पठानकोट आतंकी हमले के कवरेज को लेकर सरकार की ओर से एनडीटीवी इंडिया के प्रसारण पर नौ नवंबर को एक दिन के लिए लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ चैनल ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
चुनाव आयोग ने आज आपराधिक मामलों में विधि निर्माताओं को दोषी ठहराए जाने पर उन्हें तुरंत अयोग्य घोषित करने की मांग का समर्थन किया लेकिन उच्चतम न्यायालय से कहा कि चुनाव संबंधी कानून के प्रावधान इस तरह का उपाय करने में रोड़ा हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसके द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षक न्यायमूर्ति मुकुल मुदगल के निर्देश पर चुने गए तीन चयनकर्ताओं को विभिन्न पैनल से हटाने के फैसले के लिए दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) को फटकार लगाते हुए कहा कि यह अवमानना का मामला है और डीडीसीए ने एक बार फिर हद पार की है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक न्यायाधीश पर पूर्वाग्रह का आरोप लगाने और 1984 के सिख विरोधी दंगों का मामला किसी और पीठ को भेजने की मांग करने पर कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को लताड़ा और कहा कि यह न्यायाधीश को अपमानित करने की मंशा से किया गया सीधा हमला है। अदालत ने कुमार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की भी चेतावनी दी।
वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगों की 32वीं बरसी पर राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनिल देव सिंह ने कहा है कि कर्तव्य की उपेक्षा करने वाले और दंगाइयों पर आंखें बंद कर लेने वाले सरकारी अधिकारियों को हिंसा में सहायता करने वाला घोषित किया जाना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि चुनाव में प्रत्याशियों की शैक्षणिक योग्यता के बारे में जानकारी प्राप्त करना मतदाताओं का मौलिक अधिकार है और इस संबंध में कोई भी गलत घोषणा नामांकन पत्र अस्वीकार करने का आधार बन सकता है।
देश के प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर ने आज कहा कि न्यायिक नैतिकता के साथ कभी भी समझौता नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि असामान्य घटनाओं से पूरी न्याय प्रणाली की छवि खराब हो सकती है। इसके साथ ही उन्होंने न्यायाधीशों से कहा कि उन्हें उनकी सत्यनिष्ठा के बारे में लोगों की धारणा के बारे में आत्मचिंतन करना चाहिए।
सरकार को सबसे बड़ा वादी बताते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा कि न्यायपालिका का बोझ कम करने की जरूरत है क्योंकि उसका अधिकांश समय ऐसे मामलों की सुनवाई करने में लग जाता है जिनमें सरकार एक पक्ष होती है। प्रधानमंत्री ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज पर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा स्थापित करने की भी वकालत की।
न्यायिक नियुक्तियों में विलंब को लेकर उच्चतम न्यायालय की फटकार के बाद सरकार ने कहा है कि इसने उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की मंजूर संख्या को 906 से बढ़ाकर 1079 कर दिया है। सरकार ने कहा है कि राजग सरकार के शासनकाल में उच्च न्यायालयों में खाली पदों में असामान्य बढ़ोतरी नहीं हुई है।