एक साल बाद गजेंद्र चौहान के नेतृत्व में फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) फिर से विवादों में है। वजह है इंस्टीटयूट में एक बड़े बदलाव की आहट है। नया प्रशासन, एफटीआईआई को डिजिटल मीडिया यूनिवर्सिटी में तब्दील करने पर विचार कर रहा है। गवर्निंग काउंसिल के वाइस चेयरमैन बीपी सिंह के अनुसार एक जून को होने वाली अकादमिक काउंसिल की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होगी। विचाराधीन नई योजना के तहत कुल 22 कोर्स चुने गए हैं। इनमें फिल्म, टेलीविजन,रेडियो और गेम्स से जुड़े कम अवधि के कोर्स भी शामिल हैं। संस्थान में अभी 11 कोर्स हैं जिनमें सात फिल्म मेकिंग के हैं और चार टेलीविजन से संबंधित।
मौजूदा सरकार देश को डिजिटल रूप से सशक्त और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए डिजिटल इंडिया क्रार्यक्रम लागू करने जा रही है। इसके तहत आयकर, ब्रिकी कर, पासपोर्ट, डाइविंग लाइसेंस, पेंशन आदि ऑनलाइन माध्यम से जारी किए जा सकेंगे।
राजीव गांधी की कंप्यूटर क्रांति या नरेन्द्र मोदी-राहुल गांधी की डिजिटल क्रांति से दिख रही प्रगति को सलाम ही किया जाएगा। हां, राजीव युग में बदलाव के साथ नए-पुराने लोगों और टेक्नोलॉजी का समन्वय था। मोदीजी की डिजिटल क्रांति में सब कुछ बदला हुआ दिखना जरूरी है।
सरकार अब नकद कारोबार को कम करने के उपायों पर विचार कर रही है। इसके लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने डिजिटल साधनों और कार्ड के जरिए भुगतान करने को बढ़ावा देने के लिए पेश किए गए कदमों को मंजूरी दी है।
डिजिटल इंडिया का नारा आकर्षक है। रिक्शे वाला और सब्जी विक्रेता अथवा दूर-दराज काम कर रहे मजदूर के पास भी मोबाइल फोन पहुंच गया है। सरकार गौरव के साथ कहने लगी है कि देश में एक सौ करोड़ मोबाइल फोन लोगों के हाथों में दिखने वाले हैं। इस क्रांति से लोगों को सुविधा हो रही है, लेकिन धीरे-धीरे सरकार और निजी कंपनियां गरीब लोगों की जेब अधिक खाली करने लगी है।
भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने अपनी वेबसाइट www.vinaysahasrabuddhe.in लॉन्च की है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इसे लोकार्पित किया।
रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) की टेलीकाॅम इकाई रिलायंस जियो ने आज बड़ी धूमधाम से अपने कर्मचारियों के लिए 4जी सेवा की शुरुआत कर दी है। रिलायंस जियो की दस्तक को टेलीकाॅम जगत में बड़ी हलचल माना जा रहा है।
यह सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से ही भारत में छोटे-बड़े तमाम नेताओं ने सोशल मीडिया और इंटरनेट की ताकत का लोहा माना है। लेकिन ऐसा लगता है कि खुद भाजपा के नेताओं को अभी डिजिटल दुनिया के बारे में काफी कुछ सीखने की जरूरत है। बिहार चुनाव में भाजपा नेताओं की डिजिटल नासमझी के चलते नीतीश कुमार के खिलाफ चला दांव उल्टा पड़ गया और पार्टी की किरकिरी हुई सो अलग।