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Search Result : "समन्वय का अभाव"

समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले पर बोली अदालत, सबूतों के अभाव में गुनहगारों को नहीं मिल पाई सजा

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समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले में स्वामी असीमानंद और तीन अन्य आरोपियों को बरी करने वाली पंचकूला की...
वाशरूम बना स्टोर रूम, किचन शेड के अभाव में शौचालय के बाहर पकता है मासूमों का मिड-डे मील

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मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूल में दिए जा रहे मिड-डे मील का एक अजीबोगरीब मामला देखने को मिला है। ये मामला...
मंगलौर पब हादसाः सबूतों के अभाव में 9 साल बाद श्रीराम सेना प्रमुख प्रमोद मुथालिक बरी

मंगलौर पब हादसाः सबूतों के अभाव में 9 साल बाद श्रीराम सेना प्रमुख प्रमोद मुथालिक बरी

मंगलौर पब हमला मामले में श्रीराम सेना प्रमुख प्रमोद मुथालिक समेत अन्य आरोपियों को लोअर कोर्ट से जमानत...
चीन को लग रहा है भाजपा में असहमति का अभाव हो जाएगा

चीन को लग रहा है भाजपा में असहमति का अभाव हो जाएगा

चीन के सरकारी मीडिया ने आज कहा कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली बड़ी जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की पुष्टि करती है, लेकिन पार्टी पर उनकी पकड़ बढ़ने से पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में असहमति का पूरा अभाव हो सकता है।
समाज में समन्वय के आदर्श सूत्र गढ़ते हैं तुलसीदास—शेखर सेन

समाज में समन्वय के आदर्श सूत्र गढ़ते हैं तुलसीदास—शेखर सेन

'तुलसीदास रामचरित मानस में सामाजिक संबंधों में श्रेष्ठता की परिकल्पना के साथ राज्य के रूप में रामराज्य, परिवार के लिए आदर्श पुत्र, भाई, पति आदि सभी के रूप में एक उच्चतम आदर्श की कल्पंना करते हैं।' साहित्य अकादेमी के तुलसीदास : एक पुन:पाठ राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन के अंतिम सत्र की अध्यक्षता करते हुए संगीत नाटक अकादेमी के अध्यक्ष, शेखर सेन ने तुलसीदास को संसार का सर्वश्रेष्ठ कवि बताया। कहा कि वे अपने अराजक समय में समाज के लिए समन्वय के आदर्श सूत्र गढ़ते हैं।
‘’कोई धर्म हिंसा और वैमनस्य को स्वीकृति नहीं देता’’

‘’कोई धर्म हिंसा और वैमनस्य को स्वीकृति नहीं देता’’

‘धर्म न केवल मनुष्य बल्कि प्राणिमात्र की एकता और सौहार्द्र की सीख देते हैं। अहिंसा और प्रेम हर धर्म के मूल में हैं। समाज का कोई भी धर्म हिंसा और वैमनस्य को स्वी‌कृ‌ति नहीं देता।’ सद्भावना सेवा संस्‍थान एवं इंटरफेथ फाउंडेशन के तत्वावधान में हुए “सामाजिक, धार्मिक परिदृश्यः परिवर्तन और जिम्मेदारियां” विषयक सेमिनार में आए विचारों का लब्बोलुआब करीब-करीब यही था।
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