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Search Result : "लोकतंत्र का रूपवाद"

शांति का नोबेल ट्यूनिशिया नेशनल डायलॉग क्वार्टेट को

शांति का नोबेल ट्यूनिशिया नेशनल डायलॉग क्वार्टेट को

वर्ष 2015 का नोबेल शांति पुरस्कार किसी व्यक्ति को न देकर ट्यूनिशिया के नेशनल डायलॉग क्वार्टेट (राष्ट्रीय संवाद चतुष्टक) को देने की घोषणा की गई है। वर्ष 2011 में ट्यूनिशिया में हुई जैसमिन क्रांति के बाद देश में बहुलवादी लोकतंत्र की स्‍थापना में इस डायलॉग क्वार्टेट की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
आजादी विशेष | विचारों की स्वतंत्रता पर बंदिश की भाषा

आजादी विशेष | विचारों की स्वतंत्रता पर बंदिश की भाषा

राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक सत्ता क्रम को नियंत्रित करने वाले वर्गों, समूहों, समुदायों और संस्थाओं के इस्तेमाल की भाषा में उनके वर्चस्ववादी पूर्वग्रहों के शब्द-संकेत देखे और व्याख्यायित किए जा सकते हैं। भारत की आजादी के 68 वर्ष बीतने पर हमारे राजनीतिक और सुरक्षा प्रतिष्ठानों के चालू विमर्श में हम ऐसे दो चलताऊ जुमलों की निशानदेही करना चाहेंगे जिनके निहितार्थ हमारी स्वतंत्रता सीमित करने के संदर्भ में गंभीर हैं।
लोकतंत्र को कुचलने वाली ताकतें मजबूत हुईं: आडवाणी

लोकतंत्र को कुचलने वाली ताकतें मजबूत हुईं: आडवाणी

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्‍ठ नेता लालकृष्‍ण आडवाणी ने यह कहकर राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है कि देश में लोकतंत्र को कुचलने में सक्षम ताकतें मजबूत हुई हैं और दोबारा इमर्जेंसी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
गहरे संकट से भिड़ना होगा वाम को

गहरे संकट से भिड़ना होगा वाम को

सीताराम येचुरी भारतीय वामपंथी आंदोलन के एक जाने-माने चेहरा हैं। हिंदी, अंग्रेजी, तेलुगु, बांग्ला भाषा में मजबूत पकड़ रखने के साथ एक-दो और भाषाओं के ज्ञाता है 62 वर्षीय येचुरी। मिलनसार स्वभाव वाले इस मृदुभाषी वाम नेता के कंधों पर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की गहरे संकट में फंसी नाव को निकालने की जिम्मेदारी है।
मोदी ने अल्पसंख्यकों को विदेश में दिलाया भरोसा

मोदी ने अल्पसंख्यकों को विदेश में दिलाया भरोसा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश में अल्पसंख्यकों को विश्वास दिलाया है कि भारत में सभी धर्मों के नागरिकों के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता की रक्षा की जाएगी और उनके लिए समान दर्जा सुनिश्चित किया जाएगा।
लालू का उत्तराधिकारी जनता तय करेगी-पप्पू यादव

लालू का उत्तराधिकारी जनता तय करेगी-पप्पू यादव

राष्ट्रीय जनता दल के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने पार्टी प्रमुख लालू यादव के उत्तराधिकारी को लेकर साफ किया है कि उतराधिकारी का फैसला जनता करती है। यादव ने कहा कि लालू जी को इस बात को समझना चाहिए कि यह राजतंत्र नहीं है कि उन्होने वारिस का फैसला कर लिया। लोकतंत्र में राजनीतिक वारिस का फैसला जनता करती है।
क्या आप यह कलंक धो पाएगी?

क्या आप यह कलंक धो पाएगी?

आम आदमी पार्टी में यानी आप में जिस तरह जूतम पैजार चल रही है इससे इतना साफ हो जाता है कि पार्टी नेतृत्व किसी भी तरह की आलोचना सुनने के लिए तैयार नहीं है। पार्टी के संस्थापक सदस्य प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, आनंद कुमार और अजीत झा को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकाला जा चुका है। पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल और उनके गुट की निरंकुशता के किस्से मीडिया में आम हैं।
आप का एजेंडा क्या है

आप का एजेंडा क्या है

क्या आम आदमी पार्टी (आप) सचमुच लोकतांत्रिक मूल्यों या सामाजिक सरोकारों के लिए लड़ना चाहती है या जैसे-तैसे चुनाव जीतना ही इसका पहला मक़सद है? पार्टी के भीतर चल रही उथल-पुथल से यह अहम सवाल पैदा होता है।
भूषण ने फिर उठाया 'आप' में लोकतंत्र का मामला

भूषण ने फिर उठाया 'आप' में लोकतंत्र का मामला

आम आदमी पार्टी के असंतुष्ट नेता प्रशांत भूषण ने पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल को नया पत्र लिखकर उन मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया है जिन्हें वह उठाने की कोशिश करते रहे हैं। भूषण ने इन खबरों को भी खारिज कर दिया कि अगर केजरीवाल उनकी मांगों को मान लेते हैं तो वह राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटने को तैयार हैं।
‘आप’ का स्वराज कहां है भई?

‘आप’ का स्वराज कहां है भई?

भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति, प्रत्यक्ष लोकतंत्र (डायरेक्ट डेमोक्रेसी), स्वराज जैसे जुमलों को हवा में उछाल कर जिस तरह आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ दिल्ली की सत्ता में आई। उसे जनता के एक बड़े हिस्से ने भारतीय राजनीति में बदलाव की ताकत के तौर पर देखा। लेकिन पार्टी के मुख्य हीरो जिस तरह लगातार इन शब्दों का मजाक उड़ाते रहे उससे नाराज लोग अब सवाल उठाने लगे हैं कि यह आप का स्वराज है कहां? आप की भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति की पोल अब पूरी तरह खुल चुकी है। यह भी साबित हो चुका है कि पार्टी का केजरीवाल गुट किसी भी तरह से सत्ता में आना और बने रहना चाहता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिस तरह से आपराधिक, धनबली और बाहुबली प्रत्याशियों को मैदान में उतारा गया उस पर सवाल तो उठे थे लेकिन केजरीवाल गुट के मीडिया मैनेजरों ने कभी भी इन्हें मुख्य सवाल नहीं बनने दिया। क्या अपराधियों और बाहुबलियों को साथ लेकर कोई भ्रष्टाचार विरोधी लड़ी जा सकती है। यह सवाल उठाना अब पार्टी के वरिष्ठ नेता योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को महंगा पड़ रहा है क्योंकि कल के उम्मीदवार आज चुनाव जीत चुके हैं और दोनों नेताओं को ठिकाने लगाने के लिए अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी कर रहे हैं।
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