मालूम है, लेकिन इसका विकल्प क्या है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे के घोटाले की जांच में किसी तरह के प्रतिशोध की भावना से कार्रवाई की बात को खारिज कर दिया और कहा कि जांच एजेंसियां पेशेवर तरीके से काम करेंगी। हालांकि पीएम ने कहा कि एक पाप किया गया और उसके पीछे जो लोग थे उन पर बड़ा सुरक्षा आवरण रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई में डांस बार को इजाजत दी है। लेकिन महाराष्ट्र सरकार कड़े कानून ले आई है। इस कानून की आड़ में किसके हो रहे हैं पौ-बारह। मुंबई समेत महाराष्ट्र में डांस बार से पाबंदी हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अरसा बीत चुका है। लेकिन कानूनी तरीके से मुंबई में डांस बार अब तक शुरू नहीं हो पाए हैं।
भारत के राजनीतिक भविष्य का एजेंडा कॉरपोरेट घराने तय कर रहे हैं। इस कारण प्रबंधन कंपनियों या यूं कहें कि कई प्रबंधन गुरुओं की पौ-बारह हो गई है और राजनीतिक दल उनके सामने नतमस्तक दिख रहे हैं।
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और कटक से अटक तक कोचिंग का धंधा औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ पांव पसार चुका है और इस सच से कोई इनकार नहीं कर सकता। बिहार के मूल निवासी पीयूष कुमार गुजरात के अहमदाबाद में बैंक अधिकारी हैं। परिवार में पत्नी के अलावा सिर्फ एक बेटा है जो दसवीं की परीक्षा पास कर चुका है। मगर बेटा और पत्नी उनके साथ नहीं रहते। दोनों राजस्थान के कोटा में हैं जहां बेटा आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास करने के लिए एक नामी कोचिंग सेंटर में तैयारी कर रहा है। एक और उदाहरण देखें:ओडिशा से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुकी श्वेता कुमारी इंजीनियरिंग क्षेत्र में मंदी के कारण बैंक की नौकरी की तैयारी कर रही हैं। सिलीगुड़ी के अपने घर में रहकर उसने परीक्षा दी मगर लिखित परीक्षा की बाधा पार नहीं हो पाई। उसने दिल्ली का रुख किया और यहां एक कोचिंग से बैंकिंग की तैयारी के बाद पहली बार में ही रिजर्व बैंक और बैंक पीओ की लिखित परीक्षा पास कर ली। ये दो उदाहरण देश में कोचिंग के पूर्ण विकसित हो चुके धंधे की कहानी बयां करते हैं। जरा 15 साल पहले का जमाना याद करें जब कोचिंग का मतलब आपके घर में ही आस-पड़ोस के किसी बेरोजगार युवक द्वारा आपके बच्चों को पढ़ाई में थोड़ी-बहुत मदद कर देना होता था। अब अगर बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर, मैनेजर, प्रशासनिक अधिकारी या किसी सरकारी दफ्तर में क्लर्क ही बनना हो तो औपचारिक शिक्षा की डिग्री के साथ-साथ किसी कोचिंग संस्था का मार्गदर्शन होना अनिवार्य है अन्यथा गला काट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में उसका पिछड़ना तय है। सीधे शद्ब्रदों में कहें तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और कटक से अटक तक कोचिंग का धंधा औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ पांव पसार चुका है और इस सच से कोई इनकार नहीं कर सकता। साल 2013 में हुए एक आकलन के मुताबिक भारत में कोचिंग इंडस्ट्री लगभग 23.7 अरब डॉलर (160.16 अरब रुपये) की थी, जिसके साल 2015 में 40 अरब डॉलर (270 अरब रुपये) के होने की भविष्यवाणी की गई थी और अगले पांच वर्षों में यह 500 अरब रुपये तक पहुंच सकती है।
हाल ही में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में उच्च शिक्षा के गिरते स्तर को लेकर चिंता प्रकट की मगर साथ ही साथ उन्होंने इस बात पर संतोष भी जताया कि निजी शिक्षा के क्षेत्र में फैलाव से उच्च शिक्षा तक छात्रों की पहुंच बढ़ गई है। आंकड़े दिखाते हैं कि राष्ट्रपति की दोनों ही बातों में दम है। वर्तमान में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 60 फीसदी छात्र निजी संस्थानों से हैं। निजी शिक्षा के प्रसार ने ऊंची शिक्षा तक पहुंच को बढ़ा दिया है लेकिन समय-समय पर सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। संसद की एक समिति ने भी उच्च शिक्षा की दशा पर सवाल उठाए हैं और इसे दुरुस्त करने की सिफारिश की है। हालांकि शिक्षा को लेकर सरकार कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2014-15 के बजट में शिक्षा के बजट को 83 हजार करोड़ रुपये से घटाकर 69 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया और इससे अगले साल के बजट में भी इसमें बढ़ोतरी नहीं की गई।
कर्नाटक के हासन जिले में रहने वाले एस एल भैरप्पा ने भारतीय संस्कृति पर और पुराणों पर बहुत काम किया है। पर्व और आवरण जैसे चर्चित उपन्यास के लेखक भैरप्पा चाहते हैं कि भारतीय संस्कृति को जीवित रखना है तो आज ही कदम उठाने होंगे।