देश में स्वाइन फ्लू की दहशत बढ़ती जा रही है। राजस्थान में 165 तो गुजरात मे 144 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। पूरे देश में मृतकों का आंकड़ा 485 को पार कर चुका है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली कच्चे तेल के आयात पर पांच प्रतिशत सीमा शुल्क फिर से लगाने पर विचार कर सकते हैं जिससे सरकार को तीन अरब डालर का अतिरिक्त राजस्व मिलने के साथ और घरेलू उत्पादकों के लिए परिचालन में बराबरी का अवसर मिलेगा।
नरेंद्र मोदी ने विदेश नीति में बदलाव के संकेत देने से पहले विदेश मंत्रालय में बदलाव के संकेत पहले दे दिए। विदेश सचिव सुजाता सिंह को कार्यकाल खत्म होने से सात महीने पहले ही उन्हें अचानक उनके पद से हटाकर यह संकेत प्रधानमंत्री ने पूरी नौकरशाही को दिया। इसके बाद उन्होंने कहा, -नौकरशाही को अब समझना चाहिए कि रवैये में अंतर आया है, पहले संतुलन की बात होती थी, सक्रिय, अब तेजी से आगे बढ़ने वाली विदेश नीति अपनानी है।
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यंत्री पद की शपथ तो ले ली है मगर अपने पास कोई मंत्रालय नहीं रखा है। उन्होंने सभी विभाग मनीष सिसौदिया समेत अन्य मंत्रियों को बांट दिया है। इसे केजरीवाल की रणनीति माना जा रहा है ताकि वह दिल्ली के जरूरी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
गृह मंत्रालय को उस समय झटका लगा जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने गैर सरकारी संगठन ग्रीनपीस पर विदेशी फंड पर लगी रोक को हटा दिया। अदालत ने विदेशी चंदे को प्राप्त करने पर लगाई गई रोक को असंवैधानिक, एकपक्षीय और गैरकानूनी कदम माना। इस फैसले को गैर सरकारी संगठनों ने लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी की जीत बताया।
हर ओर से यही सवाल उठ रहे हैं कि यह आयोग आखिर करेगा क्या? इसके अधिकारों और काम-काज के दायरे को अब तक परिभाषित नहीं किया गया है और फिलहाल इसे सिर्फ थिंक टैंक के रूप में लिया जा रहा है।
निर्मला देशपांडे की पाकिस्तान में बरसी से उठी ये सदाएं मनमोहन सिंह पहुंची या यह उनकी अंत: प्रेरणा थी अथवा अमेरिकी उत्प्रेरणा, जैसा कि कुछ लोग विश्वास करना चाहते हैं, शर्म अल शेख के संयुक्त वक्तव्य में ब्लूचिस्तान के जिक्र के लिए राजी होकर और भारत-पाक समग्र वार्ता के लिए भारत में आतंकवादी हमले रोकने की पूर्व शर्त को ढीला करके भारतीय प्रधानमंत्री ने शांति के लिए एक जुआ खेला है। मुंबई हमले के बाद दबाव की कूटनीति से भारत को जो हासिल होना था वह हो चुका और पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकतंत्र के खिलाफ अपेक्षया गंभीर कार्रवाई के लिए बाध्य होना पड़ा। दबाव की कूटनीति की एक सीमा होती है और विनाशकारी परमाणु युद्ध कोई विकल्प नहीं हैं। इसलिए वार्ता की कूटनीति के लिए जमीन तैयार करने की जरूरत थी। ब्लूचिस्तान के जिक्र को भी थोड़ा अलग ढंग से देखना चाहिए।