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हिंदी साहित्य के इंजीनियर

हिंदी साहित्य के इंजीनियर

गणित के कठिन सवालों के बीच गोदान का होरी भी जिंदगी के जवाब खोजता है। रसायन के सूत्र भले भूल जाएं मगर चंदर का सुधा भूल जाना अखरता है। प्रकाश के परावर्तन का नीरस सिद्धांत सुनील के केस को सुलझाते ही सरस लगने लगता है। ब्लैक बोर्ड पर अल्फा, बीटा, गामा के बीच निर्मला, चोखेरबाली और राग दरबारी भी धमाचौकड़ी मचाते हैं। अमूमन घरों में होशियार बच्चे विज्ञान पढ़ते हैं। विज्ञान में भी लड़के गणित और लड़कियां जीव विज्ञान पढ़ती हैं। जब कोर्स की किताबें ही साल में खत्म करना मुश्किल हो तो कहानी-कविताएं, उपन्यास पढ़ने के लिए किसके पास वक्त है। गणित लेने के बाद अर्जुन की आंख की तरह बस एक ही लक्ष्य है, आईआईटी। विज्ञान पढ़ रहे बच्चों के माता-पिता को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से कम कुछ भी गवारा नहीं है। मोटी-मोटी किताबों, सुबह से शाम तक चलने वाली कोचिंग क्लासों के बीच इंजीनियर बनने का सपना पलता है। ऐसे में साहित्य की कौन सोचे। पढ़ाई के दौरान साहित्य पढऩा समय की बर्बादी है और लिखना... इसके बारे में तो सोचना भी मत।
इंटरनेट पर 94% बढ़ी हिंदी सामग्री की खपत: गूगल

इंटरनेट पर 94% बढ़ी हिंदी सामग्री की खपत: गूगल

भारत में करीब 21 फीसदी लोग इंटरनेट हिंदी में देखना चाहते हैं। देश में हिंदी सामग्री की खपत सालाना 94 फीसदी की दर से बढ़ी है जबकि अंग्रेजी सामग्री की खपत में सिर्फ 19 फीसदी की वृद्ध‍ि दर्ज की गई है।
मिठास सरहदों की मोहताज नहीं

मिठास सरहदों की मोहताज नहीं

दूध-खोए की बनी मिठाइयां सत्ता हठ के चलते सरहदों की मोहताज हो सकती हैं लेकिन रिश्तों की मिठास किसी लकीर और सरहद की मोहताज नहीं। राजनयिक संबंधों में तनातनी के चलते इस दफा बेशक सरहद पर दोनों देशों ने एक-दूसरे को मिठाइयां नहीं दीं लेकिन इस पार और उस पार के लोगों ने इस रवायत को कायम रखते हुए बता दिया कि दिलों के रिश्ते सरहदी कांटेदार तारों से नहीं काटे जा सकते।
पुराने वादे भूले मोदी, जादू हुआ कम

पुराने वादे भूले मोदी, जादू हुआ कम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले के प्राचीर से जब अपना दूसरा भाषण दे रहे थे तो वह जोश नजर नही आ रहा था जो एक साल पहले था। नरेंद्र मोदी के आज के भाषण में जो नई घोषणाएं थी उसको लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर साल 2014 में 15 अगस्त को जो वादा किया था उसका क्या हुआ।
अखाड़े में बदल चुकी है संसद: राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी

अखाड़े में बदल चुकी है संसद: राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी

स्वतंत्रता की 68वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देशवासियों का हार्दिक अभिनंदन किया है। राष्ट्र के नाम संदेश में उन्‍होंने संसद में होने वाले हंगामे पर विशेष रूप से टिप्‍पणी करते हुए कहा कि लोकतंत्र की हमारी संस्थाएं दबाव में हैं। संसद परिचर्चा के बजाय टकराव के अखाड़े में बदल चुकी है। अच्छी से अच्छी विरासत के संरक्षण के लिए लगातार देखभाल जरूरी होती है। समय आ गया है कि जब जनता तथा राजनैतिक दल गंभीर चिंतन करें।
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