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'अभिव्‍यक्ति की आजादी' व 'लोकतंत्र' दो सबसे बड़े मजाक: करन जौहर

'अभिव्‍यक्ति की आजादी' व 'लोकतंत्र' दो सबसे बड़े मजाक: करन जौहर

हर साल सुर्खियों में रहने वाले जयपुर साहित्‍य उत्‍सव का आगाज इस साल भी एक विवाद के साथ हुआ है। फिल्‍मकार करन जौहर ने अपने बेबाक बयानों से असहिष्‍णुता पर छिड़ी बहस को गरमा दिया है।
एक किन्नर की जिंदगी के काले सफे

एक किन्नर की जिंदगी के काले सफे

‘उस घटना ने मेरी जिंदगी बदल डाली थी। मैं रोजी रोटी कमाने के लिए वेश्यावृति करने लगी लेकिन बेंगलुरू की उस रात मार्क्स सड़क पर मैं किसी ग्राहक के पास नहीं गई थी बल्कि किसी से मिलने गई थी। स्थानीय पुलिस को आदेश हुए कि इलाके की तमाम वेश्याओं को उठा लिया जाए। मैं सड़क किनारे खड़ी थी। मुझे भी उस रात पुलिस उठा ले गई। थाने में 18 पुलिस वालों और 10 कैदियों के सामने मुझे पूरा नंगा कर दिया गया। पुलिस वालों ने मेरी छातियां दबा-दबा कर देखीं। बोल रहे थे कि मजा कहां से लेती हो? उन्होंने मेरे अंदर डंडे डाले। चीखों के मारे पुलिस स्टेशन हिल गया लेकिन किसी ने मुझपर तरस नहीं किया।
किसी की मर्जी और पसंद से काम नहीं कर सकता लोकतंत्र : मोदी

किसी की मर्जी और पसंद से काम नहीं कर सकता लोकतंत्र : मोदी

इन दिनों लगातार संसद की कार्यवाही में पड़ रहे व्यवधान से दुखी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज परोक्ष रूप से विपक्ष के रवैये पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि लोकतंत्र किसी की मर्जी और पसंद के हिसाब से काम नहीं कर सकता।
शानदार जीत के करीब सू ची, सेना से किया बातचीत का आह्वान

शानदार जीत के करीब सू ची, सेना से किया बातचीत का आह्वान

म्यांमार के चुनाव में अपनी लोकतंत्र समर्थक पार्टी के ऐतिहासिक जीत की ओर बढ़ने के साथ आंग सान सू ची ने राष्ट्रपति और वहां की शक्तिशाली सेना के साथ राष्ट्रीय सुलह की बातचीत का आह्वान किया।
लोकतंत्र बचाने के लिए जरूरी है पुरस्कार वापसी

लोकतंत्र बचाने के लिए जरूरी है पुरस्कार वापसी

पिछले कुछ हफ्तों में लेखकों वैज्ञानिकों और कलाकारों के सम्मान लौटाने की बाढ़ देखी गई। पुरस्कार लौटाने के जरिये ये सम्मानित और पुरस्कृत लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए खड़े हुए हैं। बढ़ती असहिष्णुता और हमारे बहुलतावादी मूल्यों पर हो रहे हमलों पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए इन शिक्षाविदों, इतिहासकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों के कई बयान भी आए हैं। जिन्होंने अपना पुरस्कार लौटाया है वे सभी साहित्य, कला, फिल्म निर्माण और विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले लोगों में से हैं। इस तरह सम्मान लौटाकर उन सभी लोगों ने सामाजिक स्तर पर हो रही घटनाओं पर अपने दिल का दर्द बयान किया है।
साहित्यिक जंग का नया माहौल और सत्‍ता की प्रतिक्रिया

साहित्यिक जंग का नया माहौल और सत्‍ता की प्रतिक्रिया

साहित्य अकादमी का पुरस्कार लौटाने का सिलसिला एक नई परिस्थिति का संकेत देता है और एक अभूतपूर्व माहौल की रचना भी करता है। परिस्थिति नई है, वरना अभी तक यह माना जाता रहा है कि कला और साहित्य में राज्य द्वारा सम्मानित किए जाने के लिए होड़ लगी रहती है। पुरस्कार लौटाने की व्यग्रता इस पैमाने पर पहले नहीं देखी गई।
गैर-बराबरी, गरीबी से लोकतंत्र को खतरा | डीटन, नोबेल सम्‍मानित अर्थशास्‍त्री

गैर-बराबरी, गरीबी से लोकतंत्र को खतरा | डीटन, नोबेल सम्‍मानित अर्थशास्‍त्री

मैं अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में दिए जाने वाले स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार, 2015 से पुरस्कृत किए जाने को ले‌कर रोमांचित हूं। मैं इसे लेकर ज्यादा रोमांचित हूं कि नोबेल समिति ने भारत पर किए गए मेरे और मेरे सहयोगियों के कार्य को रेखांकित किया है।
लोकतंत्र का तकाजा है कि लेखक आवाज उठाएं

लोकतंत्र का तकाजा है कि लेखक आवाज उठाएं

पिछले कई वर्षों से हमारे देश में जो होता रहा है उसने सृजन-समुदाय को लगातार बेचैन किया हैः अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सांस्कृतिक और धार्मिक बहुलता, सामाजिक समरसता पर संगठित प्रहार बहुत बढ़ गए हैं। राजनीति, धर्म और बाजार ने मिलकर, अपनी सभी मर्यादाएं छोड़कर, बेहद व्याप्ति अर्जित कर ली है। असहमति की जगह और अवसर सिकुड़ रहे हैं और पचास से अधिक वर्षों के परिपक्व लोकतंत्र में असहमति को देशद्रोही करार दिया जा रहा है।
शांति का नोबेल ट्यूनिशिया नेशनल डायलॉग क्वार्टेट को

शांति का नोबेल ट्यूनिशिया नेशनल डायलॉग क्वार्टेट को

वर्ष 2015 का नोबेल शांति पुरस्कार किसी व्यक्ति को न देकर ट्यूनिशिया के नेशनल डायलॉग क्वार्टेट (राष्ट्रीय संवाद चतुष्टक) को देने की घोषणा की गई है। वर्ष 2011 में ट्यूनिशिया में हुई जैसमिन क्रांति के बाद देश में बहुलवादी लोकतंत्र की स्‍थापना में इस डायलॉग क्वार्टेट की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
आजादी विशेष | विचारों की स्वतंत्रता पर बंदिश की भाषा

आजादी विशेष | विचारों की स्वतंत्रता पर बंदिश की भाषा

राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक सत्ता क्रम को नियंत्रित करने वाले वर्गों, समूहों, समुदायों और संस्थाओं के इस्तेमाल की भाषा में उनके वर्चस्ववादी पूर्वग्रहों के शब्द-संकेत देखे और व्याख्यायित किए जा सकते हैं। भारत की आजादी के 68 वर्ष बीतने पर हमारे राजनीतिक और सुरक्षा प्रतिष्ठानों के चालू विमर्श में हम ऐसे दो चलताऊ जुमलों की निशानदेही करना चाहेंगे जिनके निहितार्थ हमारी स्वतंत्रता सीमित करने के संदर्भ में गंभीर हैं।
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