मुख्यधारा के कलाकारों कंगना रणौत, राजकुमार राव, आलिया भट्ट और सिद्धार्थ मल्होत्रा ने 17वें जियो मामी मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में शिरकत करते हुए इस आयोजन के प्रति अपना समर्थन जताया। यह आयोजन स्वतंत्र फिल्मकारों को अपना काम दिखाने के लिए मंच उपलब्ध करवाता है।
दीपिका फिल्मों के मामले में भले ही चूजी न हों पर प्यार के मामले में वह न सिर्फ चूजी है बल्कि थोड़ी कनफ्यूज भी। उन्हें न रणवीर चाहिए न रणबीर। उनकी पसंद तो शाहरूख खान है।
लगता है शाहिद कपूर को अंदाजा नहीं है कि शादी के बाद खर्चे बढ़ जाते हैं। इस बात का अंदाजा होते ही वह सिर्फ बढ़िया काम करना चाहेंगे, ‘शानदार’ के चक्कर में नहीं पड़ेंगे।
डॉक्टर देवदत्त पट्टनायक भारतीय पुराणों, उपनिषदों पर लगातार काम करते रहे हैं। जल्द ही उनकी दो नई पुस्तकें इसी विधा पर आने वाली हैं। अपनी पुस्तक में वह उन कथाओं को समेटते हैं, जो अब लोगों के मस्तिष्क से मिट गई हैं। मिथक और पौराणिक कहानियों के बीच वह संतुलन बनाते हुए कालातीत हुए किस्से लिखना उनकी खूबी है। उनकी पुस्तक भारतीय पौराणिक कथाएं के अध्याय 3 – पुराकथा-निर्माण : पुराकथाओं का रूपान्तरण के अंश।
प्रेम रतन धन पायो को आने में अभी वक्त है। हर थोड़े अंतराल के बाद इस फिल्म के गाने रीलिज हो रहे हैं। सूरज बड़जात्या मार्का फिल्मों की तरह यह फिल्म भी रोमांस का नया आगाज करेगी।
सामाजिक ताना-बाना समझना किसी के लिए भी आसान नहीं है। इस जटिलता को भी असगर वजाहत ने बहुत अच्छी तरह न सिर्फ समझा बल्कि उसे बयान करने का शिल्प भी कमाल का है। यह शब्द जाने-माने साहित्यकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के हैं, जो उन्होंने असगर वजाहत की कहानियों को पढ़ने के बाद कहे थे।
नए जमाने की कहानियां अब इतने नए जमाने की हो गई हैं कि यह फिल्में सिर्फ एक खास पीढ़ी को ही अच्छी लग सकती हैं। प्यार का पंचनामा का पहला भाग भी ठीक ठाक चल गया था तो इसका सीक्वेल भी अच्छा चल जाने की पूरी उम्मीद है। पूरे देश के विश्वविद्यालय के छात्र भी अगर इस फिल्म को देख लेंगे तो निर्माता के पूरे पैसे वसूल हो जाएंगे।
चिंटू उपनाम से मशहूर ऋषि कपूर का नाम चिंटू कैसे पड़ा इसके पीछे एक दिलचस्प दास्तां है। लेकिन उन्हीं की जुबानी सुनने के लिए उनके प्रशंसकों को टेलीविजन का एक शो देखना होगा।
भारत सरकार में इंटेलीजेंस ब्यूरो के पूर्व अधिकारी और विवेकानंद फाउंडेशन के फेलो आरएनपी सिंह को खुफिया से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में गहरा अनुभव है। उनकी राइट्स एंड रांग्स, बांग्लादेश डिकोडेड और हिंदी में दो पुस्तकें बहुत चर्चित रहीं। नेहरू: ए ट्रबल्ड लीगेसी से उन्होंने कुछ मौलिक सवाल उठाए हैं: क्या हमने कभी नेहरू के बारे में ईमानदारी से मूल्यांकन किया है और इस प्रभाव में क्या हमने देश के समकालीन इतिहास का निष्पक्ष मूल्यांकन किया है? इस पुस्तक में नेहरू के सिद्धांतवाद या अपने हित में दोहरे मानदंड अपनाने पर सवाल उठाए गए हैं।