अगर आजादी का मतलब विदेशी हुकूमत से आजादी है तो वह यकीनन हमने हासिल कर ली। लेकिन सवाल यह है कि क्या महिलाओं को परंपराओं-मान्यताओं की जकड़न से आजादी मिली ? या पुराने पड़ चुके कानूनों ने उन्हें दूसरे तरह की जकड़न में बांध दिया है, आजाद हिंदुस्तान के कानूनों की बेड़ियां ?
जो लोग राजा-महाराजाओं को नाराज करते थे वह उन्हें हाथियों से कुचलवा दिया करते थे। आधुनिक सभ्य राज्य में वैसे लोगों को फांसी दी जाती है। लेकिन यह राजधर्म के नाम पर क्यों होता है? सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अनिल दवे के खुली अदालत में बोले गए शब्द, गुनाहगारों को सजा राजधर्म है, मेरे कानों में हमेशा गूंजते रहेंगे। महाधिवक्ता की बातें भी हमेशा मेरे कानों में गुंजती रहेंगी जो उन्होंने न्यायाधीश कुरियन को कही कि तयशुदा चीजों में आप विलंब कर रहे हैं। इस आदमी का फांसी पर चढ़ना तय है। वह दोनों 1993 बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगवाने वाली याचिका का विरोध कर रहे थे। क्या राजधर्म के अनुसार माया कोडनानी और बाबू बजरंगी को फांसी होगी?
अंग्रेजी के एक खबरिया चैनल के अनुसार ईडी के वांटेड ललित मोदी को ब्रिटेन में यात्रा दस्तावेज हासिल करने में सुषमा स्वराज की मदद के कुछ महीनों बाद विदेश मंत्री के पति स्वराज कौशल को पूर्व आईपीएल कमिश्नर ने अपनी एक कंपनी इंडोफिल इंडस्ट्री में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर पद की पेशकश की थी।
जनता परिवार के विलय को लेकर मुश्किलें बढ़ती जा रही है। जनता परिवार के घटक दलों की बैठक से एक दिन पहले राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने जनता दल यूनाइटेड के लिए यह कहकर असहज स्थिति पैदा कर दी कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भाजपा के खिलाफ व्यापक एकता का हिस्सा होना चाहिए।
शादी किए बगैर लिव इन में रहने वाले जोड़ों के लिए सर्वोच्च न्यायालय से एक बड़ी खबर है। न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि अगर एक अविवाहित जोड़ा पति-पत्नी की तरह साथ रह रहा है तो उन्हें कानूनी रूप से शादीशुदा माना जाएगा और पार्टनर की मौत की स्थिति में महिला उसकी संपत्ति की कानूनी हकदार होगी।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर राज्यसभा में मंगलवार को विपक्ष के एक संशोधन के पारित हो जाने और इस विषय पर सरकार की करारी हार से भले ही केंद्र सरकार को सीधा खतरा न हो मगर इसने इस बात का संकेत तो दे ही दिया है कि बीमा विधेयक, कोयला विधेयक या फिर भूमि अधिग्रहण विधेयकों पर सरकार की राह कतई आसान नहीं होगी।
बच्चों को शिक्षा के लिए सदमे और डर से मुक्त माहौल देने के लिए शारीरिक दंड एवं वार्षिक परीक्षा आधारित पास-फेल की प्रणाली खत्म कर दी जा रही है। इसके बदले निरंतर मूल्यांकन की व्यवस्था की गई है। विधेयक में सभी विद्यालयों के पाठ्याचार को संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप ढालने का प्रावधान किया है। इससे कुछ संस्थाओं, संगठनों के स्कूलों में सांप्रदायिक और इस तरह के अन्य एजेंडे को सीमित करने मे मदद मिलेगी।