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आजादी विशेष | हमारी चेतना पर धब्बा है फांसी: युग चौधरी

आजादी विशेष | हमारी चेतना पर धब्बा है फांसी: युग चौधरी

देश में फांसी की सजा के खिलाफ अभियान चलाने वाले बॉम्बे उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं युग मोहित चौधरी। फांसी के फंदे पर झूलने वाले अभियुक्त के लिए एक अंतिम आस के तौर पर युग चौधरी का नाम आता है।
आजादी विशेष | नए-पुराने कानूनों के बल पर नया कंपनी राज

आजादी विशेष | नए-पुराने कानूनों के बल पर नया कंपनी राज

सत्ता, कानून और न्यायालय से क्या आज भी देश के आम नागरिक और समाज के आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति को न्याय की उम्मीद बंधती है? क्या उसके मौलिक अधिकार समाज के सुविधा संपन्न और रसूखदारों की तरह सुरक्षित हैं? कानूनों के संदर्भ में जब हम आजादी की बात करें तो इस पहलू की गहराई से विवेचना होनी चाहिए। समाज में, नीति-निर्धारकों में जो दो फाड़ है, वह कानून की दुनिया में भी साफ दिखाई देता है।
याकूब की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट के डिप्टी रजिस्ट्रार का इस्तीफा

याकूब की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट के डिप्टी रजिस्ट्रार का इस्तीफा

मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन को फांसी दिए के फैसले की आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक डिप्टी रजिस्ट्रार ने इस्‍तीफा दे दिया है। उनके इस कदम से मृत्‍युदंड और याकूब की फांसी को लेकर चल रही बहस तेज हो गई है।
फांसी की शर्मनाक छाया

फांसी की शर्मनाक छाया

मौत की सजा के जरिये अपराध की रोकथाम का लक्ष्य विफल हो चुका है। शोध यह साबित करने में लगातार विफल रहे हैं कि मौत की सजा से अपराध पर रोक लगती है।
कलाम, याकूब और औसत मानस का मानचित्र

कलाम, याकूब और औसत मानस का मानचित्र

30 जुलाई को दो बहुचर्चित जनाजे निकले। एक खुले समुंदर के पास रामेश्वरम में पूरे राजकीय सम्मान के साथ, तिरंगे में लिपटा। दूसरा, नागपुर केंद्रीय कारावास की कालकोठरी से निकाल फंदे पर झुला कर कब्रिस्तान के लिए रुखसत किया गया। एक सिंहासन चढ़ि चला तो एक बंधा जंजीर। काल की दो लीलाएं। मृत्यु के दो थिएटर। लेकिन एक ही देश के दो नागरिक, एक ही मजहब के दो लोग। हालांकि मृत्यु पूर्व जीवन के दो अलग-अलग रंगमंच। अब्दुल कलाम अपने रंगमंच पर भारतीय राज्य प्रतिष्ठान के हीरो और याकूब मेमन भारतीय राज्य प्रतिष्ठान का मुजरिम तो मुजरिम, विलेन भी। पहले को मौत के बाद भी मुख्यधारा जनमानस और सूचना-प्रचार तंत्र से ‘अमर रहे’ और ‘जिंदाबाद’ की विदाई। दूसरे के लिए मौत के पहले ही उसी मानस और तंत्र से ‘फांसी दो, फांसी दो’ तथा ‘मुर्दाबाद’ की गूंज जिसके आगे न्यायपालिका भी नतमस्तक हो गई।
आज होगी याकूब को फांसी

आज होगी याकूब को फांसी

याकूब की फांसी पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आधी रात के बाद हुई ऐतिहासिक सुनवाई खत्म। गुरूवार की सुबह याकूब की फांसी को कुछ दिनों के लिए रुकवाने की कुछ वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की याचिका खारिज हो गई। अब इसके बाद कुछ ही घंटों में याकूब को फांसी लगना तय है।
याकूब की फांसी से झूलते कई कानूनी सवाल

याकूब की फांसी से झूलते कई कानूनी सवाल

जो लोग राजा-महाराजाओं को नाराज करते थे वह उन्हें हाथियों से कुचलवा दिया करते थे। आधुनिक सभ्य राज्य में वैसे लोगों को फांसी दी जाती है। लेकिन यह राजधर्म के नाम पर क्यों होता है? सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अनिल दवे के खुली अदालत में बोले गए शब्द, गुनाहगारों को सजा राजधर्म है, मेरे कानों में हमेशा गूंजते रहेंगे। महाधिवक्ता की बातें भी हमेशा मेरे कानों में गुंजती रहेंगी जो उन्होंने न्यायाधीश कुरियन को कही कि तयशुदा चीजों में आप विलंब कर रहे हैं। इस आदमी का फांसी पर चढ़ना तय है। वह दोनों 1993 बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगवाने वाली याचिका का विरोध कर रहे थे। क्या राजधर्म के अनुसार माया कोडनानी और बाबू बजरंगी को फांसी होगी?
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