कर्नाटक सरकार ने आज राज्य के सभी सिनेमाघरों में टिकटों का अधिकतम मूल्य 200 रूपये तय कर दिया है। साथ ही, प्राइम टाइम के दौरान मल्टीप्लेक्सों में कन्नड़ और क्षेत्रीय सिनेमा दिखाना अनिवार्य कर दिया है।
आठ दशक लंबे स्वर्णिम दौर के बाद दिल्ली का प्रतिष्ठित सिनेमाघर रीगल कल बंद हो जाएगा। इसमें दिखाई जाने वाली अंतिम फिल्म होगी अभिनेता राजकपूर की मेरा नाम जोकर और संगम। मध्य दिल्ली के कॅनाट प्लेस में स्थित रीगल के वास्तुकार थे वाल्टर स्काइज जॉर्ज। इसे वर्ष 1932 में खोला गया था। सिनेमाघर के मालिकों में से एक विशाल चौधरी ने बताया कि प्रशंसकों के अनुरोध के बाद ही उन्होंने राजकपूर की फिल्में दिखाने का निर्णय लिया।
उपहार अग्निकांड मामले में उच्चतम न्यायालय ने रियल एस्टेट कारोबारी गोपाल अंसल की वह याचिका आज खारिज कर दी जिसमें उन्होंने अपने भाई सुशील अंसल की तरह सजा में रियायत देने का अनुरोध किया था। गोपाल अंसल को अब एक साल की सजा में से बची हुई अवधि जेल में भुगतने के लिए समर्पण करना होगा। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा, गोपाल अंसल की याचिका खारिज की जाती है।
रियल इस्टेट कंपनी के मालिक गोपाल अंसल को एक बार फिर आज सुप्रीम कोर्ट से तत्काल राहत नहीं मिली। न्यायालय ने कहा कि वह उपहार अग्निकांड मामले में छह मार्च को उनकी अपील पर सुनवाई करेगा।
उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी फिल्म, वृत्त चित्र या समाचार फिल्म की कहानी के हिस्से के रूप में राष्ट्रगान बजने के दौरान दर्शकों को खड़ा होने की जरूरत नहीं है।
दिल्ली के उपहार सिनेमा हादसे में सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल अंसल को एक साल की जेल की सजा सुनाई है। उनके पास सरेंडर करने के लिए चार हफ्ते का वक्त है। एक साल की जेल के वक्त में से गोपाल चार महीने की जेल पहले ही काट चुका है। गोपाल के भाई सुशील अंसल को उनकी उम्र की वजह से जेल नहीं भेजा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला नवंबर 2015 में दिए गए फैसले पर डाली गई रिव्यू पिटिशन की सुनवाई करते हुए दिया है।
उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1997 में हुए उपहार अग्निकांड मामले के संबंध में रियल एस्टेट दिग्गज गोपाल अंसल को एक साल कारावास की सजा सुनाई। इस त्रासदीपूर्ण घटना में 59 लोग मारे गए थे।
फिल्मों को कला के साथ-साथ संप्रेषण के माध्यम के तौर देखे जाने के प्रति दर्शकों की स्वीकार्यता ने हाल के बरसों में ढेरों फिल्म-समारोहों को भी जन्म दिया है। यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में भारत के विभिन्न शहरों में किस्म-किस्म के फिल्मोत्सवों की शुरूआत हुई है जिनमें से काफी सारे समारोह खासा नाम भी कमा चुके हैं।
अवाम का सिनेमा ने तय किया है कि छोटे कस्बों, दूरदराज के गांवों में गुमनामी में पड़े क्रांतियोद्धाओं की कहानियां दुनिया के फलक पर दस्तावेजों के साथ लायी जाएगी। 2006 में शाह आलम और उनके हमख्याल चंद साथियों के जरिए शुरू की गई इस मुहिम ने दस बरस पूरे कर लिए हैं। इस कड़ी में अयोध्या में अवाम का सिनेमा16 से 19दिसंबर, 2016 तक चार दिवसीय फिल्म फेस्टिवल एवं क्रांतिकारी स्मृति महोत्सव आयोजित कर रहा है।