Advertisement

Search Result : "पाकिस्तानी मीडिया"

बहल का ड्रामा या सरकारी दबाव?

बहल का ड्रामा या सरकारी दबाव?

समय 11.45, स्थान प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया से भरा सम्मेलन कक्ष। सबकी निगाहें कक्ष में लगे स्क्रीन पर टिकी हुई थी। चैनलों के ओबी वैनकर्मी फुटेज के लिए केबल को इधर से उधर करने में लगे हुए।
मीडिया भी नहीं कर पाया चुनाव परिणाम का आकलन

मीडिया भी नहीं कर पाया चुनाव परिणाम का आकलन

दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम का अनुमान मीडिया द्वारा किए गए तमाम सर्वेक्षण और एग्जिट पोल भी नहीं लगा पाए। हालांकि आम आदमी पार्टी की जीत का दावा ज्यादातर सर्वेक्षणों में किया गया था लेकिन बंपर जीत का अनुमान किसी ने नहीं लगाया।
मीडिया, इंटरनेट में ओबामा का  दौरा

मीडिया, इंटरनेट में ओबामा का दौरा

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार उनके भारत में रहने के दौरान प्रमुख चैनलों ने लगभग 32 घंटे की कवरेज दिखाई जो या तो अमेरिकी राष्ट्रपति से जुड़ी खबरें थी या गणतंत्र दिवस समारोह की खबरें थीं जिसमें ओबामा मुख्य अतिथि थे।
हम भी दिखाते हैं

हम भी दिखाते हैं

स्वच्छ भारत अभियान के तहत सब कुछ साफ-साफ ही दिखना चाहिए। इसलिए मीडिया पर भी दबाव बनाया जाता है कि वह गंदगी को न दिखाए।
गुपचुप मुलाकात

गुपचुप मुलाकात

नरेंद्र मोदी कभी मीडिया से दूरी बना लेते हैं तो कभी मीडियाकर्मियों को गले भी लगा लेते हैं। मोदी सरकार के छह मार पूरे होने पर जब कुछ टीवी चैनलों ने सरकार की आलोचना करनी शुरू की तो प्रधानमंत्री को लगा कि कहीं दूरी बनाने के कारण तो ऐसा नहीं है।
उम्मीदे धरी रह गई

उम्मीदे धरी रह गई

भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित दीपावली मिलन समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सवाल पूछने की मीडियाकर्मियों की हसरतें पूरी नहीं हो पाईं।
शांति के पासे फेंकने की जरूरत

शांति के पासे फेंकने की जरूरत

निर्मला देशपांडे की पाकिस्तान में बरसी से उठी ये सदाएं मनमोहन सिंह पहुंची या यह उनकी अंत: प्रेरणा थी अथवा अमेरिकी उत्प्रेरणा, जैसा कि कुछ लोग विश्‍वास करना चाहते हैं, शर्म अल शेख के संयुक्त वक्तव्य में ब्लूचिस्तान के जिक्र के लिए राजी होकर और भारत-पाक समग्र वार्ता के लिए भारत में आतंकवादी हमले रोकने की पूर्व शर्त को ढीला करके भारतीय प्रधानमंत्री ने शांति के लिए एक जुआ खेला है। मुंबई हमले के बाद दबाव की कूटनीति से भारत को जो हासिल होना था वह हो चुका और पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकतंत्र के खिलाफ अपेक्षया गंभीर कार्रवाई के लिए बाध्य होना पड़ा। दबाव की कूटनीति की एक सीमा होती है और विनाशकारी परमाणु युद्ध कोई विकल्प नहीं हैं। इसलिए वार्ता की कूटनीति के लिए जमीन तैयार करने की जरूरत थी। ब्लूचिस्तान के जिक्र को भी थोड़ा अलग ढंग से देखना चाहिए।