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ई-कॉमर्स और सेवाओं के जरिये निर्यात दोगुना करने का लक्ष्य

ई-कॉमर्स और सेवाओं के जरिये निर्यात दोगुना करने का लक्ष्य

केंद्र सरकार ने बुधवार को जिस नई विदेश व्यापार नीति की घोषणा की है उसमें अगले पांच वर्षों में निर्यात को दोगुना कर 900 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया गया है। नई नीति में कृषि उत्पादों के निर्यात को अधिक प्रोत्साहनों की घोषणा की गई है।
गौ एवं अर्थव्यवस्‍था पर आएगा संकट

गौ एवं अर्थव्यवस्‍था पर आएगा संकट

गौहत्या पर प्रतिबंध गाय के संरक्षण के बजाय उल्टा गौ-अर्थव्यवस्था पर ही भारी पड़ सकता है। गौ मांस पर पाबंदी की बहस में पशुपालन, मीट उद्योग और पाबंदी के कानूनों की आड़ में फलते-फूलते अवैध कारोबार को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है।
पाबंदियों का देश

पाबंदियों का देश

भारत में भारत की बेटियों (इंडियाज डॉटर्स) पर बनी फिल्म देखना चाहे तो नहीं देख सकते, इस पर प्रतिबंध है। महाराष्ट्र में कोई गौ-मांस से बनी कोई डिश खाना चाहे, वह नहीं खा सकता, उसे बेचना चाहे नहीं बेच सकता-इस पर प्रतिबंध है। केरल या गुजरात में शराब का सेवन करना चाहे नहीं कर सकते, इस पर प्रतिबंध है।
बढ़ सकता है रक्षा उत्पादों का निर्यात

बढ़ सकता है रक्षा उत्पादों का निर्यात

सरकार रक्षा उपकरण निर्माण अभियान सफल रहा तो इस क्षेत्र का उत्पादन सात गुना बढ़कर वार्षिक 41 अरब डालर तक और इसका निर्यात करीब 17 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। यह बात एक रपट में कही गई।
अधर में ‘मेक इन इंडिया’

अधर में ‘मेक इन इंडिया’

देश का निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर गिरा है। सालाना आधार पर तुलना करें तो इस साल जनवरी में यह 11.19 प्रतिशत गिरकर 23.88 अरब डॉलर पर पहुंच गया। हालांकि सस्ते तेल के आयात के कारण व्यापार घाटा थोड़ा सुधरा है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ योजना को इससे गहरा झटका लग सकता है।
निर्यात हिंदुत्व और जाति का

निर्यात हिंदुत्व और जाति का

जातिगत उत्पीडऩ और भेदभाव के खिलाफ मुखर होता दलित डायस्पोरा इससे चिंतित।भारतीय डायस्पोरा का यह दलित स्वर या दलित डायस्पोरा दुनिया के तमाम बड़े देशों में धीरे-धीरे मजबूत होता दिख रहा है। गैर दलित डायस्पोरा ने तो बड़ी तादाद में (सबने नहीं) अपनी राजनीति स्पष्ट कर दी है, अपना झुकाव स्पष्ट कर दिया है, दलित डायस्पोरा अभी उसके साथ खड़ा नहीं दिख रहा। भारत की नई सरकार से उसे भी अपेक्षाएं हैं। वह भी बेहतर सुविधाओं और व्यापार की संभावनाओं के प्रति आशावान है लेकिन जाति तथा जातिगत उत्पीडऩ के सवाल पर फिलहाल कोई समझौता करता नहीं दिखता।
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