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ब्लाटर के हटते ही फीफा अध्यक्ष बनने की होड़ शुरू

ब्लाटर के हटते ही फीफा अध्यक्ष बनने की होड़ शुरू

फीफा अध्यक्ष पद से सैप ब्लाटर ने बुधवार को आश्चर्यजनक तरीके से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद स्कैंडल में फंसे फीफा की छवि को सुधारने के लक्ष्य के साथ इस संगठन के अध्यक्ष पद के लिए नये सिरे से दौड़ शुरू हो गई है।
जीशान को रेडियो जॉकी बनने का प्रस्ताव

जीशान को रेडियो जॉकी बनने का प्रस्ताव

मुंबई में एक मुसलमान एमबीए युवक जीशान खान को हीरे का निर्यात करने वाली कंपनी हरि कृष्णा एक्सपोर्ट्स द्वारा मुस्लिम होने की वजह से नौकरी न दिए जाने पर मचे हंगामे के बीच एक दिलचस्प खबर यह है कि जीशान को एक रेडियो स्टेशन ने रेडियो प्रस्तोता या कहें रेडियो जॉकी की नौकरी का प्रस्ताव दिया है।

"हम आपके अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा बनने से इंकार करते हैं"

अब आप हमारे ही घर में हमें पचास एकड़ में सिमट जाने पर बाध्य कर रहे हैं। पचास एकड़ की भीख हमें मंजूर नहीं है। हम आपके हाथ का खिलौना बनने से इंकार करते हैं, आपके अश्वमेध यज्ञ का घोडा बनने से इंकार करते हैं। हमारे नाम पर हिन्दू वोट कंसोलिडेट करना बंद करो। हम अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगे।
नीतीश को नेपाल जाने की अनुमति नहीं मिलने से जदयू में रोष

नीतीश को नेपाल जाने की अनुमति नहीं मिलने से जदयू में रोष

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नेपाल नहीं दिए जाने से उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के नेता इसके लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। जद यू नेताओं ने कहा कि नीतीश कुमार नेपाल में भूकंप पीड़ितों के लिए राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे राहत कार्यों का जायजा लेने जा रहे थे तो केंद्र सरकार ने रोक दिया। जद यू नेताओं से इसे राजनीति से प्रेरित बताया।
चुनाव के दिन ईमानदार बनने की होड़

चुनाव के दिन ईमानदार बनने की होड़

दिल्ली विधानसभा के लिए मतदान के दिन आरोपों का दौर चरम पर पहुंच गया है। यहां मुख्य टक्कर आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच है। ऐसे में दोनों पार्टियां खुद को एक-दूसरे से ज्यादा ईमानदार बताने में जुटी हैं।
सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

चुनिंदा नायकों या खलनायकों की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के कारण इतिहास का सम्यक विवेचन नहीं हो पाता। जैसे गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना और माउंटबेटन पर ज्यादा जोर देने से हमें भारत विभाजन के बारे में कई जरूरी प्रश्‍नों के उत्तर नहीं मिलते। मसलन, देसी मुहावरे में आम जनता को अपनी बात समझाने में माहिर और उनमें आजादी के लिए माद्दा जगाने वाले गांधी अपने तमाम सद्प्रयासों के बावजूद नाजुक ऐतिहासिक मौके पर आम हिंदू-मुसलमान को एक-दूसरे के प्रति सांप्रदायिक दरार से बचने की बात समझाने में क्यों विफल रहे, नोआखली जैसी अपनी साक्षात उपस्थिति वाली जगह को छोडक़र? जिन्ना की महत्वकांक्षा और जिद को कितना भी दोष दें, कलकत्ता और अन्य जगहों का आम मुसलमान क्यों उनके उकसावे पर पाकिस्तान हासिल करने के लिए खून-खराबे पर उतारू हो गया?
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