एक ओर बैन के बाद बाजारों में नेस्ले की मैगी दोबारा से लौट आई है वहीं दूसरी ओर इसके सामने चुनौती के तौर पर बाबा रामदेव की स्वदेशी मैगी आज से बाजार में उपलब्ध है।
भारतीय संस्कृति और योग में लघु-अवधि पाठ्यक्रम शुरू करने के एक प्रस्ताव को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की शैक्षणिक परिषद ने खारिज कर दिया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ संवाद के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन इस प्रस्ताव के साथ आगे आया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल ऋषिकेश आ रहे हैं, लेकिन लोगों का ध्यान रामदेव की पतंजलि योगपीठ पर लगा हुआ है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के समय से ही रामदेव इस कोशिश में लगे रहे हैं कि उत्तराखंड में उनकी पहली यात्रा पतंजलि योगपीठ की ही होनी चाहिए। बीते एक साल में केंद्र सरकार के आधा दर्जन से अधिक मंत्री किसी न किसी मौके पर पतंजलि योगपीठ का भ्रमण कर चुके हैं, लेकिन रामदेव प्रधानमंत्री को बुलाने में सफल नहीं हो पाए हैं। प्रधानमंत्री को पतंजलि योगपीठ लाना रामदेव के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। अब, 11 सितंबर को यह तय हो जाएगा कि रामदेव की प्रतिष्ठा बढ़ेगी या वे उपेक्षा का शिकार दिखेंगे।
हरियाणा में कमल वाली सरकार आने के बाद से लेकर अभी तक कोई करिश्मा नहीं हुआ। वादों की जमीन बंजर है। लेकिन एक मंत्री ऐसे हैं जिनका अपने विभाग के काम को लेकर ऐसा जुनून है कि इतनी चर्चा सरकारी योजनाओं की नहीं होती जितनी उनके ट्वीट की हो जाती है। जब से इन्होंने पदभार संभाला है तब से छापे और बर्खास्तगियां आम बात है। वह कभी अस्पताल तो कभी सचिवालय की छत पर खुद चढक़र पानी की टंकी साफ करने लगते हैं। स्वास्थ्य विभाग में इनका ऐसा हौवा है कि हरियाणा में एक जुमला कहा जाने लगा है, ‘भाग नहीं तो अनिल विज आ जाएगा’। पांच दफा विधायक चुने जा चुके साफ-सुथरी छवि के विज ने न तो सरकारी मकान लिया, न टेलीफोन सुविधा। गलत निर्णयों में अपनी ही सरकार की ऐसी-तेसी करने से भी नहीं डरते।
आंगन के पार पूरब में कमरे थे, कमरों के पार दालान। दालान के पार रास्ता था, रास्ते के पार आंवला, कनेर और बेल के पेड़ थे, फिर मेड़ की आड़। आड़ के पार पोखर था जिसके जल में आसमान में उगता गोल और सुर्ख सूरज टलमल करता था। पोखर के पार दादा जी (छोटे बाबा) की कुटी थी जिसमें एक कमरे के ऊपर उजियार कमरा था और नीचे अंधेरा तहखाना। कुटी के पार आमों के बाग थे, बाग के पार दूर तक खेत-सरेह। दूर सरेह के पार बडक़ी नहर की आड़ दिखती थी। लेकिन इस सुदूर विस्तार में हजारों, सैकड़ों या बीसियों तक क्या, इक्का-दुक्का भी समवेत योग नहीं होता था।
रविवार को दुनिया भर में मनाए गए पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की कमान खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संभाली। राजपथ पर करीब 36 हजार लोगों और 84 देशों के प्रतिनिधियों ने एक साथ योग अभ्यास किया, जिससे यह कार्यक्रम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस में दर्ज हो गया है।
करोड़ों रुपये योग दिवस के प्रचार-प्रसार पर स्वाहा हो गए। सरकार ने ब्रांडिग कर यह दिखाना चाहा कि भारत इसके लिए कितना गंभीर है। लेकिन इस दिवस के अवसर को कुछ लोगों ने मजाक के रुप में लिया तो कुछ ने इसे सियासत के तौर पर देखा। सोशल मीडिया पर भी योग दिवस को लोगों ने अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया।