केंद्रीय बजट की तैयारियां शुरू हो गई है और इसमें ग्रामीण भारत की एक महत्वपूर्ण योजना को लेकर खासा मंथन चल रहा है। यह योजना है महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना।
मास्को की मुलाकात कोई औपचारिक इंटरव्यू नहीं थी। न ही यह लुक-छिपकर की गई कोई भेंट थी। बढ़िया बात यह थी कि हमारा मिलना किसी सतर्क, कूटनीतिक, औपचारिक एडवर्ड स्नोडेन से नहीं हुआ। अफसोस की बात यह है कि कमरा नंबर 1001 में हुए मजाकों, हास्य और मसखरेपन को उसी तरह व्यक्त नहीं किया जा सकता।
बिहार चुनाव में क्यों इतनी क्रूरता से पलटा भाजपा का भाग्य। भाजपा के प्रवक्ता और समर्थक महागठबंधन के अंकगणित और विपक्षी एकता को ही बढ़-चढ़कर अपनी हार की मुख्य वजह बताने मे लगे हैं। इस बहस में यह तथ्य बिल्कुल ही नजरअंदाज कर दिया गया कि हाल के चुनाव में भाजपा के परंपरागत मतदाताओं के अच्छे खासे प्रतिशत ने पार्टी का साथ छोड़ दिया।
राजेंद्र राव शिक्षा और पेशे से भले ही इंजीनियर रहे हों, मगर उनका मन सदैव साहित्य और पत्रकारिता में ही रमा रहा । तकनीकी और प्रबंधन के क्षेत्र में काफी समय बिताने के बाद अवसर मिलते ही साहित्यिक पत्रकारिता में आ गए। कृतियों में एक उपन्यास, सात कथा संकलन और कथेतर गद्य के बहुचर्चित संकलन उस रहगुजर की तलाश है । संप्रति दैनिक जागरण में साहित्य संपादक।
हाल में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक भारत में शहरों की तुलना में गांवों में बच्चों का टीकाकरण कराने की दर बेहतर है जबकि पहले के अध्ययनों के परिणामों में इसके विपरीत बात कही गई थी। इसके साथ ही टीकाकरण की दर के मामले में मुसलमानों के बजाए हिंदू परिवारों के बच्चे बेहतर स्थिति में हैं।
इसी महीने जारी सामाजिक-आर्थिक-जाति जनगणना (एसईसीसी) के आंकड़े देखकर हम दिल्ली में समुंदर खोजने लग गए। इन आंकड़ों के नुसार दिल्ली में मछली पकड़ने की मशीनी नौकाएं 14,468 परिवारों के पास हैं-बड़े समुद्र तटीय क्षेत्र वाले तमिलनाडु के 13,760 परिवारों के पास ऐसी नौकाओं से कहीं ज्यादा। और तमिलनाडु के बड़े तटीय भूभाग को पखारता विशाल समुंदर और उसमें दूर-दूर तक डूबती-उतराती, मछली मारने के लिए जाल फैलाती अनगिनत मशीनी और मानव चालित नौकाएं हमने आंखों देखी हैं।
केंद्र सरकार ने लंबे इंतजार के बाद सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) 2011 के कुछ आंकड़े जारी किए हैं। हालांकि, जाति से जुड़े आंकड़ों का अभी भी खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन ग्रामीण भारत से जुड़े कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इनमें से कुछ आंकड़े काफी विवादस्पद नजर आते हैं। नतीजों को सार्वजनिक करने में देरी और आपत्तियों की सुनवाई को लेकर यह जनगणना पहले ही सवालों से घिरी है। जानिए देश के 640 जिलों में हुई सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना ग्रामीण भारत की कैसी तस्वीर पेश करती है-
प्रफुल्ल बिदवई विलक्षण प्रतिभा के धनी पत्रकार, प्रवक्ता, बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता थे। उनका अकस्मात हमारे बीच से चले जाना जनतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और शांति आंदोलनों के लिए एक बड़ा झटका है। आज के विपरीत समय में अपनी बेबाक शैली, सुव्यवस्थित विश्लेषण और दुस्साहस के स्तर तक जोखिम उठाने की क्षमता के चलते वे अनेक युवा और आदर्शवादी पत्रकारों के प्रेरणास्रोत रहे। उनकी वैज्ञानिक और संपूर्ण दृष्टि तथा ऐतिहासिक बोध, उनकी विश्लेषण क्षमता का मूल मंत्र रहा। इसी ने उन्हें हमेशा खास बनाए रखा और जीवनभर उनकी लेखनी की चमक यूं ही बनी रही।
राजस्थान के जयपुर औऱ जोधपुर के छह जिलों में पंचायतों के साथ मिल कर चलाए जा रहे सीफार संस्था के प्रयासों से कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान का दिख रहा असर