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शिवसेना: कश्मीरी पंडितों के मताधिकार के बारे में क्या?

शिवसेना: कश्मीरी पंडितों के मताधिकार के बारे में क्या?

मुसलमानों का मताधिकार छीनने की मांग पर राजनीतिक दलों की तीखी प्रतिक्रिया झेलने वाली शिवसेना ने मंगवार को पूछा कि जिस तरह की प्रतिक्रियाएं हो रही हैं, उसी तरह कश्मीरी पंडितों के मताधिकार का मुद्दा क्यों नहीं उठाया जा रहा है।
नेताजी पर सरकार का पाखंड

नेताजी पर सरकार का पाखंड

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्य के मसले पर कांग्रेस की सरकारों, खासकर पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ आग उगलने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली वाजपेयी सरकार और वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने भी इससे संबंधित विभिन्न आयोगों की रिपोर्टों, खुफिया सूचनाओं और अन्य दस्तावेजों के खुलासे से इनकार किया।
कश्मीरी पंडितों को अलग टाउनशिप देने का विरोध

कश्मीरी पंडितों को अलग टाउनशिप देने का विरोध

जम्मू-कश्मीर में प्रमुख विपक्षी राजनीतिक पार्टियों और अलगाववादी समूहों ने घाटी में कश्मीरी पंडित विस्थापितों के लिए अलग टाउनशिप निर्माण के राज्य सरकार के कदम की यह कहते हुए आलोचना की कि यह लोगों को बांटेगा और इससे सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न होगा।
मोदी ने राउरकेला का आधुनिक संयंत्र राष्ट्र को समर्पित किया

मोदी ने राउरकेला का आधुनिक संयंत्र राष्ट्र को समर्पित किया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को राउरकेला इस्पात संयंत्र (आरएसपी) में 12,000 करोड़ रुपये की विस्तार एवं आधुनिकीकरण परियोजना राष्ट्र को समर्पित की। इस परियोजना के तहत एक नई प्लेट मिल लगाई गई है।
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।
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